महापुरुषों के पूर्व भव
पोस्ट:-4
सम्राट संप्रति का पूर्व भव
भाग:- 4
जैन मुनियों को बहुत लड्डू मिले हुए देखकर वह ललचाया,
मुनि जिस सेठ के घर से बाहर
निकले थे वहां उस भिखारी ने याचना की,
महात्मन! आप तो पुण्यशाली हो
करोड़पति के घर हमें पाव रखने का अधिकार नहीं,
वही तुम्हारे चरणों में उनके
मस्तक झुक रहे है,
आप के पात्र में है उसमें से
थोड़े लड्डू मुझे दे दो,
3 दिनों का भूखा हूं,
कदाचित आज भिक्षा के बिना मेरे प्राण तड़प तड़प कर निकल
जाएंगे,
आपको तो और थोड़े घरों में से भ्रमण करने पर भिक्षा मिल
जाएगी,
कृपा करो दयालु!
भाग्यशाली इस भिक्षा के ऊपर
हमारा भी अधिकार नहीं है,
किसका अधिकार है तो फिर?
हमारे गुरु भगवंतो का....
उन्हें तू विनती कर वे तेरी बात का प्रत्युतर देंगे।
लड्डू के लालच से भिखारी पीछे-पीछे चला,
आगे महात्मा चले,
उपाश्रय में आकर साधु ने
भिक्षुक का वृतांत सुनाया,
उसने मुझे लड्डू देने की विनती
की,
उस समय मैंने ज्ञान का उपयोग किया,
भविष्य में यह आत्मा जिनशासन का
आधार बन सकेगी,
मुझे ऐसी उज्जवल संभावना दीखी,
इसलिए हर्ष सहित भिक्षुक को
मैंने कहा भिक्षा तो मिले,
क्रमश....
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