महाविदेह क्षेत्र के बीस विहरमान तीर्थंकर और उनकी
विशेषतायें:
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विहरमान का अर्थ होता हैं विराजमान अर्थात् जो तीर्थंकर
वर्तमान में हैं, इन्हे वर्तमान तीर्थंकर भी कहते
हैं। ये जैन परम्परा में तीर्थंकर समान होते हैं , इनमें तनिक भी अन्तर नही होता अन्तर केवल एक ही बात का होता है कि २४ तीर्थंकर
परम्परा के तीर्थंकर पृथ्वी में भारत देश में जन्म लेते हैं। जबकि विहरमान
तीर्थंकर महाविदेह क्षेत्र में ।इन्हें विद्यमान के बीस तीर्थंकर कहा जाता है।यहां
सभी तीर्थंकर भगवन्तों के पांच कल्याणक नहीं होते हैं क्रमशः २,३, एवं पांच कल्याणक होते हैं।जैन
धर्म की मान्यतानुसार छह काल होते हैं जिनमें इनका परिवर्तन भरत एवं ऐरावत क्षेत्र
में होता है विदेह / महाविदेह क्षेत्र में नहीं।वहां सदैव चतुर्थ काल ही प्रवर्तता
है।जीव चतुर्थ काल में ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
१) भरत ऐरावत क्षेत्र की तरह महाविदेह क्षेत्र में एक के
बाद एक ऐसे चौबीस तीर्थंकरों की व्यवस्था नहीं है। महाविदेह क्षेत्र की पुण्यवानी
अनंतानंत और अद्भुत है. वहां सदाकाल बीस तीर्थंकर विचरते रहते हैं, उनके नाम भी हमेशा एक सरीखे ही रहते हैं; इसलिए उन्हें जिनका कभी भी वियोग न हो, ऐसे विहरमान बीस तीर्थंकर भी कहते हैं।
२) महाविदेह क्षेत्र में बीस से कभी भी कम तीर्थंकर नहीं
होते हैं। अतः उन्हें जयवंता जगदीश भी कहते हैं क्योकि वे सभी साक्षात् परमात्म
स्वरुप में विद्यमान रहते हैं।
३) इस तरह महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकरों का कभी भी अभाव
नहीं होता है।
४) महाविदेह क्षेत्र का समय सदाकाल एक सा ही रहता है और
वहां सदैव चतुर्थ काल के प्रारम्भ काल के समान समय रहता है।
५) महाविदेह क्षेत्र के पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण इस तरह चार विभाग करने से पाँचों महाविदेहों में ५×४=२० विभाग हुए। एक विभाग में एक; ऐसे बीस तीर्थंकर सदा विचरते हैं.
६) ये बीस विहरमान तीर्थंकर सदाकाल से धर्म-दीप को प्रदीप्त
कर रहे हैं और करते रहेंगे।
७) महाविदेह क्षेत्र के इन बीसों का जन्म एक साथ सत्रहवें
तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ जी के निर्वाण के बाद महाविदेह क्षेत्र में हुआ था।
८) बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी के निर्वाण के
पश्चात महाविदेह क्षेत्र के इन सभी तीर्थंकरों ने एक साथ दीक्षा ली।
९) बीसों विहरमान एक हज़ार वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में रहते
हैं और इन्हें एक ही समय में केवलज्ञान, केवल दर्शन की प्राप्ति होती है।
१०) भविष्यकाल की चौबीसी के सातवें तीर्थंकर श्री
उदयप्रभस्वामी के निर्वाण के पश्चात बीसों विहरमान एक ही समय में मोक्ष पधारेंगे।
११) इसी समय महाविदेह क्षेत्र में दूसरे बीस विहरमान
तीर्थंकर पद को प्राप्त होंगे।
१२) यह अटल नियम है कि बीस विहरमान तीर्थंकर एक साथ जन्म
लेते हैं, एक साथ दीक्षित होते हैं, एक साथ केवलज्ञान को प्राप्त होते हैं.
१३) यह भी नियम है कि जब वर्तमान के बीस विहरमान तीर्थंकर
दीक्षित होते हैं तब भावी बीस विहरमान तीर्थंकर जन्म लेते हैं।
१४) जब वर्तमान के बीस विहरमान तीर्थंकर केवल्य प्राप्त
होते हैं तब भावी बीस विहरमान तीर्थंकर दीक्षित होते हैं।
१५) वर्तमान के जब बीस विहरमान तीर्थंकर निर्वाण प्राप्त
करते हैं तब भावी बीस विहरमान तीर्थंकर केवलज्ञान को प्राप्त कर तीर्थंकर पद पर
आसीन हो जाते हैं और उसी समय अन्य स्थानों में बीस विहरमान तीर्थंकरों का जन्म
होता है।
१६) प्रत्येक विहरमान तीर्थंकर के ८४-८४ गणधर होते हैं।
१७) प्रत्येक विहरमान तीर्थंकर के साथ दस-दस लाख केवलज्ञानी
परमात्मा रहते हैं
१८) प्रत्येक विहरमान तीर्थंकर के साथ एक-एक अरब मुनिराज और
इतनी ही साध्वियाँ होती हैं।
१९) बीसों विहरमान तीर्थंकरों के संघ में कुल मिलाकर दो
करोड़ केवलज्ञानी, दो हज़ार करोड़ मुनिराज और दो
हज़ार करोड़ साध्वियाँ होती हैं।
२०) महाविदेह क्षेत्र में सदाकाल रहने वाले विहरमान बीस
तीर्थंकरों के एक सरीखे नाम इस तरह हैं –
०१. श्री सीमंधर स्वामी
०२. श्री युगमंदर स्वामी
०३. श्री बाहु स्वामी
०४. श्री सुबाहु स्वामी
०५. श्री संजातक स्वामी
०६. श्री स्वयंप्रभ स्वामी
०७. श्री ऋषभानन स्वामी
०८. श्री अनन्तवीर्य स्वामी
०९. श्री सूरप्रभ स्वामी
१०. श्री विशालकीर्ति स्वामी
११. श्री व्रजधर स्वामी
१२. श्री चन्द्रानन स्वामी
१३. श्री भद्रबाहु स्वामी
१४. श्री भुजंगम स्वामी
१५. श्री ईश्वर स्वामी
१६. श्री नेमिप्रभ स्वामी
१७. श्री वीरसेन स्वामी
१८. श्री महाभद्र स्वामी
१९. श्री देवयश स्वामी
२०. श्री अजितवीर्य स्वामी
अनंत उपकारी भगवंत विस विहरमान भगवंत को कोटिशः वंदन।।
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