धर्म न थवानु कारण पापोदय के बेदरकारी ?

प.पू.आ.श्री रामचंद्रसुरीश्वरजी म.सा
जीवन साफल्य दर्शन

ज्ञानी माने छे के सम्यग्दष्टि अने सम्यग्दर्शननो अर्थी आत्मा संसारना स्वरूपने समजनार छे. आथी ' मारो पापनो उदय छे, नथी बनतुं ' एम कहेनारने पूछवुं जोइए के ' प्रयत्न कर्यो? उद्यम कर्यो ? साधुओना सहवासमां आव्यो ? साधुनो सहवास केळव्यो ? अभ्यास कर्यो ? मेळववानी काळजी करी ? ' आ बधुं कर्या पछी न बने तो मानी शकाय के अशुभोदय छे, बाकी करवु कांई नहि ने कहेवु के अशुभोदय छे, ए कांई चाले ? ओटले बेसी गप्पां मारनारा, चाहपाणीना प्याला पीतां पीतां एम कहे छे के 'अमारो पापोदय छे, माटे धर्म नथी आराधी शकातो ' ए खोटुं छे. मुसाफरीमां बिस्तर लेवाय, सिगारेटनी डख्बी अने दीवासळीनुं बाकस न भुलाय, ए बधुं आपोआप याद आवे अने मात्र धर्मसामग्री ज नहि. एनुं कारण ? एमां पापनो उदय ? मुसाफरीए जतां जैनने बिस्तरो वगेरे शरीर माटे जरूरी चीजो अने मोजशोख वगेरेनी चीजो लई लेवामां भूल न थाय अने सामायिकनी, जिनपूजननी अने धार्मिक वांचननी सामग्री सूचववा छतां इरादापूर्वक साथे न रखाय ए ते पापना उदये के बेदरकारीथी ? घणा आजना जैनोमां न जिनपूजा, न सामायिक, न प्रतिकमण, न पौषध, न तत्वोनो स्वाध्याय... ए पापोदये के बेदरकारीथी ? गामडामां जिनमंदिर नथी, सामायिकादि करावनारनो जोग नथी, भणवानां साधन नथी, एथी तेओ कही शके के अमे एवा संयोगवाळा छीए के कांई बनतु नथी, पण मुंबई शहेरमा बधी सामग्री तैयार, त्यां तमे शु कहो?

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