Kankan Parswnath

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*🛕108 श्री पार्श्वनाथ प्रभुजी तीर्थ🛕*
 *क्रमांक 2️⃣8️⃣*
 *🛕श्री कंकण पार्श्वनाथ प्रभु 🛕*  
*प्रथम नजर में प्रतिमा के दर्शन -* श्री कंकण पार्श्वनाथ प्रभु पाटण के ढंढेरवाडा के विशाळ बैठे घाट के जिनालयम में बिराजमान है । प्रतिमाजी अलौकिक है और संप्रतिकालीन है । प्रतिमाजी पाषाण के है और भूखरा (लाल और केशरी मिले हुए) वर्ण के हैं । प्रभुजी पद्मासन में बिराजमान है और फणे बिना के है । परमात्मा की ऊंचाई 27 ईंच है और चौड़ाई 23 ईंच है । 

*अतीत की गहराइयों में एक डूबकी -* नारी के हाथों को शोभायमान श्रृंगार का एक आभूषण का नाम परमात्मा के नाम के पास में बिराजित दिव्य श्रृंगार को कैसे प्राप्त हुआ होगा ? नारी के वह सौभाग्य चिह्नन ऐसा अनुपम सौभाग्य कैसे मिला होगा ? इस प्रश्न के उत्तर की पड़ताल में बहुत सारे साधनों को देखकर बिना उत्तर के वापिस आया । प्रभुना नामनी गुण निष्पन्नुता का रहस्य अतीत के गर्त में कही खो गया है परंतु, इतना तो स्पष्ट है कि, यह प्रभु की उपासना आत्मा के सौंदर्य को खिला देता है और उपासक को सर्वश्रेष्ठ सौभाग्य का स्वामी बनाते है । 

वर्तमान में तो अनामी बनकर सिद्धशिला पर बिराजमान पार्श्वनाथ परमात्मा के छोटी बड़ी श्रृंखला उनके अकल्पय प्रभावसंपन्नता के दस्तावेज का जीता जागता सबुत है । विभिन्न और विशिष्ट प्रभावी प्रतिभा को धारण करने वाले पार्श्वप्रभु की सैकड़ों प्रतिमाजी स्वयं के व्यक्तिगत गुणनिष्पन्न विशिष्ट अभिधान को धारण कर रही है।

 इस प्रकार से सैकड़ों नामों के धारक एक मात्र पार्श्वप्रभु की यह विशिष्टता की पराकाष्टा यहाँ पर दिखाई देती हैं । श्री कंकण पार्श्वनाथ प्रभु एक है, और उनके प्रभाव अनेक है । जिससे, प्रभाव के अनुरूप नाम भी अनेक है । पुष्प की माला से कंकण पार्श्वनाथ परमात्मा की पूजा करने वाले पूजक को हमेशा के लिए बिच्छु के भय से मुक्त बनता है । जो भक्त परमात्मा के कंठ पर पुष्प की एक माला चढ़ाता है, उसे विश्व के सभी बिच्छु अभयदान देते हैं । प्रभु की प्रभावकता को सूक्ष्म विज्ञान का, तर्क और दलीलों की संकीर्ण सृष्टि में रहने वाला सामान्य मानव नहीं समज पाता है यह बहुत ही सहज है ।इस प्रभाव पर फ़िदा हुए भक्त के हृदय में “वींछीया पार्श्वनाथ “ को नये नाम से परमात्मा को नवाज़ा है । प्रभु के इस परम प्रभाव का परिचय कराता हुआ बिच्छु का प्रतीक जिनालय की दीवाल पर अंकित किया हुआ है । विषयों के अनादि विष को उतार देने वाले परमात्मा बिच्छु के विष से पूजक को निर्भय बनाते है । 

पाटण नगर के ढंढेरवाडा में बिराजमान यह पार्श्वप्रभु “कंकण" और “बिछीया” के अलावा तीसरे और भी नाम से प्रचलित हैं वर्तमान मे सभी इन्हें “कलिकुंड पार्श्वनाथ” के नाम से पहचानते हैं । प्रभु आपके नाम है हजार, कौन-से नाम से लिखे पत्रिका ? ऐसी एक मीठी उलझन भक्त के ह्रदय में आवे यह सहज है ! 

यह अलौकिक प्रतिमाजी संप्रतिकालीन मानी जाती हैं और वर्तमान जिनालय संवत 1700 के आस पास में श्री संघ द्घारा निर्मित है । मागसर सुद- 2 को प्रतिष्ठा दिन श्री संघ प्रतिवर्ष उजवणी करता है । 

*कला और मूर्तिकला के कार्य -* यह एक बहुत ही सुंदर और प्राचीन मंदिर है । मंदिर के द्वार पर दीवारों पर की गई नक्काशी और चित्रकारी कलात्मक और बहुत सुंदर है । पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति बहुत ही आकर्षक और चमत्कारी है । ऐसा कहा जाता है कि पार्श्वनाथ प्रभु की इस मूर्ति की पूजा करने और "नमन" (मूर्ति का स्नान करने वाला जल) शरीर के डंठल भाग में लगाने से सर्प और बिच्छू का डंक ठीक हो जाता है । मूर्ति के पीछे पर्रिकर को कलात्मक रूप से उकेरा गया है । यह कालिकुंड पार्श्वनाथ की सबसे प्राचीन मूर्तियों में से एक है, जिसे कंकण पार्श्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है ।

*शास्त्र -* कंकण पार्श्वनाथ का एक उल्लेख "365 श्री पार्श्वविजय नाममाला", "श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ छंद", "पाटण चैत्यपरिपाति", "सुभद्रा सती का रास", "श्री 108 पार्श्वनाथ भगवान का छंद", "पाटण जिनालय स्तुति" में किया गया है । राधनपुर में कंकण पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति है, श्री अजितनाथ भगवान मंदिर में भोयरा शेरी में और संताक्रूज़, मुंबई में श्री कालीकुं पार्श्वनाथ मंदिर में ।

पाटण रेलवे-स्टेशन से एक कि.मी. दूरी पर आया हुआ ढंढेरवाडे में यह तीर्थ विद्यमान है । श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ के जिनालय के नाम से प्रचलित हैं ।यह श्री कंकण पार्श्वनाथ वर्तमान में श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ के नाम से प्रचलित हैं । ढंढेरवाडे में दूसरे दो और मनोहर जिन चैत्य आये हुए हैं । उसमें से एक चैत्य में बिराजमान श्री ढंढेर पार्श्वनाथ वर्तमान मे “श्री श्यामला पार्श्वनाथ" के नाम से प्रचलित हैं, और बहुत ही चमत्कारिक माना जाता है, कुमारपाल महाराजा प्रतिदिन इस प्रतिमाजी के समक्ष स्नात्र पूजा करते थे, दूसरा श्री महावीर स्वामी का चैत्य है । 

*स्तुति -*
हाथ कंकणने प्रभु शुं ? आरसी धरवी पडे ?
एम नाथ कंकण ताहरी ओळखाण शुं करवी पडे ? वींछी नहीं करडे कदा तने पुष्प पाले पूजता, श्री कंकण प्रभु पार्श्वने भावे करुं हुं वंदना ।

*जाप मंत्र -*

ॐ ह्रीं अर्हं श्री कंकण पार्श्वनाथाय नमः

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