एक थे आदि
और
गिरिराज है अनादि l
संपूर्ण वर्ष में कोई एक महा मंगलकारी दिन हो तो वह है फागण सुद आठम ।
आखिर क्यों ?
क्योकि फागण सुद आठम के ही दिन वर्तमान चोविसी के प्रथम तीर्थंकर युगादिदेव श्री आदिनाथ दादा ने दर 1010 वर्ष , पूर्व 99 बार श्री शंत्रुजय गिरिराज की प्राचीन घेटी पाग से दादा के दरबार तक की यात्रा की थी ।
तो क्या आदिनाथ दादा पूर्व ९९ बार गिरिराज पर पधारे इसलिए गिरिराज महान है ? नहीं
गिरिराज महान व अत्यंत पवित्र है इसलिए आदिनाथ दादा पूर्व ९९ बार पधारे थे ।
पूर्व ९९ बार का मतलब ६९,८५,४४० अबज बार प्रभु पधारे थे ।
इस पृथ्वी का सबसे उत्तम और पवित्र हिस्सा है तो वो केवल और केवल गिरिराज है । जो अनंत काल से है और हमेशा के लिए रहेगा - इसलिए शाश्वत की उपमा दी गयी है ।
श्री अभिनंदन स्वामी ने कहा था कि तीर्थंकरों की अनुउपस्थिती में पुण्यात्माओं को मोक्ष दिलवाने का कार्य गिरिराज करेगा , और यह हो रहा है ।
चौविहार छट्ठ कर के सात यात्रा करने वाले भाग्यशाली आत्माएँ प्राय तीसरे भव में मोक्ष पाती है ।
जैसे तीर्थंकरों के गुणों का वर्णन करने हेतु गणधर भगवतों के शब्द कम पड़ते है उसी प्रकार से गिरिराज का वर्णन और अदित्य चिंतामणि समान गिरिराज की महिमा का पूर्ण वर्णन करने के लिए तीर्थंकरों के शब्द भी सक्षम नहीं है ।
ऐसा व अनोखा गिरिराज पाक्षाण से बना हुआ कैसे हो सकता है ? यह तो पुर्ण स्वर्ण से ही बना हुआ है ।
इस विषम काल में चौरी के भय से देवताओं ने मनुष्यों के चर्म चक्षुओ के लिए पाषाण का ही बताया है ।
एक बहुत ही पुण्यशाली गिरिराज के परम साधक आचार्य भगवंत श्री मणिविजयसुरिश्र्वरजी थे जिन्हें यह गिरिराज स्वर्ण का ही दिखता था अन्य किसी को नहीं । आज भी पूज्य गुरूभगवंत की देरी घेटी पाग के सामने मौजूद है ।
" फागन सुद ८ के पवित्र व महान दिवस में इस पवित्र गिरिराज की भाव यात्रा करने से भी भवों भव के फेरे टालने में सक्षम बन सकते है । "
सिद्धाचल गिरि नमो नम:
विमलाचल गिरि नमो नम:
शंत्रुजय गिरि नमो नम:
वंदन हो गिरिराज को ।🙏🙏
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