Dharnedra Parswnath

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*🛕108 श्री पार्श्वनाथ प्रभुजी तीर्थ🛕*
 *क्रमांक 3️⃣0️⃣*
 *🛕श्री धरणेन्द्र पार्श्वनाथ प्रभु 🛕*  
      
भरतक्षेत्र के वाराणसी शहर पर राजा अश्वसेन और महारानी वामादेवी का शासन था । महारानी वामादेवी को 14 शुभ स्वप्नों म के दर्शन हुए और उसका मतलब तीर्थंकर के रूप में बताया गया ।

मिगसर वद दशम की आधी रात में, राजकुमार का जन्म होते ही । सारे कैदियों को मुक्त करने के लिए कहा गया था, करों को समाप्त कर दिया गया और पूरे शहर ने राजकुमार के जन्म को उल्हास से मनाया गया ।

एक बार राजा और रानी एक बगीचे में गए । रात का समय था । राजा के पास एक काला सांप आया । राजा इससे अनभिज्ञ था । लेकिन रानी ने इस पर ध्यान गया और जल्दी से राजा को दूसरी ओर ले गई और सांप भी बिना कुछ नुकसान किये वहाँ से चला गया । यह गर्भावस्था का प्रभाव था । इसके कारण, राजकुमार को "पार्श्व नाथ" नाम दिया गया था ।

राजकुमार पार्श्वनाथ शादी करने के लिए तैयार नहीं थे । लेकिन, काफी मनुहार के बाद वे राजी हो गया, और उन्होनें कुशस्थलपुर के राजा प्रसेनजित की बेटी राजकुमारी प्रभावती से विवाह कर लिया । क्योंकि राजकुमारी प्रभावती ने केवल राजकुमार पार्श्वनाथ विवाह करने की और किसी अन्य के साथ विवाह न करने की शपथ ली थी । शादी के बाद पार्श्वनाथ ने सिंहासन पर चढ़ने से इनकार कर दिया ।क्योंकि वे वह दुनियावी कामों से दूर रहना चाहते थे ।

एक बार जब कमठ नाम का एक व्यक्ति की "पंचाग्नि तपस्या" नामक घोर तपस्या चल रही थी । राजकुमार पार्श्वनाथ वहाँ पहुँचे । आग की लपटें आसमान तक पहुँच गई थीं ।

लेकिन, राजकुमार पार्श्वनाथ ने अपनी दिव्यता से ऐसा देखा कि उस हवन के एक लकड़ी में सांपों का एक जोड़ा जल रहा था । राजकुमार पार्श्वनाथ ने हवन में से उस लकड़ी को बाहर निकाला । उस लकड़ी में सांप के जोड़े को जलते हुए देखा ।

राजकुमार पार्श्वनाथ ने "नमस्कार महामंत्र" का जाप किया और उस नाग जोड़े को आजाद किया और उन तपस्वी से नाराज़ न होने का अनुरोध किया । उसी क्षण, दोनों सांप वहा से गुजर गए । बाद में, वे साँपों के देवता बन गए और देव धर्णेन्द्र और देवी पद्मावती के नामसे पहचान में आये । कमठ को पिछले जन्म का ज्ञात हुआ तो वो भगवान पार्श्वनाथ से अपने पिछले जन्म का बदला लेना चाहते थे । पार्श्व प्रभु को नुकसान पहुँचाने के लिए, उन्होंने एक शेर, बाघ, तेंदुए आदि का रूप धारण किया ।

लेकिन कोई नुकसान नहीं कर सकता था, क्योंकि भगवान पार्श्वनाथ गहन ध्यान में थे और स्तंभ की तरह बहुत मजबूत थे ।

