Tirthankar

महाविदेह के विहर मान को विद्यमान बीस तीर्थंकर क्यों कहा जाता है?

 उत्तर - इन्हें विद्यमान बीस तीर्थंकर इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इन नामों वाले तीर्थंकर बीस ही होते हैं तथा कम से कम बीस हमेशा विद्यमान रहते हैं। 

प्रश्न - तो क्या ये तीर्थंकर मोक्ष नहीं जाते हैं?

 उत्तर - ये तीर्थंकर मोक्ष तो अवश्य ही जाते हैं किंतु एक तीर्थंकर के मोक्ष जाने के तुरंत बाद उसी नाम के दूसरे तीर्थंकर का उद्भव हो जाता है। इस प्रकार इनका कभी अभाव नहीं होता।

 प्रश्न 4 - ये तीर्थंकर कहां होते हैं?
 उत्तर - विदेह क्षेत्रों में।

 प्रश्न 5 - विदेह क्षेत्र की नाम की सार्थकता क्या है?

 उत्तर - विदेह का अर्थ, विगत् देहाः अर्थात निकल गई देह जिसमें से वह विदेह हुआ। विदेह क्षेत्रों में चतुर्थ काल (कर्मभूमि) सदा प्रर्वतमान रहता है। उतएव वहां से मुनष्य कर्मों का नाश करके विदेह अर्थात मोक्ष जाते हैं। 

प्रश्न 6 - विदेह क्षेत्र कहां-कहां हैं और कितने हैं उनका वर्गीकरण कैसे किया जाता है? 

उत्तर - ढाई द्वीप में पांच मेरू सम्बंधी पांच महाविदेह क्षेत्र कहलाते हैं। विदेह क्षेत्र प्रत्येक मेरू के पूर्व और पश्चिम होने से दस हो जाते हैं। मेरू पर्वतों के पूर्व और पश्चिम सीता सीतोदा नदियों के बहने से उनके उत्तर-दक्षिण विदेह क्षेत्र होने से 20 विदेह क्षेत्र हो जाते हैं। प्रत्येक मेरू से सम्बंधित सीता नदी के उत्तर में विदेह क्षेत्रों की आठ कर्म भूमियां हैं तथा दक्षिण में आठ इसी प्रकार सीतोदा नदी के दक्षिण में आठ तथा उत्तर में आठ कर्मभूमियां एक मेरू से सम्बन्धित 8 गुण 4 = 32 कर्म भूमियां इसीलिए पांच मेरू सम्बंधित 32 गुणा 5 = 160 विदेह क्षेत्र की कर्मभूमियां हुईं।

 फागऩ सुद तीज, सीमंधर स्वामी सहित 20 विहरमान तीर्थंकरो का दीक्षा कल्याणक 

20 विहरमान तीर्थंकरो की उंचाई =500धनुष
20 विहरमान तीर्थंकरो की आयु =84लाख पूर्व 
20 विहरमान तीर्थंकरो का ग्रहस्थ काल =83लाख पूर्व 
20विहरमान तीर्थंकरो का दीक्षा पर्याय =1लाख पूर्व 

17वे तीर्थंकर कुंथुनाथ स्वामी के निर्वाण के बाद 20 विहरमान तीर्थंकरो का महाविदेह क्षेत्र मे एक साथ जन्म कल्याणक हुआ l

20वे तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के निर्वाण के बाद 20विहरमान तीर्थंकरो ने 83लाख पुर्व का समय गृहस्थ जीवन मे बिताकर एक साथ दीक्षा लीl

दीक्षा के 1000 वर्ष बाद 20 विहरमान तीर्थंकरो को एक साथ केवलज्ञान उत्पन्न हुआ l

आवती चौविशी के 7वे तीर्थंकर उदयप्रभ स्वामी के निर्वाण के बाद 20 विहरमान तीर्थंकरो को एक साथ मोक्ष प्राप्ति होगी l

प्रत्येक तीर्थंकर के 84-84 गणधर 
प्रत्येक तीर्थंकर के साथ 10-10लाख केवलज्ञानी परमात्मा 
प्रत्येक तीर्थंकर के साथ 1-1अरब साधु, 1-1अरब साध्विया 

महाविदेह क्षेत्र का यह अटल नियम है कि प्रत्येक 1लाख पूर्व वर्ष पर 20-20तीर्थंकरो का जन्म,दीक्षा,मोक्ष कल्याणक होता है ,
20तीर्थंकरो के दीक्षा कल्याणक पर 83*20=1660तीर्थंकर ग्रहस्थ जीवन मे होते हैं 
सभी का 83लाख पुर्व का गृहस्थ जीवन होता है 
20तीर्थंकर का मोक्ष कल्याणक होने के समय दुसरे 20तीर्थंकर का दीक्षा कल्याणक होता है, और नये 20 तीर्थंकरो का जन्म कल्याणक होता है 
इस प्रकार महाविदेह क्षेत्र मे कभी भी तीर्थंकरो का अभाव नही होता!
एक महाविदेह क्षेत्र मे 4और कुल 5 महाविदेह क्षेत्रो मे 20 विहरमान तीर्थंकर केवली अवस्था मे विचरण कर जगत कल्याण कर रहे हैं !

वर्तमान में सीमंधर स्वामी जंबूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में , 8 वीं पुष्कलावती विजय में पुंडरीकिणीपुरी नगरी में विराजमान हैं।
नमो अरिहंताणं🙏🙏

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