Vasupujya Jin Antarjami Jain Stavan Anandghan Chovisi Hindi Lyrics

वासुपूज्य जिन अंतरजामी/त्रिभुवन स्वामी, घननामी परिणामी रे,

निराकार साकार सचेतन, करम करम फल कामी रे... वासुपूज्य...


निराकार अभेद संग्राहक, भेद ग्राहक साकारो रे; 

दर्शन ज्ञान दुभेद चेतना, वस्तु ग्रहण व्यापारो रे.. वासुपूज्य... 


कर्ता परिणामी परिणामो, कर्म जे जीवे करीए रे;

एक अनेक रूप नयवादे, नियते नर अनुसरीए रे... वासुपूज्य...


 दु:ख सुखरूप करम फल जाणो, निश्चय एक आनंदो रे, 

मारा चेतनता परिणाम न चूके, चेतन कहे जिनचंदो रे... वासुपूज्य...


ना परिणामी चेतन परिणामो, ज्ञान करम फळ भावी रे; 

ज्ञान करम फळ चेतन कहीए, लेजो तेह मनावी रे... वासुपूज्य...


आतमज्ञानी श्रमण कहावे, बीजा तो द्रव्य लींगी रे; 

वस्तुगत जे वस्तु प्रकाशे, ‘आनंदघन’ मत संगी रे... वासुपूज्य...

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