*🙏 🌹#इतिहास_के_स्वर्णिम_पृष्ठ🌹🙏*
*🌹 सुभद्रा सेठानी 🌹*
*गुजरात में प्रचलित जैन समाज की महाजन परम्परा भारत में कहीं भी प्राप्य नहीं हैं । राजसत्ता को आर्थिक सहायता की आवश्यकता हों , प्राकृतिक संकट के समय* *आवश्यकता हो तब ये राज्यशासक निःसंकोच महाजन से सहायता माँगने आते थे । राज्यकर्ताओं से जनसमूह कुचला जाता हों , प्रजा के मनोभाव व्यक्त करने की ओर समय आने पर शासकों को लाल आँख दिखाने का काम महाजन करता था ।*
*सुरत के महाजन के अग्रणी ने अपने पुत्र प्रमोदराय को सिखावन दी कि नीतिपूर्वक रहना , सत्संग करना , वाणी में माधुर्य रखना और कुल मिलाकर बीस लाख की धन संपत्ति है , इसलिए इतनी ही संपत्ति की मर्यादा में रहकर व्यापार करना-चलाना । बीस लाख से अधिक का खतरा उठाना नहीं । पिता ने बहीं के प्रथम पृष्ठ पर यह सिखावन लिख रखी ।*
*एक बार प्रमोदराय बाहर गाँव गये हुए थे , तब उनके मुनिम मणिलाल के पास एक जहाज का मालिक आया और उसने जहाज का बीमा करने की बिनती की । मुनिम ने जहाज के कर्णधार का नाम लिखकर उसके माल का मूल्य आँक-कूतकर तीस लाख का बीमा किया । बीमा की रकम लेकर भोजन करवाकर जहाज के कर्णधार ( टंडेल ) को विदा किया । प्रमोदराय सेठ तीसरे दिन बाहरगाँव से लौट आये । उन्होंने जाना कि मुनिम ने बीस लाख से बहुत बड़ा जोखिम उठाया हैं , इसलिए बैचेन हो उठे । सदा पिता की सिखावन का एक-एक शब्द पालनेवाले पुत्र इस सदमें से मूर्छित हो गये ।अनुभवी मणिलाल मुनिम को भी अपनी भूल समझ में आई । जहाज यदि समुद्र में डूब जायें , तो तीस लाख रुपये देने पड़े । इतनी रकम लानी कहाँ से ? आखिर मुनिम ने अपने मन को मना लिया । सोचा कि ऋतु अच्छी हैं । समुद्र शांत है , जहाज के सफर के लिए सानुकूल पवन है । अन्त में सब कुछ अच्छा ही होगा ।*
*वयोवृद्ध मुनिम ने सेठ प्रमोदराय को धीरज बँधाई । सेठ की पत्नी सुभद्रा अत्यधिक धर्मिष्ठ थी । उसने भी पति को प्रेम से समझाये । रात को दोनों शयनगृह में सो रहे थे , तब मध्यरात्रि को जोरो की तूफानी आँधी चलने लगी । चहुँ और आँधी फैल गई । तेज पवन के झोकों में कई वृक्ष धराशायी हो गये । उनके मकान टूट पड़े । आधी रात को जागे हुए सेठ ने माना कि अब अवश्य ही उनके सिर पर भी आपत्ति की आँधी आयेगी ।*
*दूसरे दिन दोपहर तो प्रमोदराय पर तार आया कि समुद्री यात्रा करते हुए जहाज की कोई जानकारी या खबर प्राप्त नहीं हैं । तीस लाख रुपये तैयार रखिए । कल सवेरे लेने आयेगे ।*
*प्रमोदराय पर तो मानों दिन-दहाड़े बिजली गिरी । अब करना क्या ? आबरु जाये उससे तो मौत प्रिय थी । प्रमोदराय और सुभद्रा ने आफीम की दो प्यालियाँ घोलकर तैयार की । धर्मनिष्ठा सुभद्रा ने कहा , " एक बार सामायिक कर लूँ । जिनशासन में साँच को आँच नहीं आती । फिर एक साथ अफीम लेंगे । " सुभद्रा सेठानी सामायिक ( समतापूर्वक एकाग्र बैठने का नित्यकर्म ) पर सामायिक करने लगी । सेठ तो मधुर स्तवन सुनते हुए सो गये ।*
*रात का चौथा प्रहर था । किसी ने साँकल-कुंडी खड़खड़ाई । सेठानी ने द्वार खोले तो सिर -,मुँह पर कपड़ा बाँधे एक व्यक्ति हाथ में थैला लेकर अंदर दाखिल हुआ । सेठानी ने उसे निर्भय होकर मुँह-मस्तक पर बँधा कपड़ा निकाल देनें को कहा , तब मालूम हुआ कि भवानीपुर के ठाकुर का अपनी विरासत का भाग लेकर अलग हुआ ( ' फटायो ' ) राजकुमार था और बापु का स्वर्गवास हो जाने से सरकारी सूबा जप्ती लाये उससे पूर्व ही वह अपने हिस्से की रकम तथा जवाहिरात लेकर आया था ।*
*उसने कहा , " मुझे सूद नहीं चाहिए । आप यह धन-दौलत रख लीजिए । आपकी सच्चाई को मैं जानता हूँ । मेरे कबूतर के चूजे जैसे बच्चों पर दया करके यह पूँजी रख लीजिए । " इस तरह कहकर वह धन और सुवर्ण की थैली देकर चला गया । सेठानी सुभद्रा ने मिल्कत की सूची बनाई और अफीम की प्यालियाँ ढोल दीं । सवेरे सेठ ने आकुल-व्याकुल चित्त से कहा कि अब अफीम की प्याली पी लें , तब सुभद्रा सेठानी ने चौथे प्रहर में घटी घटना की बात कही । सेठ दुकान पर गये , तब उनके मुनिम मणिलाल ने बधाई दी कि जहाजी बेड़ा समुद्री तूफान के कारण अन्य बंदरगाह पर खींचा चला गया था । वे जहाज अब सहीसलामत मिल गये हैं । प्रमोदराय सेठ मन-ही-मन सेठानी सुभद्रा की सूझ-बूझ , जानकारी और धर्मनिष्ठा को अभिनंदित करने लगे ।*
*एक सवाल 🙋 सेठ प्रमोदराय अपनी इज्ज़त जाने के डर से आत्म दाह करने का जो निश्चय किया आपकी राय मे वो सही था या नहीं ❓अपनी राय जरूर बतावे*
*साभार 🙏🌹🙏*
*जिनशासन की कीर्तिगाथा*
*🏳️🌈जैनम जयति शासनम 🏳️🌈*
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें