18 पापस्थानक
1. प्राणातिपात : हिंसा , कोई भी जीव के प्राण को घात करना , पीड़ा देना , मानसिक त्रास देना वो द्रव्य हिंसा है। रागादि भाव के साथ आत्मगुण को दबाना या घात करना वो भाव हिंसा है।
2. मृषावाद : ,असत्य बोलना , छल , कपट , मान और माया जैसे मिथ्या भाव साथ बोलना। धन , धान्य के परिवार के लाभ या लोभ के कारण असत्य वचन बोलना। झूठी साक्षी देना।
3. अदत्तादान : अदत्त - चोरी , आदान लेना। चोरी से छुपा के लेना। पूछे बिना लेना। राज्य के कर आदि छुपाना वो भी चोरी है। एक परमाणु जितना भी चोरी करना भी अदत्तादान है।
4. मैथुन : विषयभोग , काम वासना , इन्द्रियों का असंयम , पांचेय इन्द्रियों के भोगों की लोलुपता , विजातीय जाती की भोग वासना।
5. परिग्रह : धन धान्यादि संग्रह करके उसमें मान , मोटाई , ममत्व करना। आवश्यक करके भी ज्यादा मिलने की तृष्णा।
6. क्रोध : गुस्सा , आवेश , आक्रोश , अनादर और रीस।
7. मान : अहंकार , अहं , अभिमान और आठ प्रकार के मद , जाती , कल , बल , मान , तप , ज्ञान , रुप , ऐश्वर्य आदि प्रकार के जीव अहं लगाते है।
8. माया : छल , कपट , प्रपंच , मलिनता , माया , एक शल्य माने जाते है।
9. लोभ : तृष्णा , असंतोष , लालच और लोभ दोषों का ( पापो का ) बाप माना जाता है।
10. राग : मोह , ममता , आशक्ति और गारव बंधन का कारण है।
11. द्वेष : ईर्षा , असूया , अदेखाई बंधन का कारण है।
12. कलह : झघडे , कजिया , कंकास करना।
13. अभ्याख्यान : किसीको गलत आल चढ़ाना , आरोप करना।
14. पैशुन्य : चाडी - चुगली करना।
15. रति - अरति : हर्ष - शोग , खुशी - उद्धवेग
16. परपरिवाद : पारकी निंदा - कुथली करना।
17. माया मृषावाद : माया से असत्य वचन बोलना। अन्य को छेतरनी बुद्धि से वचन बोलना।
18. मिथ्यात्वशल्य : निदान , पर पदार्थ के सुख की अभिलाष से पुण्य के बदला ने की वासना। विपरीत बुद्धि वो शल्य माना जाता है।
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