*🛕मंदिर में घण्टनाद क्यों❓*
*◼️देवाधिदेव जिनेश्वर परमात्मा के दर्शन होने पर अपने मन के आनंद हर्षोल्लास को अभिव्यक्त करने के लिए घण्टनाद किया जाता है।*
*▪️कब और कितनी बार❓*
*🙏घंटनाद मंदिर में चार बार :—*
*🍂१. जिन मंदिर के प्रवेश के समय :—*
*मूल गंभारे के पास पहुंचते समय तीन बार घंटनाद किया जाता है। इसका कारण है कि मन, वचन, व काया, इन तीन योग से मैं संसार के समस्त क्रिया— कलापों का त्याग करती हूँ, स्व को परमात्मा स्वरूप से जोडती हूँ।*
*🍂२. परमात्मा के अभिषेक के समय~~*
*अभिषेक के समय मन के आनन्दोल्लास को प्रकट करने एवं जिनेश्वर परमात्मा अब मेरे हृदयांगन में विराजमान हो रहे ऐसा इंगित ( सुचित) करने के लिए दूसरी बार अभिषेक के समय घंटनाद किया जाता है।*
*🍂३. द्रव्य पूजा की समाप्ति एवं भाव पूजा के प्रारंभ में :—*
*भाव पूजा के प्रारंभ के समय स्थावीस ( २७) बार घंटनाद किया जाता है। क्योंकि भाव पूजा के अधिकारी साधु होते हैं, जिनके सतावीस गुण होते हैं। इन सतावीस गुण से युक्त मुझे साधु जीवन की प्राप्ति हो, इस उद्देश्य से तीसरी बार सतावीस बार घंटनाद किया जाता है।*
*🍂४. जिन मंदिर से बाहर निकलते समय :—*
*जिन मंदिर से बाहर निकलते समय सात भयों से मुक्त बनने के लिए सात बार घंटनाद किया जाता है।*
*🔹मूल गंभारे के प्रवेश स्थान पर नीचे की ओर दो सिंह की ( तिर्यंच प्राणी) आकृति होती है*
*वो व्याघ्र रागों —द्वेष केसरी अर्थात् राग व द्वेष के प्रतिक है।*
*सिंह की आकृति होने का उद्देश्य :—*
*हे परमात्मा ! जिस प्रकार आप श्री ने राग — द्वेष को पांवों तले रोंदकर वितराग अवस्था को प्राप्त किया है उसी प्रकार हे परमात्मा ! मुझे भी ऐसी शक्ति प्रदान करना, जिससे मैं संसार वृद्धि के कारक राग — द्वेष को शक्तिहीन करके वीतराग अवस्था की शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त कर सकूं।*
*▪️मुख कोश▪️*
*🙏आठ पट्टवाला मुख कोश नाक से लेकर मुहँ तक बांधना चाहिए।*
*नाक को बांधकर और यदि नाक पर बांधने से असमाधि उत्पन्न हो तो ऐसी दशा में समाधि बनाये रखने हेतु बिना नाक को बांधे आठ पड वाला मुखकोश मुख पर निष्कपट भाव से बांधना चाहिए। निष्कपट भाव अर्थात् स्वयं की आत्मा के साथ छल, कपट, धोखा किए बिना मुख कोश बांधना।*
*क्यों बांधना❓*
*हमारे भितर से निकलती हुई दुर्गन्ध भरी श्वास का परमात्मा को स्पर्श न हो इसलिए आठ पड वाला मुख कोश बांधते है।*
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