Adhyatmana panthe dhir bani shancharjo - अध्यात्मना पंथे धीर बनी संचरजो

Adhyatmana panthe dhir bani shancharjo Jain Stavan Lyrics

अध्यात्मना पंथे धीर बनी संचरजो 

( राग : हे त्रिशलाना जाया ) 
अध्यातमना पंथे धीर बनी संचरजो ,
हे दीक्षार्थी मोक्ष महेलनां सिंहासनने वरजो . . . 

मृगजळ झंखी शोष सहीए , अमे सह भवरणनो 
तमे परमपद वरवा काजे , धरशो वेश श्रमणनो 
वीर तणो मारग छे भाई , साचवीने डग भरजो अध्यात्मना पंथे . . . 1 

संयोगमां अटवायेलुं , जीवन रहे अमारुं , 
देशकाळनां बंधनथी पर , जीवन थशे तमारुं , 
अलगारी थई अक्षयपदनुं , आराधन आदरजो अध्यात्मना पंथे . . . 2 

सुखमां रमीए सुखनी माटे , धरीए अमे सौ ताण 
दुःखथी डरीए दःखमां रडीए , अमे धर्मथी अजाण 
सुख दुःखनां अंधारा सामे , सहज समाधि धरजो अध्यात्मना पंथे . . . 3 

राग द्वेषने दूरे करजो , परिहरजो तमे ममता 
अनहदनी सरहद पर वरजो , सूरज जेवी समता 
जिनवाणीनु अमी तमारां , अंतरमा अवतरजो अध्यात्मना पंथे . . . 4

परिषहोने टक्कर देजो , वज्जरमुं बळ धरजो , 
व्रतनियमोनां शुभ संस्कारे , चित्त सुकोमळ धरजो 
अणुअणुमां सद्गुगुणनां फूलनी , सुंदरता पांगरजो अध्यात्मना पंथे . . . 5 

निजमत जनमतमांना रमजो , रमजो श्री जिनमतमा 
सामाचारीने साचवजो , गुरुवरनी संगतमां 
शास्त्रो छे साधुनी आँखो , एह सत्य अनुसरजो अध्यात्मना पंथे . . . 6 

तमे थशो अवधूत प्रवासी , अमे अहीं भववासी , 
तरी जशो तमे भवनो दरियो , डूबशुं अमे विलासी , 
खूब - खूब आगळ तमे वधजो , अमेन पण उद्धरजो अध्यात्मना पंथे . . . 7 

गुरुनां चरणे जीवन जीवजो , भीतर डूब्या रहेजो , 
प्रभुकृपा जेवी हितशिक्षा , क्यारेक अमने कहेजो 
तमने देवर्धि सांपडशे , सिद्धि हासिल करजो अध्यात्मना पंथे . . . 8

पू . मुनि श्री प्रशमरति वि . म . सा . 
( श्री रामचंद्रसूरिजी समुदाय )

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