*🌹 चांपलदे 🌹*
*गुजरात की राजगद्दी पर भोला भीमदेव का राज्य चलता था । राजा भीमदेव को उनके भोलेपन के कारण कई लोग ठग जाते थे और अनेक व्यक्ति राजा के भोले स्वभाव का अनुचित लाभ उठाते थे ।* *बहकानेवाली झूठ-सच बातों से राजा के कान भरकर कुछ स्वार्थी लोग अपना उल्लू सीधा करते थे ।*
*पाटण नगर में आभड़ वसा नाम के श्रेष्ठी ने अपने यहाँ हिसाब-किताब लिखनेवाले मुनीम को निकाल दिया । यह मुनीम हिसाब में गड़बड़ करता था और आभड़ सेठ के पैसे खा जाता था । सेठ को मालूम होते ही उन्होंने तत्क्षण मुनीम को निकाल दिया । अपनी धूर्तता पकड़ी जाने पर दुष्ट वृति वाले मुनीम ने सेठ के विरुद्ध अपने बैर का बदला लेने के लिए चतुराईपूर्ण प्रपंच जाल बिछाया*
*उसने राजा से कहा , " इस आभड़ सेठ के पास तो अनगिनत धन है , फिर भी कंजूस आभड़ सेठ राज्य को एक फूटी कौड़ी की भी सहायता नहीं करता । ऐसे लोगों की लक्ष्मी का घर में ही दम घुट जाये और किसी को लाभ न हो , पर यह लक्ष्मी यदि महल में आये तो कितने ही लोग पार लग जायँ । "*
*भोले राजा को यह बात पसंद आयी । उसने मुनीम की बताई हुई युक्ति के अनुसार सेठ को भूल में फँसाकर पैसे निकलवाने का पैतरा रचा । भीमदेव की दासी सेठ के घर मांस का थाल लेकर आयी । इस समय दासी ने चांपलदे को थाल अर्पण करते हुए कहा , " राज्य में अभी उत्सव चल रहा है , इसलिए राजा ने तुम्हारें गौरव के लिए यह प्रसाद भेजा है । " सेठ तो जिनपूजा में लीन थे । अतः उनकी पुत्री चांपलदे ने दासी का सत्कार करके थाल खुलवाया , तब उसे पता चला कि उसमें तो राजा ने मांस रखा हैं ।*
*राजा के ऐसे अविनय का कारण क्या ? राजा एकाएक आभड़ सेठ के अंतरात्मा पीड़ित हो ऐसा किसलिए करते होंगे ? चांपलदे दुर्भाग्य से बालविधवा हो गई थी । पिता के वहाँ रहती थी । चतुर , विवेकी , धर्मनिष्ठ ऐसी चांपलदे सामनेवाले व्यक्ति के मन को परख सकती थी ।*
*राजा की परिवर्तित प्रकृति पर विचार करते हुए चांपलदे को पता लग गया कि यह तो अप्रामाणिक मुनीम की करतूत है । चांपलदे ने राजा ने भेजा हुआ प्रसाद दूसरे थाल में रख लिया और इस थाल पर मोतियों का बधावा चढ़ाकर वापस लौटाया । साथ ही राजा को भेंटरुप में सवा लाख का हार भेजा । थाल लाने वाली दासी को गले में पहनने का आभूषण भेंट में दिया ।*
*चांपलदे ने अपने पिता से राजा की बदली हुई मनोवृति की बात कही । राजा एनकेनप्रकारेण उनका धन छीन लेना चाहता है ऐसा कहा । अप्रामाणिक मुनीम ने राजा के कान भरे होने की शंका भी अभिव्यक्त की*
*आभड़ सेठ सोच में पड़ गये , तब चांपलदे ने पिता को आश्वासन देते हुए कहा , " पिताजी ! राजा हमें लूटना चाहता हैं , तब हमें भी दूरंदेशी से काम लेना चाहिए । राजा हमारे धन का भक्षक होना चाहता है, उसकी अपेक्षा हमें उसे धन का रक्षक बनाना हैं । "*
*पिता आभड़ वसा को अपनी पुत्री की चतुराई और विद्वता के लिए गौरव था । आभड़ सेठ ने अपनी मिलकत की स्मरणिका तैयार की और वह यादी लेकर आदरपूर्वक भोला भीमदेव के पास गये । राजा तो मानता था कि आभड़ सेठ अपनी ' प्रसादी ' देखकर अकुला उठेगा । राज्य के विरुद्ध उठ खड़ा होगा । इसलिए आसानी से उसकी मिलकत ऐंठ ली जायेगी । अपने धन की ब्योरेवार यादी लेकर सेठ राजा के पास गया । राजा ऐसे मन के पारखी पुरुष को देखकर अत्यंत हर्षित हुए । उन्होंने मुनीम से कहा ,*
*" अरे मूर्ख ! विधाता जिसे धन देता है , उसे उसके रक्षण की हिकमत-युक्ति भी देता है । तुझे सेठ की ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए । खैर ! जो हुआ सो हुआ । अब तू सेठ के पाँव में गिरकर क्षमा-याचना करलें ।"*
*आभड़ सेठ की मुनीम ने माफी माँगी । राजा ने सेठ की मिलकत में से फूटी कौड़ी भी नहीं ली । चांपलदे की युक्ति से बचायी हुई उस संपत्ति में से सेठ ने कई सत्कृत्य किये । चांपलदे चतुर और घररख्खू थी , तो विवेकी एवं विदुषी भी थी । जिनशासन का इतिहास ऐसी श्राविकाओं से उज्जवल है । चांपलदे भी उच्च धर्म-आराधना करके स्वर्ग सिधार गई ।*
*साभार 🙏🌹🙏*
*जिनशासन की कीर्तिगाथा*
*🏳️🌈जैनम जयति शासनम 🏳️🌈*
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