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*बारह व्रत संबंधी प्रश्नोत्तर*

*1.प्रश्न▪️ श्रावक-श्राविका के 12 व्रत कौन-कौनसे हैं❓* 
*उत्तर ▪️मोटे रूप में प्राणातिपात विरमणादि 5 अणुव्रत, दिशा परिमाणादि 3 गुणव्रत और सामायिक आदि 4 शिक्षाव्रत हैं।* 

*2.प्रश्न▪️ बारह व्रतों को अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रत क्यों कहते हैं❓* 
*उत्तर ▪️अणुव्रत अर्थात् छोटे व्रत। साधु-साध्वी जी के महाव्रतों की अपेक्षा छोटे होने से। इनमें हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील एवं परिग्रह का पूर्ण रूप से त्याग नहीं होता। गुणव्रत 5 अणुव्रतों को पुष्ट करने वाले हैं। छठे से ८वें व्रत दिशि परिमाण व्रत, उपभोग परिभोग परिमाण व्रत तथा अनर्थदण्ड विरमण व्रत गुणव्रत कहलाते हैं। ९वें से १२वें व्रत तक सामायिक, संवर, पौषध एवं अतिथि-संविभाग व्रत चार शिक्षाव्रत कहलाते हैं। श्रावक-श्राविका इनका अभ्यास करते हैं, धीरे-धीरे पूर्णता की तरफ बढ़ते हैं।*

*3.प्रश्न ▪️बारह व्रतों में कितने विरमण व्रत, परिमाण व्रत आदि हैं ❓*
*उत्तर▪️ पहले से पाँचवें तक तथा आठवाँ व्रत विरमण व्रत माने गए हैं। परिग्रह को परिमाणव्रत भी माना है,क्योंकि श्रावक गृहस्थ होने से परिग्रह का पूर्ण त्याग नहीं कर सकता। अंततोगत्वा तो परिग्रह भी त्यागने योग्य अर्थात् विरमण व्रत है। छठा दिशिव्रत और सातवाँ उपभोग-परिभोग व्रत परिमाण व्रत हैं। उनका सर्वथा त्याग नहीं हो सकने के कारण श्रावक इनकी मर्यादा करते हैं। नवमें से बारहवें तक अभ्यास की अपेक्षा शिक्षाव्रत हैं।* 

*4.प्रश्न ▪️'इच्छामि खमासमणो' पाठ क्यों बोला जाता है❓*
 *उत्तर▪️ 'इच्छामि खमासमणो' पाठ के द्वारा साधु-साध्वी जी को वंदना कर उनके प्रति हुई अविनय आशातना के लिए क्षमायाचना की जाती है।* 

*5.प्रश्न▪️ व्रतों में लगे अतिचारों या दोषों की आलोचना 12 स्थूल पाठों से कर ली जाती है, फिर 12 व्रतों का प्राकृत पाठ पुनः क्यों बोला जाता है ❓*
*उत्तर ▪️12 स्थूल पाठों में केवल अतिचारों का ही वर्णन है, उनमें 12 व्रतों का स्वरूप नहीं बताया गया है। अतः व्रतों के स्वरूप के स्मरण के साथ उनमें लगे अतिचारों के साथ 12 व्रत प्राकृत पाठ सहित पुनः बोले जाते हैं।*

*6.प्रश्न ▪️श्रावक के व्रतों के कुल अतिचार कितने हैं, ज्ञानादि की दृष्टि से बताएँ ❓*
*उत्तर ▪️श्रावक व्रतों के कुल अतिचार 99 हैं। ज्ञान के 14, दर्शन के 5, चारित्र के (बारह व्रतों के) 60, कर्मादान के 15 तथा तप के 5 अतिचार बताए गये हैं।*

*7.प्रश्न ▪️ज्ञान, दर्शन और चारित्र के अतिचार किन-किन पाठों से बोले जाते हैं❓*
*उत्तर ▪️ज्ञान के 14 अतिचार 'आगमे तिविहे' के पाठ से, दर्शन के 5 अतिचार दर्शन सम्यक्त्व या ‘अरिहंतो महदेवो' के पाठ से, चारित्र के 60 अतिचार 12 अणुव्रत या स्थूल के पाठों से (प्रत्येक के 5-5 अतिचार) तथा कर्मादान के 15 अतिचार पन्द्रह कर्मादान के पाठ से बोले जाते हैं।*

*8. प्रश्न▪️ प्रतिक्रमण में 84 लाख जीवयोनि के पाठ से सभी जीवों से क्षमायाचना की जाती है फिर 'आयरिय उवज्झाए' पाठ क्षमायाचना के लिए अलग और पहले क्यों बोला जाता है❓*
*उत्तर ▪️सामान्य रूप से सभी जीवों से क्षमायाचना से पूर्व आचार्य, उपाध्याय, साधु-साध्वी से क्षमायाचना वंदनीय, आदरणीय एवं बड़े होने के कारण पहले की जाती है, फिर अन्य सभी जीवों से क्षमायाचना की जाती है। इसके अलावा 'आयरिए उवज्झाए' में 84 लाख जीवयोनि का खुलासा नहीं है। वह संक्षिप्त पाठ है। इसलिए खुलासे की दृष्टि से 84 लाख जीवयोनि से क्षमायाचना का पाठ पुनः बोला जाता है।* 

