सूतक-पातक
सूतक लग गया, अब मंदिर नहीं जाना तक ऐसा कहा-
सुना तो बहुत बार, किन्तु अब इसका अर्थ भी समझ
लेना ज़रूरी है !!!
सूतक
सूतक का सम्बन्ध “जन्म के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है !
जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने
की प्रक्रिया में अन्य प्रकार
की जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/
पाप के प्रायश्चित स्वरुप सूतक माना जाता है !
जन्म के बाद नवजात की पीढ़ियों को हुई
अशुचिता :-
३ पीढ़ी तक – १० दिन
४ पीढ़ी तक – १० दिन
५ पीढ़ी तक – ६ दिन
ध्यान दें :- एक रसोई में भोजन करने वालों के
पीढ़ी नहीं गिनी
जाती … वहाँ पूरा १० दिन का सूतक माना है !
प्रसूति (नवजात की माँ) को ४५ दिन का सूतक
रहता है !
प्रसूति स्थान १ माह तक अशुद्ध है ! इसीलिए कई
लोग जब भी अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते
हैं !
अपनी पुत्री :-
पीहर में जनै तो हमे ३ दिन का,
ससुराल में जन्म दे तो उन्हें १० दिन का सूतक रहता है ! और हमे
कोई सूतक नहीं रहता है !
नौकर-चाकर :-
अपने घर में जन्म दे तो 1 दिन का,
बाहर दे तो हमे कोई सूतक नहीं !
पालतू पशुओं का :-
घर के पालतू गाय, भैंस, घोड़ी,
बकरी इत्यादि को घर में बच्चा होने पर हमे १ दिन
का सूतक रहता है !
किन्तु घर से दूर-बाहर जन्म होने पर कोई सूतक
नहीं रहता !
बच्चा देने वाली गाय, भैंस और
बकरी का दूध, क्रमशः १५ दिन, १० दिन और ८ दिन तक
अभक्ष्य/अशुद्ध रहता है !
पातक
पातक का सम्बन्ध “मरण के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है !
मरण के अवसर पर दाह-संस्कार में इत्यादि में
जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित
स्वरुप “पातक” माना जाता है !
मरण के बाद हुई अशुचिता :-
३ पीढ़ी तक – १२ दिन
४ पीढ़ी तक – १० दिन
५ पीढ़ी तक – ६ दिन
ध्यान दें :- जिस दिन दाह-संस्कार किया जाता है, उस दिन से पातक के
दिनों की गणना होती है, न कि मृत्यु के दिन
से !
यदि घर का कोई सदस्य बाहर/विदेश में है, तो जिस दिन उसे
सूचना मिलती है, उस दिन से शेष दिनों तक उसके पातक
लगता है !
अगर १२ दिन बाद सूचना मिले तो स्नान-मात्र करने से
शुद्धि हो जाती है !
किसी स्त्री के यदि गर्भपात हुआ हो तो,
जितने माह का गर्भ पतित हुआ, उतने ही दिन का पातक
मानना चाहिए !
घर का कोई सदस्य मुनि-आर्यिका-तपस्वी बन
गया हो तो, उसे घर में होने वाले जन्म-मरण का सूतक-पातक
नहीं लगता है ! किन्तु स्वयं
उसका ही मरण हो जाने पर उसके घर वालों को १ दिन
का पातक लगता है !
किसी अन्य की शवयात्रा में जाने वाले को १
दिन का, मुर्दा छूने वाले को ३ दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को ८ दिन
की अशुद्धि जाननी चाहिए !
घर में कोई आत्मघात करले तो ६ महीने का पातक
मानना चाहिए !
यदि कोई स्त्री अपने पति के मोह/निर्मोह से जल मरे,
बालक पढाई में फेल होकर या कोई अपने ऊपर दोष देकर मरता है
तो इनका पातक बारह पक्ष याने ६ महीने का होता है !
उसके अलावा भी कहा है कि :-
जिसके घर में इस प्रकार अपघात होता है, वहाँ छह
महीने तक कोई बुद्धिमान मनुष्य भोजन अथवा जल
भी ग्रहण नहीं करता है ! वह मंदिर
नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर
जी में चढ़ाया जाता है !
क्रियाकोष १३१९-१३२०
अनाचारी स्त्री-पुरुष के हर समय
ही पातक रहता है
ध्यान से पढ़िए :-
सूतक-पातक की अवधि में
देव-शास्त्र-गुरु का पूजन,
प्रक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती हैं !
इन दिनों में मंदिर के उपकरणों को स्पर्श करने का भी निषेध
है !
यहाँ तक की गुल्लक में रुपया डालने
का भी निषेध बताया है !
किन्तु :-
ये कहीं नहीं कहा कि सूतक-पातक में
मंदिरजी जाना वर्जित है या मना है !
श्री जिनमंदिर जी में जाना, देव-दर्शन,
प्रदिक्षणा, जो पहले से याद हैं वो
विनती/स्तुति बोलना,
भाव-पूजा करना, हाथ की अँगुलियों पर जाप देना जिनागम
सम्मत है !
यह सूतक-पातक आर्ष-ग्रंथों से मान्य है !
कभी देखने में आया कि सूतक में
किसी अन्य से जिनवाणी या पूजन
की पुस्तक चौकी पर खुलवा कर
रखवाली और स्वयं छू तो सकते नहीं तो उसमे
फिर सींख, चूड़ी, बालों कि क्लिप या पेन से पृष्ठ
पलट कर पढ़ने लगे … ये योग्य नहीं है !
कहीं कहीं लोग सूतक-पातक के दिनों में
मंदिरजी ना जाकर इसकी समाप्ति के बाद
मंदिरजी से गंधोदक लाकर शुद्धि के लिए घर-दुकान में
छिड़कते हैं, ऐसा करके नियम से घोरंघोर पाप का बंध करते हैं !
इन्हे समझना इसलिए ज़रूरी है, ताकि अब आगे घर-
परिवार में हुए जन्म-मरण के अवसरों पर अनजाने से
भी कहीं दोष का उपार्जन न हो !
इस विषय को अधिक सूक्ष्मता से जानने के लिए
त्रिवर्णाचारजी, धर्म-संग्रह श्रावकाचारजी,
क्रियाकोष और सूतक-निर्णय जैसे शास्त्रों को पढ़ना चाहिए !
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