पहेली

कुछ समाचार पत्रों और मासिक पत्रिकाओं में रूचिकर एवं संसारिक ज्ञानवर्धक पहेलियाँ होती है । साथ ही कई बार कुछ किताबों की लिस्ट भी होती है, जिसमें उन पहेलियों का हल छिपा होता है । उस पहेली का हल खोजने वाले को छोटी या बड़ी ईनाम की राशि देने की घोषणा भी की जाती है । उन सभी किताबों में खोजने और स्वविवेक को लगाने पर उस पहेली के हल की प्राप्ति अवश्य ही हो जाती है । 

 

जो भी व्यक्ति इस इनाम की राशी को जीतना चाहता है, उसे लिस्ट में दी गयी इन किताबों को पढ़ते समय मुख्यता तो पहेली को हल करने की होती है । जिस किसी भी पुस्तक को वह पढ़ता और समझता है, वह उस पुस्तक की विषय-वस्तु पर ज्यादा ध्यान न देकर अपनी पहेली का उत्तर ही खोजता रहता है । उसे इन किताबों से मात्र इतना ही प्रयोजन रहता है कि किसी भी तरह वह इन पहेलियों को हल कर ले, ताकि वह इस इनाम की राशी को जीत सके ।

 

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि उसे किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता है, तब वह उस विषय के किसी बुद्धिमान व्यक्ति से इस पहेली को हल करने की बात पूंछता है । इस तरह जिसे सही उत्तर पाने की इच्छा होती है, उसे जब तक हल नहीं मिलता है, तबतक उसकी संसार के किसी भी कार्य में रूचि नहीं रहती है । उसका मन न तो खाने में, न पीने में, न परिवार में, न इष्ट मित्रों में, और न ही अन्य किसी क्रिया में लगता है और जब उसे पहेली का हल मिल जाता है, तब उसे विशेष-विशेष ख़ुशी मिलती है ।

 

हे अबोध

 

जिसे इस अनादि कालीन सांसारिक विषयों में रचे-पचे आत्मतत्व की गुत्थी (पहेली) हल करना होती है, वह सभी शास्त्रों को पढ़ता तो है परन्तु ध्यान तो उसे अपने आत्मतत्व को सुलझाने का ही होता है और जब तक उसका हल नहीं मिलता है, तब तक वह अपने इस एकमात्र कार्य में लगा ही रहता है । 

वह ज्ञानियों से पूंछता है, साधमींजनों से चर्चा करता है एवं स्वविवेक से पढ़े हुए, समझे हुए को अंतर में गुनता है । इस तरह जब तक वह अपने स्व-चैतन्य तत्व को पा नहीं लेता है, तब तक वह चैन से नहीं बैठता है ।

 

ऐसे ही सच्चे जिगासु जीव को अनंत भगवन्त मुमुक्षु के रूप में जानते एवं देखते है । जिस तरह एक बालक भी किसी भी पहेली को हल करने में अपने समस्त उपयोग के साथ लगा रहता है और उसे हल करके ही चैन की सांस लेता है ।

 

उसी तरह हे भव्यात्मा , आप भी अपने समस्त उपयोग को अब आत्म केन्द्रित कर लो । अब इस संसार के समस्त कार्य करते हुए भी आप का ध्यान अपनी आत्मा की गुत्थी (पहेली) को सुलझाने में ही लगा रहना चाहिये । सोते में, में जागते में, खाते समय, आमोद-प्रमोद, परिवार, इष्ट मित्रों के साथ घूमते समय भी एक मात्र लगन आप को अपने आत्मा की ही लगना चाहिये ।

 

आप जो भी धर्म-शास्त्र पढ़ते हो, स्वाध्याय करते हो, तत्व चर्चा करते हो, उस समय भी मुख्यता तो आप अपनी आत्मा की प्राप्ति कैसे हो, इस बात की ही होना चाहिये और संसार के बाकी सभी कार्य आपको गौण ही लगना चाहिये ।

 

हे प्रभुवर, अगर आपको आपके अपने निज-आत्मा की ऐसी सच्ची लगन लग रही है, तो यह निश्चय से जान लो, मान लो कि आप को अपने निज स्वरूप की प्राप्ति अवश्य ही होगी ही होगी ।

 

यह निश्चय कथन हैं, क्योकि हमारे जैनशासन में परीक्षा सिस्टम प्रणाली लागू है जिसमे परीक्षा आप कभी भी दे सकते है और आपका रिजल्ट खुल जाता है कि –

 

🔹 आप अब मोक्ष के उत्तराधिकारी है ।

🔸 या फिर इस संसार की चार गतियों की चौरासी लाख योनियों के उत्तराधिकारी है ।

 

अतः हर छः माह में अपना खुद का निर्णय कर लो कि आपकी हो रही पढाई सही है या नहीं ?

 

अगर फिर भी आप फेल हो रहे हैं, तो आप अधिक से अधिक पांच साल तक आपके इस स्कूल और शिक्षक से पढो, फिर आप अवश्य ही अपना स्कूल और शिक्षक बदल डालो ।

 


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