तारा मुखडा ऊपर जाऊं वारी रे
वीर मारा मन मान्या… (२)
तारा दर्शन नी बलिहारी रे
वीर मुट्ठी बाकुला माटे आव्या
मने हेत धरी बोलाव्या
तारा मुखडा ऊपर जाऊं वारी रे
वीर मारा मन मान्या…
पाये कीधी झांझरनी झेण वीर
माथे कीधी मुगटनी वेण रे वीर
प्रभु शासननो एक रूडो रे वीर
ये तो पेर्यो तारा नामनो चूडो रे
आ चूडो सदाकाल छाजे रे वीर
मारा माथे वीर घणी गाजे रे
मने आपी ज्ञाननी हेली रे
पहेला थया चंदनबाला चेली रे
वीर मारा मन मान्या….
ऐने ओघो मुहपत्ति आप्या रे वीर
तीहां महावीर विचरता आव्या रे वीर
मने आपी ज्ञान नी हेली रे वीर
बीजा थया मृगावती चेली रे वीर
तीहां देशना अमृत धारा रे वीर
भवी जीवनो कीधो उपकार रे
चंद्र – सूर्य मूल विमाने आव्या रे वीर
चंदनबाला उपाश्रये आव्या रे
वीर मारा मन मान्या….
चंद्र – सूर्य स्वस्थाने जाय रे वीर
मृगावती उपाश्रय आव्या रे वीर
गुरूणीजी बार उघाडो रे वीर
गुरूणीये कीधो ताडो रे
गुरूणी ने खमाववा लाग्या रे वीर
केवल पाम्या ने कर्म भाग्या रे वीर
ऐणे आवता सर्पने दीठो रे वीर
गुरूणीजी नो हाथ ऊंचो लीधो रे
वीर मारा मन मान्या….
गुरूणी जी झबकीने जाग्या रे वीर
साध्वी ने पूछवा लाग्या रे वीर
तने ऐ शुं केवल थायी रे वीर
गुरूणी जी तमारा पसाय रे
चंदनबाला चेलीने खमाव्या रे
तिहां खामता केवल पाया रे
गुरूणी ने चेली मोक्ष पाया रे
तेम पद्मविजय गुण गाया रे
वीर मारा मन मान्या….
(रचना – पूज्य श्री पद्मविजयजी)
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