*9.प्रश्न ▪️पौषधव्रत और बड़ी संलेखना की क्रिया प्रतिदिन नहीं करते। फिर दोनों पाठों का बोलना क्यों आवश्यक है❓*
*उत्तर ▪️जैसे सैनिकों को प्रतिदिन युद्ध नहीं लड़ना पड़ता फिर भी परेड वे प्रतिदिन करते हैं, युद्ध का अभ्यास भी उन्हें प्रायः करवाया जाता है, ताकि वे युद्ध कला को भूल नहीं जायें। इसी प्रकार श्रावक-श्राविका पौषध व बड़ी संलेखना का पाठ भी प्रतिदिन बोलते हैं ताकि इन धर्म-अनुष्ठानों की स्मृति उन्हें बनी रहे और अवसर मिलने पर इनकी साधना-आराधना कर सकें। स्वाध्याय का लाभ तो इन्हें बोलने से मिलता ही है।*

*10.प्रश्न ▪️श्रावक के प्रथम व्रत में स्थूल हिंसा का त्याग है। स्थूल हिंसा से तात्पर्य क्या है ❓*
*उत्तर ▪️स्थूल हिंसा से तात्पर्य मोटी हिंसा से है। पहले अणुव्रत में इसका स्वरूप बताया है- त्रस जीव बेइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीवों की जानकर संकल्प करके हिंसा का त्याग 2 करण 3 योग से करना। न स्वयं इन जीवों की हिंसा करना-न करवाना मन, वचन, काया से।*

*11.प्रश्न▪️ तो क्या स्थावर जीवों की हिंसा का त्याग नहीं करवाया जाता❓*
*उत्तर ▪️गृहस्थ जीवन में स्थावर जीवों (पृथ्वीकायादि 5) की संपूर्ण हिंसा का त्याग संभव नहीं, हाँ उनकी मर्यादा अवश्य की जाती है।*

*12.प्रश्न▪️ इसी प्रकार मोटे झूठ, मोटी चोरी के दूसरे-तीसरे व्रत में त्याग किए जाते हैं, सो कैसे❓*
*उत्तर ▪️मोटे झूठ और मोटी चोरी के त्याग का स्वरूप इन दोनों अणुव्रतों के शुरू में ही बता दिया गया है, जैसे कन्नालीए आदि और खात खनकर आदि।*

*13.प्रश्न▪️ दसवें व्रत में क्या त्याग किया जाता है और कैसे किया जाता है❓*
*उत्तर▪️ दसवें व्रत में 14 नियमों के अनुसार त्याग किया जाता है। सचित्त द्रव्य आदि में काम में आने वाली वस्तुओं, वाहन आदि का भोग निमित्त से भोगने का त्याग है। एक करण तीन योग से स्वयं के लिए। 14 नियमों का ग्रहण 'जाव अहोरत्तं' एक दिन रात के लिए किया जाता है फिर इनमें लगे दोषों का चिन्तन कर मिच्छामि दुक्कडं देकर अगले दिन के लिए पुनः ग्रहण किया जाता है। इस व्रत में संवर और देश पौषध भी किया जा सकता है।* 

*14.प्रश्न▪️ प्रायः 12 व्रतों में दो करण तीन योग से प्रत्याख्यान बताए गए हैं। परन्तु ५वें व्रत में 1 करण तीन योग से प्रत्याख्यान क्यों बताए गए हैं❓*
*उत्तर ▪️पाँचवाँ व्रत परिग्रह के परिमाण/मर्यादा न करने का है। मर्यादा स्वयं के लिए ही की जा सकती है, अन्य के लिए नहीं। परिग्रह परिमाण करने वाला साधक स्वयं परिग्रह की मर्यादा का मन, वचन, काया से पालन करेगा। परन्तु वह अन्य को बाध्य नहीं कर सकता। इसी कारण इस व्रत में प्रत्याख्यान एक करण तीन योग से ही किया गया है। पुत्रादि को परिग्रह के बारे में कहना पड़ सकता है, इस अपेक्षा से एक करण का प्रयोग किया गया है।*

*15. प्रश्न▪️ छठे व्रत दिशि परिमाण व्रत में श्रावक दिशाओं की मर्यादा करता है। उसमें 'स्वेच्छा से काया से आगे जाकर 5 आस्रव सेवन का पच्चक्खाण' शब्दों का प्रयोग क्यों किया गया है ❓*
*उत्तर▪️ दिशिव्रत में मर्यादित सीमा के बाहर भी जाना पड़ जाय, अपनी इच्छा से नहीं, परन्तु विवशतावश और अनिवार्यतावश, तो भी श्रावक मन, वचन से उसका अनुमोदन नहीं करता हुआ आगे जाकर भी 5 आस्रव का सेवन नहीं करता। गृहस्थ जीवन की स्थितियों को लक्ष्य कर ऐसा निर्धारण किया जाना संभव है।*

*16.प्रश्न ▪️श्रावक के व्रतों में करण-योग का उल्लेख किया गया है। किन्तु १२वें अतिथि संविभाग व्रत में करण योग का उल्लेख नहीं। ऐसा क्यों है ❓*
*उत्तर▪️ करण योग का उल्लेख सावध क्रियाओं के संदर्भ में ही किया गया है। परन्तु अतिथि संविभाग व्रत में 14 प्रकार की वस्तुओं का साधु-साध्वी जी को दान देने/प्रतिलाभित करने का प्रसंग है, जो (दान) किसी प्रकार से सावध क्रिया नहीं है। अतः बारहवें व्रत में करण योग का उल्लेख नहीं होना संभव लगता है।*

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