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*इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ*
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🌹 *साध्वी दुर्गंधारानी* 🌹
🌺 *साध्वी दुर्गंधारानी के चरित्र में भौतिक सुख की क्षणभंगुरता और संयमजीवन की महत्ता प्रकट होती है। चित्त में जागे हुए मलिन विचार से बँधे हुए कर्म के विपाक की कथा का चोटदार दृष्टांत यानी साध्वी दुर्गंधा का जीवन। एक बार राजा श्रेणिक और मंत्री अभयकुमार मेले में वेशपरिवर्तन करके जनसमुदाय के विचारों को जानने के साथ-साथ मेले का आनंद ले रहे थे। तब मेला देख रही एक कन्या ने आतुरता से राजा श्रेणिक के हाथ पर हाथ रखा। इस सुंदर युवती पर राजा श्रेणिक मोहित हो गये ओर उसे रानी बनाने का वचन देकर अपनी अँगूठी दी।*
🌺 *इस विलक्षण घटना को महामंत्री अभयकुमार ने अपनी कुशाग्र बुद्धि से जान लिया और अंत में राजा की इच्छा से इस युवती के साथ विवाहोत्सव रचा गया। पहले तीर्थकर भगवान महावीरस्वामी ने राजा श्रेणिक समक्ष उनकें विषय में की हुई भविष्यवाणी सत्य हुई। बात यह थी कि एक बार राजा श्रेणिक भगवान महावीर के समवसरण में जा रहे थे तब सिपाहिंयो ने उनसे कहा कि समीप के वृक्ष के तले अत्यंत दुर्गंधयुक्त एक बालिका पड़ी है। उसके शरीर में से निकलती हुई दुर्गंध के कारण राह चलते यात्री पीठ फिरा लेते है।*
🌺 *भगवान महावीर के समवसरण में राजा श्रेणिक ने उस दुर्गंधयुक्त बालिका के अतीत और भविष्य को जानने की इच्छा व्यक्त की, तब भगवान ने कहा कि गत जन्म में यह बालिका शालिग्राम के धनमित्र की धनश्री नामक पुत्री थी। धनश्री का विवाह महोत्सव अत्यंत धूमधाम से मनाया गया था। तब एक निग्रर्थ साधु उनके यहाँ गोचरी के लिए आये थे। धनमित्र ने उनका आदर करके अपनी पुत्री धनश्री को गोचरी देने को कहा। धनश्री ने गोचरी तो दी, किन्तु मन-ही-मन सोचा कि जैन धर्म के तमाम सिद्धान्त उच्च कोटि के है। केवल मुनियों को स्नान करने की अनुमति दी होती तो, कितना अच्छा होता। मुनि के दुर्गंधयुक्त वस्त्रों के प्रति जुगुप्सा जताने के परिणाम से हुए कर्मबंधन के कारण वह इस जन्म में वेश्या पुत्री हुई। उसके शरीर में से निकलती हुई दुर्गंध के कारण उसे दुर्गंधा नाम दिया गया। उस वेश्या ने उसे निर्जन वन में त्याग दिया था।*
🌺 *भगवान महावीर ने उस बालिका का भविष्य बताते हुए राजा श्रेणिक से कहा कि इस नारी के अशुभ कर्मो का क्षय होगा और तुम उसे पटरानी बनाओगे। वह पूर्व भव की दुर्गंधा ही है, उसकी पहचान इतनी ही है कि तुम्हारें साथ शतरंज में वह जीतेगी और तुम्हारी पीठ पर सवार हो जाएगी। उस समय अन्य रानियाँ केवल अपना पल्लू पकड़कर बैठी रहेगी, तब पीठ पर सवार स्त्री दुर्गंधा है यह समझ लेना।*
🌺 *भगवान महावीर की भविष्यवाणी के अनुसार ही हुआ। राजा श्रेणिक शतरंज के खेल में पराजित हुए। मेलें में मिली हुई रानी उनकी पीठ पर बैठ गयी। फिर समय बीतते ही दुर्गंधा को गत जन्म के कर्मबंधनों का पता चला और उनमें से मुक्ति प्राप्त करने के लिए उसने राजा श्रेणिक की अनुमति से दीक्षा ग्रहण की। रानी दुर्गंधा साध्वी बनकर आचार्या चंदना साध्वी के संघ में सम्मिलित हुई।*
🌺 *साध्वी दुर्गंधा का जीवन यह दर्शाता है कि मुनि के विषय में किया हुआ एकाद मलिन विचार कैसे कैसे कर्मबंधन बाँधता है? अपने पूर्वजन्म की परिस्थितियों पर रानी दुर्गंधा ने गहन विचार किया और उसमें से सच्चे मार्ग पर प्रयाण करने का दृढ़ निश्चय जागा। पूर्वजन्म में से सबक पाकर उसने अपना वर्तमान जीवन अनोखे आत्मकल्याण के मार्ग पर मोड़ दिया। अतीत की महान गलती का प्रायश्चित एक बात ! प्रायश्चित में से पवित्रता की ओर प्रयाण यह दूसरी बात ! दुर्गंधारानी ने पूर्वजन्म की दुःखद स्थितियों का विचार करके वर्तमान जीवन को उज्जवल करने का साहस किया।*
🌺 *रानी में से साध्वी बनी और साध्वी के रुप में जीवन की सुरभी निराली होती है, फिर वहाँ मलिनता का कोई सवाल ही नहीं रहता।*
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*साभार--जिनशासन की कीर्तिगाथा*
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*जैनम् जयति शासनम्*
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