प्रश्न-गुरु किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो अज्ञानको दूर करे उसे गुरु कहते हैं ।
प्रश्न-गुरु के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर-गुरुके दो प्रकार हैं, सद्गुरु और कुगुरु ।
प्रश्न-सद्गुरु किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो स्वयं तिरे और अन्यों को तिराए उसे सद्गुरु कहते हैं ।
प्रश्न--कृगुरु किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो स्वयं डूबे और दूसरों को भी डुबोए उसे कुगुरु कहते हैं ।
प्रश्न-सद्गुरु के लक्षण क्या है ?
उत्तर-सद्गुरु स्पर्शनेन्द्रिय ( धर्म ), रसनेन्द्रिय ( जिह्वा ), घ्राणेन्द्रिय ( नासिका ), चक्षुरिन्द्रिय ( नेत्र ) और श्रोत्रेन्द्रिय ( कर्ण ) इन पांच इन्द्रियोंके विषयोंको वश में रखने वाले होते हैं।
प्रश्न--और अन्य लक्षण क्या है ?
उत्तर-सद्गुरु नौ नियम-पूर्वक ब्रह्मचर्य का शुद्ध पालन करे। जैसे कि:-
(१) स्त्री, पशु और नपुंसक से रहित स्थान में रहे ।
(२) स्त्रीसम्बन्धी बातें न करे ।
(३) स्त्री जिस आसन पर बैठी हो उस आसन पर दो घटिका (घड़ी) तक न बैठे।
(४) स्त्रियोंके अङ्गोपाङ्गों को आसक्ति-पूर्वक न देखे ।
(५) दीवार की आड में स्त्री-पुरुषका जोड़ा रहता हो ऐसे स्थानपर न रहे।
(६) पूर्वकाल में स्त्री के साथ जो क्रीडा की हो, उसका स्मरण न करे।
(७) मादक आहार-पानी उपयोगमें न ले।
(८) प्रमाण से अधिक आहार न करे। पुरुष के आहार का प्रमाण ३२कवल (ग्रास) है।
(९) शरीरका श्रृंगार नहीं करे ।
प्रश्न-और अन्य लक्षण क्या हैं ?
उत्तर-सद्गुरु चार प्रकारके कषायों का सेवन न करे । जैसे कि:-
(१) क्रोध न करे।
(२) मान न रखे।
(३) माया ( कपटः) का सेवन न करे ।
(४) लोभ-लोलुप न बने ।
प्रश्न-और अन्य लक्षण क्या हैं ?
उत्तर-सद्गुरु पाँच महा व्रतों का यथार्थरीति से पालन करें। जैसे कि:-
(१) मन, वचन,कायसे किसी प्राणी की हिंसा न करे।
(२) मन, वचन, कायसे असत्य न बोले ।
(३) मन, वचन, कायसे अदत्त न लेवे ।
(४) मन, वचन, कायसे मैथुन-सेवन न करे।
(५) मन, वचन, कायसे परिग्रह न रखे ।
प्रश्न -और अन्य लक्षण क्या है ?
उत्तर-सद्गुरु पाँच प्रकारके आचारों का पालन करे । जैसे कि:-
(१) ज्ञानाचारका पालन करे।
(२) दर्शनाचारका पालन करे।
(३) चारित्राचारका पालन करे।
(४) तपाचारका पालन करे।
(५) वीर्याचारका पालन करे ।
प्रश्न- और अन्य लक्षण क्या है ?
उत्तर---सद्गुरु पाँच समिति और तीन गुप्ति का पालन करे । जैसे कि :-
(१) चलनेमें सावधानी रखे ।
(२) बोलने में सावधानी रखे ।
(३) आहार-पानी लेने में सावधानी रखे।
(४) वस्त्र, पात्र लेने-रखने में सावधानी रखे ।
(५) मल, मूत्र आदि परठदने ( परिष्ठापन ) में सावधानी रखे ।
(१) मन को पूर्णतया वश में रखे ।
(२) वचन को पूर्णतया वश में रखे ।
(३) काय को पूर्णतया वश में रखे ।
इस प्रकारके ३६ गुणों से गुरु परखे जाते हैं तथा उनके चरणोंको सेवा करने से जन्म सफल होता है ।
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