कमठ विचलित हुआ और फिर आसमान में काले बादल इकट्ठे करवाते हुए भारी बारिश की शुरुवात की थी, जिससे पानी का स्तर तेजी से बढ़ रहा था । धीरे-धीरे यह उनकी छाती के स्तर तक आ गया । उस क्षण धर्णेन्द्र का आसन हिलने लगा । उन्होंने पानी में खड़े पार्श्वप्रभु को देखा । वह मदद के लिए दौड़ा । उन्होंने पार्श्वनाथ भगवान के चरणों के नीचे एक बड़ा कमल बनाया और धर्णेन्द्र ने स्वयं अपनी सात फनों को उठाया, उन्हें फैलाया और पार्श्वप्रभु के सिर पर छत्र चढ़ाया और इस प्रकार उन्होंने प्रभु की रक्षा की । बाद में, कमठ ने पश्चाताप किया और चले गए । जब हर बात साफ हो गई तो धर्णेन्द्र भी चला गया, लेकिन पार्श्व प्रभु इस सब से अनजान थे ।

कालांतर में राजकुमार पार्श्वनाथ ने दीक्षा ली और पंच मुष्टि लोच किया ।

अरावली पर्वत पर मंदिर का इतिहास काफ़ी प्राचीन है ।

उससे जुड़ी एक चमत्कारी घटना । जिससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर की मूर्ती काफी चमत्कारी है । अरावली पहाड़ पर एक बार महाराण प्रताप और अकबर के बीच में घमासान युद्ध हुआ, अकबर की विशाल सेना के सामने महाराणा प्रताप की सेना का और धनबल का काफी नुकसान हो रहा था । ऊपर से ज़ोरदार बारिश हो रही थी ।

महाराण प्रताप काफी चिंतित हो गये । तभी वहाँ से आचार्य भगवंत पूज्य लक्ष्मीसागर सूरीश्वरजी महाराज विहार कर रहे थे ।

महाराण प्रताप की ये दशा देखकर आचार्य भगवंत ये उन्हें प्रेरणादायक उपदेश दिया कि आप धमशानी लेन आरावली के तीर्थंकर भगवान धर्णेन्द्र पार्श्वनाथ की आराधना करो वो जरूर आपकी सहायता करेंगें ।

आप ऐसे मुरझाकर मत बैठिये, आप आज से ही तीन दिन तक धराणेन्द्र पार्श्वनाथ प्रभु की आराधना करो वो सब अच्छा करेंगे ।

महाराणा प्रताप ने तीन दिनों तक अंतर्मन से प्रभु की भावविभोर होकर आराधना की । उस आराधना करते वक्त 8 से 10 बार आँखें भर आई थी ।

चौथे दिन जब महाराणा प्रताप की आँखें खुली तो सामने दानवीर भामाशाह शेठ को देखा ।

दानवीर भामाशाह शेठ ने अपनी सारी सम्पति महाराणा प्रताप को दान में देकर बोले देश की रक्षा के लिये कुछ भी करने की प्रेरणा देते हो । इतने बड़े दान से महाराण प्रताप फिर से अपनी सेना को सुसज्जित करते है ।ओर अकबर के सामने पराक्रम करने के लिए तैयार हो जाते है । यह भी सुनने में आया है कि भामाशाह सेठ ने भी धर्णेन्द्र पार्श्वनाथ प्रभु की आरधान की थी । इनसे ये साबित हो जाता है कि महाराणा प्रताप की सच्चे हृदय से की गई आराधना से उन्हें दान मिला और दानवीर भामाशाह सेठ ने दान किया । इस अति प्राचीन आरावली पहाड़ियों में स्थित प्रभु धर्णेन्द्र पार्श्वनाथ की अलौकिक मूर्ति के दर्शन जरूर करने चाहिए । और सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जायेगी ।

इस मूर्ति के नीचे से पानी बहता है,ओर जितने श्रावक यहाँ आते हैं उतना ही कुंड भरता है । पहाड़ियों में होने की वजहों से काफी कम श्रद्धालु यहाँ आते है । आज भी ये तीर्थ श्रावकों को जानकारी के अभाव से अज्ञात है ।

*🙏🙏पोस्ट संकलित करने में किसी भी प्रकार की त्रुटि एवं अविनय अशातना हुई हो तो अंतर्मन से मिच्छामि दुक्कड़म् ।🙏🙏*
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