*🌹 नागिला 🌹*
*बड़े भाई भवदत्त के साथ छोटा भाई भवदेव भी संयम की राह पर चल पड़ा । भवदेव की पत्नी नागिला के सिंगार का उत्सव रचा गया था । सिंगार से शोभित नववधू नागिला से भवदेव ने कहा ,*
*" मैरे लिए बड़े भाई की इच्छा ही सर्वस्व हैं । इसलिए अब संसार की अपेक्षा साधुता मेरा जीवनपथ बनेगा । " बड़े भाई भवदत्त की तरह भवदेव भी सुस्थिर आचार्य के शिष्य बनें । भवदेव के कुछ दिन वैराग्यभाव में व्यतीत हुए , परंतु वर्षा की बाढ़ समाप्त होने पर जैसे नदी की तह का कीचड़ दृष्टिगत हो , वैसे ही मुनि भवदेव को एकांत में नागिला का स्नेहपूर्ण स्मरण होने लगा । चातुर्मास के स्थिरवास के समय आकाश के घनश्याम-काले बादलों में नागिला का केशपाश नजर आता था । इन्द्रधनुष में नागिला के नृत्य के रंग छिटके हुए प्रतीत होते थे । मयूरों की केका में नागिला का कंठरव सुनायी पड़ता था । रिमझिम बरसते बादलों में नागिला की विरह -पीड़ा से लगातार टपकते हुए आँसू दृष्टिगोचर होते थे ।*
*एक दिन महामुनि भवदत्त की मृत्यु हुई । तत्पश्चात् भवदेव ने सोचा कि रुदन करके श्रमित हुए उसके हृदय को नागिला ही शांत कर सकें ऐसी हैं । आज तक तो नागिला के निकट जाने में अगम्य बेड़ियाँ पग में जकड़ जाती थी , परंतु बड़े भाई का कालधर्म होते ही अब वैसा अनुभव नहीं होता । बारह वर्ष के बाद मुनि भवदेव अपने गाँव सुग्राम में आयें । यहाँ एक मंदिर में पड़ाव किया । मुनि भवदेव के आने की खबर नागिला को मिली । उसे ज्ञात हुआ कि मुनि चारित्र्य छोड़ने के लिए उत्सुक हुए हैं , तब वह गहन विचार में डूब गई । स्वधर्म से मुँह मोड़े वह तो कायर कहलाये । नागिला ने एक वृद्ध श्राविका को अपनी योजना समझाई । एक बालक को कुछ सिखा-पढ़ाकर तैयार किया ।*
*रात समाप्त होने पर नागिला वृद्ध श्राविका के साथ भवदेव ठहरें थे , उस मंदिर में आई । नागिला से मिलने के लिए आतुर भवदेव ने उस स्त्री से पूछा , " गाँव में नागिला कहाँ रहती हैं ? वह क्या करती हैं ? "*
*उस समय आगे से निश्चित किये अनुसार एक बालक आकर नागिला से कहने लगा , " माँ ! माँ ! आज मुझे गाँव में भोजन करने का निमंत्रण मिला हैं । भोजन के साथ दक्षिणा भी हैं , इसलिए मुझे पहले पीयें हुए दूध का वमन कर डालना है फिर भोजन और दक्षिणा के बाद पुनः वमन किया हुआ वह दूध पी लूँगा । "*
*यह सुनकर मुनि भवदेव हँस पड़े और बोले , " अरे बालक ! तू कैसी बेहूदा बात कर रहा है ? वमन किया हुआ , निंदा करने योग्य दूध तू वापस पी जायेगा ? "*
*यह बात सुनकर नागिला ने कहा , " मुनिराज , मैं ही नागिला हूँ । आपने पहले जो संसार त्याग दिया है , उसे पुनः अपनाना चाहते है ? भवसागर से पार तारनेवाली दीक्षा का आपने स्वीकार किया है , तो फिर क्यों दुर्गतिरुप संसार को पुनः अपनाने के लिए उत्सुक हुए हो ? मुश्किल से घोड़े की सवारी प्राप्त हुई हैं , उसे तजकर गधे पर सवारी करना क्यों सोच रहे हो ? आप जिस चारित्र्य के मार्ग पर चल रहे हैं , वही चारित्र्य का मार्ग शालिभद्र , मेघकुमार और धन्ना सेठ को मुक्ति-मोक्ष तक ले गया यह क्यों भूल जाते हों ? गुफा में राजुल साध्वी को देखकर विचलित हुए रथनेमि को राजुल ने दिए हुए उपदेश से देह की क्षणभंगुरता का ख्याल आया और रथनेमि ने मन पर काबू प्राप्त किया था यह क्या आप भूल गये ? मन के मदमस्त हाथी को आप अंकुश लगाकर काबू में क्यों रखते नहीं हैं ? जन्म-मृत्यु के चक्कर में से मुक्त होने का यह एक ही मार्ग है , यह आप अच्छी तरह जानते हैं । इसके अतिरिक्त मुझे भी यह बताते हुए आनंद उत्पन्न होता है कि मैंने भी गुरु से शीलव्रत अंगीकार किया हैं । आपभी गुरु के पास वापस जाकर शुद्ध चारित्र का पालन कीजिए । "*
*मुनि भवदेव नागिला से उपदेश प्राप्त करके गुरु के पास गये । समय बीतने पर वे अवसर्पिणी काल में भरतक्षेत्र के अंतिम केवलज्ञानी जंबुस्वामी हुए ।*
*एक सवाल 🙋 मुनिभवदेव का एक अन्य नाम प्रसिद्ध नाम❓*
*साभार 🌹🙏 🌹*
*जिनशासन की कीर्तिगाथा*
*🏳️🌈जैनम जयति शासनम 🏳️🌈*
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