#इन्द्रभूति_गौतम 44
वीर निर्वाण के बाद की कुछ बातें
आगामी उत्सर्पिणी काल के स्वरूप प्रभु के मुख से सुनकर फिर
गौतमस्वामी अत्यंत विनय वन्दन करने के बाद प्रभु से पूछते हैं।
: - भगवन, आप के निर्वाण बाद क्या-क्या मुख्य घटनायें घटित होंगी।
प्रभु ने जो बताया उसे हम क्रम से देखते हैं।
: - मेरे निर्वाण के 64 वर्ष बाद इस भरतक्षेत्र का इस काल का अंतिम केवली जंबू
सिद्ध गति को प्राप्त होगा। उसी समय मनःपर्यव ज्ञान, परम अवधि ज्ञान, पुलाक लब्धि, आहारक शरीर, क्षपक श्रेणी, उपशम श्रेणी, जिन कल्प, परिहार विशुद्ध
चरित्र, सूक्ष्म संपराय चरित्र, यथाख्यात चरित्र , केवलज्ञान तथा मुक्ति गमन यह दस बातों का भरतक्षेत्र से विच्छेद हो जायेगा । (
कुछ ग्रन्थों में इसे अलग नामों से वर्गीकृत किया गया है।)
: - पंचम आरे में अंत तक कुल 2004 युगप्रधान आचार्य होंगे। प्रथम सुधर्मास्वामी से लेकर अंतिम
दुप्पसह तक।
: - मेरे निर्वाण के 170 वर्ष बाद आचार्य भद्रबाहु के स्वर्गगमन पश्चात अंतिम 4 पूर्व, सम चतुरस्र संस्थान, वज्र रुषभनाराच संहनन, महाप्राण ध्यान इन 4 वस्तुओं का अंत होगा।
: - मेरे निर्वाण के 500 वर्ष बाद आर्य वज्र के समय में दसवां पूर्व तथा प्रथम चारों
संहनन समाप्त हो जाएंगे। यानी प्रथम वज्र रुषभनाराच तो गया फिर रुषभनाराच, नाराच, अर्धनाराच समाप्त
होगा।
: - नंद, चंद्रगुप्त, पालक, पुष्यमित्र आदि के नाम व शासन
वर्ष की विगतों के साथ प्रभु स्वर्णपुरुष विक्रमादित्य का भी उल्लेख करते है।
: - मेरे निर्वाण के 453 वर्ष बाद गर्दभिल्ल के राज्य को मिटाने वाले कालकाचार्य जी
होंगे।
प्रभु आगे फरमाते है कि, बहुत से साधु भाण्डों के समान होंगे, पूर्वाचार्यों से चली आ रही समाचारी का त्याग कर कपोल कल्पित अपने अनुकूल
समाचारी की विपरीत प्ररूपणा करेंगे। आत्मप्रशंसा व परनिंदा में निरत रहेंगे। विपुल
आत्मबल वालो को कोई नही पूछेगा व आत्मबल विहीन लोग पूजनीय बनेंगे।
प्रभु व गौतमस्वामी के इस पूरे संवाद को सुनकर हस्तिपाल
राजा आदि कई भव्यात्माओं ने निर्ग्रन्थ धर्म का शरण स्वीकार किया। (अपने गुरुदेव
से इस भयंकर काल का वर्णन सुनकर नजदीकी भूतकाल में भी एक भव्य आत्मा ने संसार
त्याग कर संयम अंगीकार कर लिया था। स्थानकवासी समाज के वे अति उत्तम संयमपालक संत
श्री आचार्य भगवंत नानेश थे । जैन धर्म की उन्होंने खुब प्रभावना की थी। । )
भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य ज्योतिर्मंडल में।
उत्तम, अनुपम गुरु-शिष्य
की जोड़ी वीर- गौतम के आगे के संवाद में हम ज्योतिर्मंडल में विचरण कर रहे देवों के
विषय में संक्षिप्त पर रोचक कथा देखेंगे।
निरयावलिका जी सूत्र के पुष्पिता नामक तृतीय वर्ग मेंं तीन
अध्ययन में ज्योतिषियों के इंद्र चन्द्र-सूर्य तथा शुक्र महाग्रह का वर्णन है।
एक बार भगवान महावीर राजगृही नगरी के बाहर गुणशील नामक
उद्यान में पधारे। प्रभु के समोवसरण में ज्योतिषी देव के इंद्र चन्द्र भी आये। प्रभु
के दर्शन वंदन किया।
अब वह चन्द्रदेव क्या करेंगे यह हम आगे देखेंगे।
सन्दर्भ : - जैन धर्म का मौलिक इतिहास, व विभिन्न ग्रंथ।
कल का जवाब : - उत्सर्पिणी काल के चौथे आरे में एक क्रोड़
पूर्व का समय बीत जाने के बाद पुनः कल्पवृक्ष होने लगेंगे ।
आज का सवाल - गर्दभिल्ल राजा के राज्य को कौन मिटाएगा ?
जिनवाणी विपरीत अंशमात्र लिखा हो तो मिच्छामि दुक्कडम।
पिक प्रतीकात्मक है
। अणुकृपा ही केवलम ।
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