(राग : कोन दिशा में लेके चला रे)
नेम नेम मारा, नेम नेम मारा,
नेम नेम मारा नेमजी… (२)
गिरनारे शोभे देखो नेमजी शामलीया
मुखडुं जोवा ने टमटम, चमके छे तारलीया,
जोवा चमके छे तारलीया, बेठा मलके छे शामलीया,
राजीमती ना, मन वसीया..
गिरनारे शोभे…
मधुबनमां ज्यां पगला मांडे, योगी एवा नेमकुमार,
विचरे त्यां वनराजी खीलती, (२ वार)
साधनानी ऊगती सवार,
ऊगता साधकने वंदे, सुरज ने चांदलीया,
गिरनारे शोभे देखो नेमजी शामलीया…
जुनागढनी धरती कहेती, नेम राजुलनी प्रीतकथा,
साक्षी बनी सहसावन कहेतुं, (२ वार)
संयम केवल मोक्षकथा,
अभिषेक करवा रुमझुम, वरसे छे वादळीया,
गिरनारे शोभे देखो नेमजी शामलीया…
मधुर स्वरे कोयलीया गावे, जय जय दादा नेमिनाथ,
दर्शन करता भक्तो कहेता, (२ वार)
राजुल हुं छुं पकडो हाथ,
पर्वतना शिखर पर साथे, टहुके छे मोरलीया,
गिरनारे शोभे देखो नेमजी शामलीया…
[ राजुलने तजी नेमकुमार, चढीया एतो गढ गिरनार,
अखंड प्रीतने साचवे, राजुल सती शिरदार,
नेमना पगले चालवा, थनगने ए राजुल नार,
प्रीत थकी ते पामती, हो केवळ लक्ष्मी श्रीकार ]
(रचना : श्रमणी भगवंत (राजप्रिया))
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