Goutam Guru Vandana

गौतम गुरु वंदना-
जेनुं अद्भूत रूप निरखता, 
उरमां नहि आनंद समाय, 
जेना मंगल नामे जगमां, 
सघळा वांछित पूरण धाय,
सुरतरु सुरमणि सुरघट करता, 
जेनो महिमा अधिक गणाय, 
अेवा श्री गुरु गौतम गणधर, 
पद पंकज नमु शीश नमाय । १.

इन्द्रभूति अनुपम गुण भर्या, 
जे गौतमगोत्रे अलंकर्या, 
पंचशत छात्रशुं परिवर्या, 
वीर चरण लही भवजल तर्या । २.

श्री इन्द्रभूति गणवृद्धिभूतिम्, 
श्री वीरतीर्थाधिप मुख्य शिष्यम्, 
सुवर्णकांति कृतकर्म शांतिम्, 
नमाम्यहं गोतम गोत्र रत्नम् । ३.

छट्ठ छट्ठतप करे पारणुं , 
चउनाणी गुणधाम,
ओ सम शुभ पात्र को नहि, 
नमो नमो गोयम स्वाम। ४.

 
जेना लब्धि प्रभावथी, जगतमां, 
सर्वेच्छितो थाय छे, 
जेनुं मंगल नाम विश्वभरमां, 
षट्दर्शको गाय छे । 
जेना मंगल नामथी जगतमां, 
विघ्नो सदा जाय छे,
तेवा श्री गुरूगौतम प्रणमीओ, 
भावे सदा भक्तिथी॥ ५,

सूरिमंत्रना आराधको प्रतिदिन तने संभारता,
आचार्यदेवो ताहरी पीठिका बहु आराधता 
मंत्राक्षरो दीधा जे जेणे, दिव्य सूरिमंत्रना
ते लब्धिधारी गणहरा, गौतमगुरुने वंदना ६.

भंते वली भयवं कही महावीरने संबोधता
ज्ञानी छता प्रश्नो पूछी, 
आ ज्ञान सुहुने पमाडता 
वाणी वही जे वीरमुखथी, 
प्राप्त थइ प्रभुवाचना
ते लब्धिधारी गणहरा, 
गौतमगुरुने वंदना ७.

गौतम तारो नेह करता, 
मुज अंतरनो मोह गल्यो, 
तत्पर थाता तुज भक्तिमां, 
हृदये तुज अनुराग भल्यो, 
मुक्तिमुक्ति कर अब तुज भक्ति, 
शक्ति अखूटी मांगी मलो, 
तेहथकी जिम तापसना तिम, 
मुज भवबंधन दूर टलो. ८.

टिप्पणियाँ