Suparshvanath Sohamana Re Lyrics Jain Stavan

Suparshvanath Sohamana Re Lyrics Jain Stavan 

हांरे निरखी निरखी तुज बिंबने रे,

हरखित हुयें मुज मन्न;

सुपार्श्व सोहामणा रे… (२ वार)


निर्विकारता नयनामां ने,

मुखडुं सदा सुप्रसन्न;

सुपार्श्व सोहामणा रे… (२ वार)


भाव अवस्था सांभरे, प्रातिहारजनी शोभा;

कोडि गमे देवा सेवा रे, करतां मूकी लोभ

हांरे निरखी…


लोका-लोकना सवि भावा, प्रतिभासे परतक्ष रे;

तोहे न राचे नवि रुसें रे, नवि अविरतिनो पक्ष रे

हांरे निरखी…


हास्य न रति अरति नहीं, नहीं भय शोक दुगंछ रे;

नही कंदर्प कदर्थना रे, नहीं भय अंतरायनो संच

हांरे निरखी…


मोह मिथ्यात्व निद्रा गई, नाठां दोष अढार रे;

चोत्रीश अतिशय राजतो रे, मूलातिशय चार रे

हांरे निरखी…


पांत्रीश वाणी गुणे करी, देतो भवि उपदेश रे;

ईम तुज बिंबे ताहरो रे, भेदनो नहि लवलेश

हांरे निरखी…


रुपथी प्रभु गुण सांभरे रे, ध्यान रूपस्थ विचार रे;

मानविजय वाचक वदे रे, जिन प्रतिमा जयकार

हांरे निरखी…

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