हमारे जैन भाई बहन हमेशा यही कहते हुए मिलते है की हमारे धर्म मे तो आलु,प्याज, लहसुन और सारे जमीकंद ही निषेध है।
हमारे धर्म मे तो रात्री भोजन का भी त्याग है।पर वही लोग जब आलु,प्याज,लहसुन और रात्री भोजन आदि करते दिखाई देते है तो सोचिये हम स्वयं अपने धर्म का कितना आदर करते है❓
जिस धर्म मे रात्री भोजन एवं जमीकंद का त्याग हो आज उसी समाज के लोग रात्री मे विवाह कर रहे है और पत्रिका में बढ़ी शान से लिखते है कि रात्री भोजन त्यागी सूर्यास्त पूर्व आमंत्रित है।
क्यों हमें दिन में विवाह के विकल्प पर नहीं जाते है?
हद तो जब हो जाती है जब जैन खाना खाने वालो का मात्र एक स्टाॅल और बाकी सारे जमीकंद खाने वालो के स्टाॅल।
थोड़ा तो इस उत्कृष्ट कुल की मर्यादा रखो।
क्या हमें यह पता है?की पक्षी भी रात्री मे भोजन नही करते है उन्हे तो किसी ने उपदेश नही दिया।
जो जैन लोग कभी अपने धर्म के प्रति सजग और अहिंसा के लिए जाने जाते थे आज वे लोग बदलते समय के साथ इस प्रकार अपने जैनत्व को इतना गिरते जायेंगे ये तो कभी किसी ने सोचा ही नही होगा।
हम कहेंगे की क्या करे दूसरे लोग जैन भोजन नही पसंद करते है इसलिए रखना पढ़ता है।अरे हम क्यो किसी की पसंदानुसार उसे खिलाए❓
जैसा हम खाते है वैसा ही उन्हे भी खिलाए।ऐसा तो नहीं कि हम स्वयं ही जमीकंद पसंद करते है और दूसरों का नाम लेकर क्यो झूठ बोलना❓
अगर कोई शराब की डीमांड करेगा तो क्या हम उसे शराब भी पिलायेंगे? कोई नानवेज की माँग करे तो क्या हम उसे ये भी खिलायेंगे❓
जैनी भाईयो अभी भी समय है अगर हम समझ गये तो ठीक है नही तो आने वाली पीढ़िया तो संस्कारहीन ही हो जायेगी।
क्यों हम बच्चों के टिफीन मे आलू ही रखते है❓
क्यो हम बच्चो को कभी ये नही बताते की बेटा इसमे अनंत जीव है जो हमारे केवली भगवान ने देखा और हमे भी बताया।
क्यो हम उन्हे मात्र २ मिनट भी मंदिर जाने का उपदेश नही देते?
क्यो हम उन्हे सप्ताह मे एक दिन भी धर्म की पाठशाला नही भेजते?
अगर हम वास्तव मे अपने नाम के साथ जैन लगाना पसंद करते है तो सबसे पहले जैन तो बन जाइए।अगर भगवान महावीर स्वामी के कुल का कहलाने मे प्रसन्नता होती है तो पहले उनकी आज्ञा तो मानिए।
भगवान महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के जूलूस में नारे तो सब लगाते है जियो और जीने दो पर इसका वास्तविक अर्थ क्यों नही जानना चाहते?
अनंत जीव रात्री भोजन और जमीकंद मे खा जाओ और फिर भी कहो जियो और जीने दो।अब आवश्यकता है वास्तविक जैन बनने की!तभी हमारा कल्याण हो सकता है।
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