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💰 *देव द्रव्य व स्व द्रव्य*💰
*🙏जिनालय में एक दृष्य रोज देखने को मिलता है। कुछ भक्त पूजा के लिये पधारते है। प्रभु दर्शन पश्चात मंदिर में से लेकर धूप जालाने लगे। एक नही दो नही तीन तीन धूप जलाने लगे। धूपदान में पहले से ही तीन चार धूप जल रही थी। फिर चंदन पूजा के लिये तीन तीन चार चार कटोरी चंदन लिया। पुष्प पूजा के लिये थाली भर भरकर पुष्प लिये। दो तीन बार पुष्प लिये।*
*वर्षो वर्ष हो गये उन सज्जनों को प्रभु पूजा करते हुए, लेकिन में आज तक यह समझ नही पाया की जिस धर्म में स्व द्रव्य से पूजा करने का विधान है उस धर्म के पालन के लिये सज्जनों द्धारा मंदिर जी से लेकर तीन चार धुप जलाना, चार बाटकी चंदन व थाली भर भरकर पुष्प लेने का उन भाग्यशालीयों का ओचित्य क्या है.?*
*धूप पूजा करनी हो तो चार से ही क्यों पहले से जल रही धूप से भी तो पूजा हो सकती है।*
*चार चार बाटकी से चंदन पूजा क्यों..?*
*एक बाटकी या आधी बाटकी से भी पूजा हो सकती है।*
*थाली भर भरकर पुष्प लेना क्यों.?*
*एक या दो पुष्पों से भी पूजा हो सकती है।*
*देव द्रव्य का उपयोग कुछ भी उपयोग करते हुए हम विवेक क्यों नही रख पाते.?*
*कहा जाता है कि श्रावक का धर्म है की व स्व द्रव्य से पूजा करे। किसी वजह से वह स्व द्रव्य से सामग्री नही ला सके तो कम से कम देव द्रव्य का उपयोग करे। देव द्रव्य में अविवेकता पूर्वक उपयोग करना हमारे कर्मो का बंधन है। परमात्मा को एक पुष्प भी अर्पित भाव से करे वनिस्पत मंदिर जी में रखे पुष्प को थाल भर भरकर चढाये।*
*याद करे उन राजा कुमारपाल को जिन्होनें स्वद्रव्य से हमेशा 18 पुष्प चढाकर 18 देशों का राज्य पाया। कुछ लोगों का तर्क होता है कि हम इसके निमित्त भंडार में पैसे डालते है। मगर ध्यान रखें की कुछ पैसे डाल कर आप देव द्रव्य दुरुपयोग के हकदार नही बन सकते।*
*अत: प्रभु पूजन में अपने विवेक रुपी चक्षु को खोलकर ही रखें।*
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