प्रणाम जय जिनेन्द्र
वर्तमान में जैन
मंदिरों में अनेक प्रकार
की आशातना में
आधुनिकता, पश्चिम
के अंधानुकरण एवं शास्त्रीय अनभिज्ञता के कारण वृद्धि हुई है।
मंदिर के इन कार्यों
में आशातना होती है...
१. सूर्योदय के पूर्व
जिन मंदिर खोलना।
२. सूर्योदय से पूर्व
पक्षाल।
३. जर्मन सिल्वर की
थाली, कलश
आदि बर्तनों का उपयोग।
४. प्लास्टिक, स्टील, एल्युमीनियम की बाल्टियों या बर्तनों का
उपयोग।
५. मूल गभारे में
स्त्री पुरुष का स्पर्श।
६. युवतियों का पुरुषों
की उपस्थिति में नाचना।
७. केसर का अति उपयोग।
८. अविवेकतापूर्वक वरक
का उपयोग।
९. बिजली का उपयोग।
१०. घी के दीपक खुले
में रखना।
११. पसीने की बूंदें
प्रभु पर गिरना।
१२. पुजारी के मलिन
वस्त्र।
१३. अंग-लूछने में
कृपणता।
१४. मूल-गभारे के निर्माण
में लोहे का प्रयोग।
१५. पुरुषों द्वारा
सीले हुए कपड़ों का उपयोग।
१६. प्रभु पर न चढ़ाए
जाने वाले पुष्प चढ़ाना।
१७. प्रभु की नौ से
अधिक अंगों की पूजा।
१८. धूफ (धूप) की जगह
अगरबत्ती का उपयोग।
१९. गुरु-
मूर्ति की
अविवेकपूर्वक पूजादि।
२०. पर-द्रव्य से
पूजा।
२१. भौतिक सुखार्थ
देव-गुरु की भक्ति।
२२. इलेक्ट्रिक
वाद्यों का उपयोग।
२३. अन्यायोपार्जित धन
का उपयोग।
२४. चढ़ावे की रकम
शीघ्र न देना।
२५. शक्ति से अधिक
चढ़ावा बोलना।
२६. बैंकों में
देव-द्रव्यादि रखना।
२७. जिनालय के भंडार
में से पुजारी को वेतन।
२८. पारदर्शक वस्त्र
पहनकर बहनों का मंदिर में आना।
२९. जीर्णोद्वार के
प्रति दुर्लक्ष्य।
३०. थैली के दूध से
पक्षाल।
३१. पक्षाल के समय
वालाकुंची का दुरुपयोग।
३२. पर्यटक के रूप में
तीर्थयात्रा करनी।
३३. पुजारी के वेतन
में कृपणता।
३४. भाड़े के
संगीतकारों द्वारा जिन भक्ति करवाना।
३५. रंगोली में भगवान
के चित्र बनाना।
३६. अशुद्ध और हल्के
कोटि की वस्तुओं से आंगी रचाना।
३७. महोत्सवों में
रात्रि भोजन।
३८. महोत्सवों में
बर्फ, अचार
इत्यादि अभक्ष्य पदार्थ का उपयोग।
३९. दीपक को प्रतिमा
के एकदम निकट रखना।
४०. नकद रुपये-पैसों
का प्रतिमाजी से स्पर्श करवाना।
४१. बिना विशेष कारण
और अशास्त्रीय विधि से प्रतिमाओं पर पेंट करवाना।
४२. एसिड इत्यादि
रासायनिक पदार्थों द्वारा प्रतिमाएं साफ करना।
४३. जिनालय में फिनायल
का पोछा लगाना।
४४. जिनालय में प्रभु
के समक्ष श्रावक/श्राविकाओं का बहुमान करना।
४५. जिनालय में
निक्कर/बरमूडा/केपरी आदि पहन के जाना।
४६. बहनों द्वारा
मासिक धर्म का उचित पालन न करना।
४७. जिनालय के शिखर पर
स्थायी मंच (कटघरा) बनवाना।
४८. प्रभावना में
बिस्कुट जैसे बाज़ारू अभक्ष्य पदार्थ बांटना
४९. प्रतिमाओं पर
स्थायी रूप से आभूषण चिपकाना
५०. मंदिर जी की
वर्षगांठ देसी तिथि के हिसाब से न मनाकर अंग्रेज़ी तारीख से मनाना
आप सभी आशातनाओ से
बचकर अपना जीवन सफल बनाएं एवं नारकीय यातनाओं से बचें ,, इन्हीं शुभकामनाओं सहित
सिर्फ जैन समाज ग्रुप
में ही भेजें। जय जिनेन्द्र
आखिल भारतीय जैन श्वैताम्बर महासंघ
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