*श्री मल्लिनाथ भगवान*
*श्री मल्लिनाथ परमात्मा के तीन भव हुए। पूर्व भव में परमात्मा की आत्मा वैजयंत नाम के विमान में रहकर वहाँ तैंतीस सागरोपम का आयुष्य पूर्ण कर मतिज्ञान , श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान के साथ इक्ष्वाकुवंश के कश्यप गोत्र के विदेह देश की मिथिला नगरी के राजा कुंभ की प्रभावती राणी की कुक्षी में फाल्गुन सुद चौथ के दिन मेष राशि अश्विनी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय च्यवन हुआ। तब प्रभु की माता ने चौदह स्वप्न देखे थे ।*
*मल्लिनाथ प्रभु मिथिला नगरी के राजा कुंभ की प्रभावती राणी की कुक्षी में नौ महीने और सात दिन रहे। मार्गशीर्ष सुद अगयारस के दिन अश्विनी नक्षत्र में मध्यरात्रि में प्रभु का जन्म हुआ। तब छप्पन* *दिककुमारीकाओ ने आकर सूतीकर्म किया। चौसठ इन्द्रों ने मेरु पर्वत पर एक करोड़ साठ लाख कलशों से प्रभु का जन्माभिषेक महोत्सव किया।*
*प्रभु की दायी जांघ पर कुंभ का लंछन था। नील वर्ण और पच्चीस धनुष्य की काया थी। प्रभु एक सौ वर्ष कुमार अवस्था में रहे।*
*नौ लोकांतिक देव आकर प्रभु को तीर्थ स्थापना कर जगत का कल्याण - उद्धार करने के लिये विनंती करते है। प्रभु हरदिन एक करोड़ आठ लाख सोना मोहर का दान देते है। मिथिला नगरी से दीक्षा का वरघोड़ा निकलता है। प्रभु जयंती शिबिका में बैठकर सहस्राम्र वन में पधारते है। वहाँ अशोकवृक्ष की नीचे लोच करते है , अठ्ठम का तप करके एक सौ वर्ष की आयु में मार्गशीर्ष सुद एगयारस के दिन मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में तीन सौ के साथ दीक्षा ग्रहण की। तब प्रभु को चौथा मनपर्यवज्ञान हुआ। दीक्षा समये इन्द्र ने दिया देवदुष्य जीवनभर रहा था।*
*प्रभु दीक्षा के बाद बिना प्रमाद निद्रा किये अप्रमत भाव से मिथिला नगरी के सहस्राम्र उधान में अठ्ठम का तप के साथ अशोकवृक्ष के नीचे ध्यान में थे तब प्रभु को दीक्षा के दिन ही केवलज्ञान हुआ। लोकालोक के सर्व भावों को देखने और जानने लगे। प्रभु अठारह दोषों से रहित हुए , आठ प्रतिहार्य और चौतीस अतिशयों से युक्त हुए। तब देवों ने आकर समवसरण की रचना की। प्रभु मध्य सिंहासन मे तीन सौ धनुष्य बड़े अशोकवृक्ष की नीचे बैठकर चार मुख से सामायिक के स्वरुप को समजाती पैंतीस गुणों से युक्त वाणी से देशना दी। देशना सुनकर अनेक स्त्री पुरुषों ने दीक्षा ली। भिषज आदि अट्ठाईस गणधर हुए।*
*प्रभु विचरण करते हुए समेतशिखर पधारते है। वहा मासक्षमण का तप करके , कार्योत्सर्ग मुद्रा में पाँच सौ के साथ फाल्गुन सुद बारस के दिन पूर्व रात को मेष राशि और भरणी नक्षत्र में मोक्ष में गये। तब प्रभु का चारित्र पर्याय चौपन हज़ार नौ सौ वर्ष का था और पंचावन हज़ार वर्ष का प्रभु का आयुष्य पूर्ण हुआ। प्रभु का शासन चौपन लाख वर्ष तक चला था। प्रभु के शासन में एक दिन के बाद मोक्ष मार्ग शुरु हुआ था जो संख्यात पुरुष पाटपरंपरा तक चला था। प्रभु के शासन में स्त्री तीर्थंकर अच्छेरा हुआ था। प्रभु के भक्त राजा अजित थे। प्रभु के माता पिता महेन्द्र देवलोक में गये थे।*
*श्री श्री मल्लिनाथ भगवान, मिथिला तीर्थ, सीतामाढ़ी, विहार*
*आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्थी, जैन धर्म के उन्नीसवें तीर्थंकर भगवान श्री श्री मल्लिनाथ जी का च्यवन कल्याणक तिथि है |*
*जैन धर्म के उन्नीसवें एवं एकमात्र महिला तीर्थंकर भगवान श्री मल्लिनाथ जी का च्यवन कल्याणक मिथिलापुरी नगर के इक्ष्वाकु वंशीय राजा कुम्भ की पत्नी राणी प्रभावती के रत्नकुक्षी में फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन मेष राशि में हुआ था। माता ने अपूर्व १४ स्वप्नों का दर्शन किया था |*
*भगवान श्री मल्लिनाथ जी के शरीर का वर्ण नीला, जबकि उनका चिन्ह कलश है। उनके यक्ष का नाम कुबेर और यक्षिणी का नाम धरणप्रिया देवी है।*
*जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान श्री मल्लिनाथ जी के गणधरों की कुल संख्या २८ थी, जिनमें अभीक्षक स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।*
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