🔸🔸 *आगम गगन में उडान* 🔸🔸
. *।। श्रीमहावीराय नमः।।*
🔹🌸🔹🌸🔹🌸🔹🌸🔹🌸
🎄🎄🎄🎄3️⃣🎄🎄🎄🎄
*🔸🔸श्री उत्तराध्ययन सूत्र🔸🔸*u
09-12-2020
🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥
. *चतुरंगीय (तीसरा अध्ययन)*
🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹
*🙏उत्तराध्ययन के तीसरे अध्ययन में*
(1) मनुष्यता ,
(2) धर्मश्रुति,
(3) श्रद्धा और
(4) तप-संयम में पुरुषार्थ।
*इन चार अंगों की दुर्लभता का प्रतिपादन है।*
*☝️जीवन के ये चार प्रशस्त अंग--विभाग है। ये अंग प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा सहज प्राप्य नहीं है।चारों का एकत्र समाहार बिरलों में पाया जाता है।जिनमें ये चारों अंग नहीं पाए जाते वे धर्म की पूर्ण आराधना नहीं कर सकते।एक की भी कमी उनके जीवन में लंगड़ापन ला देती है।इन चार अंगों की दुर्लभता प्रत्येक के विवेचन से समझी जा सकती है।*
*(1) मनुष्यता–*
☝️●आत्मा से परमात्मा बनने का एकमात्र अवसर मनुष्य-जन्म में प्राप्त होता है। मनुष्य का विवेक जागृत होता है।वह नारक की तरह अति दु:खी और देव की तरह अति सुखी नहीं होता अतः वह धर्म की पूर्ण आराधना का उपयुक्त अधिकारी है।
👉तिर्यंच जगत में क्वचित पूर्व संस्कारों से प्रेरित होकर धर्माराधना होती है, परन्तु वह अधुरी रहती है।
👉 देवता धर्म की पूरी आराधना नहीं कर पाते। वे विलास में ही अधिक समय गवां देते हैं।श्रामण्य के लिए वे योग्य नहीं होते।
👉नैरकिय जीव दु:खों से प्रताड़ित होते हैं अतः उनका धार्मिक-विवेक प्रबुद्ध नहीं होता।
*☝️जीव अपने कृत कर्मों के कारण कभी देवलोक में,कभी तिर्यंच में,कभी नरक में और कभी असुरों के निकाय में उत्पन्न होता है। हम सौभाग्य से(काल-क्रम से) मनुष्य भव को प्राप्त है। इस प्रकार चार दुर्लभ अंगों में से एक हमें प्राप्त हुआ है।*
*🙏हमने एक दुर्लभता को प्राप्त कर लिया है।*
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
*(2) धर्म श्रुति :- -*
मनुष्य-शरीर प्राप्त होने पर भी *धर्म की श्रुति* दुर्लभ होती है।निर्युक्तिकार ने श्रुति की दुर्लभता के 13 कारण बतलाए हैं...
*1.आलस्य.* मनुष्य आलस्य के वशीभूत होकर धर्म के प्रति उद्यम नहीं करता। वह कभी साधु-साध्वियों के पास धर्म-श्रवण हेतु नहीं जाता।
*2.मोह.* व्यक्ति गृहस्थ के कर्तव्य निभाते-निभाते उसमें एक ममत्व भाव पैदा हो जाता है और वह पूरे समय उसी में डूबा रहता है। उसमें हेय या उपादेय के विवेक का अभाव हो जाता है।
*3. अवज्ञाभाव* श्रमणों के प्रति अवज्ञाभाव आ जाता है वह सोचता है कि ये श्रमण क्या जानते हैं ? मैं इनसे अधिक जानता हूँ। *ये मुझे क्या उपदेश देंगे?*
*4. अहंकार* व्यक्ति के मन में जाति, कुल, रूप, ऐश्वर्य का अहंकार जाग जाता है तब वह सोचता है---ये मुनि अन्य जाति के हैं। मेरा कुल और जाति इतनी उत्तम है, *फिर मैं इनके पास क्यों जाऊं ?*
*5. क्रोध* किसी के मन में श्रमणों के प्रति प्रीति नहीं होती। वह उनको देखते ही कुपित हो जाता है, सदा उनके प्रति द्वेष भाव रखता है। वह भी धर्म-श्रवण के लिए नहीं जा पाता।
*6. प्रमाद* कुछ व्यक्ति निरन्तर प्रमाद में रहते हैं, नींद लेना और खाना-पीना ही उन्हें सुहाता है। वे भी धर्म-श्रवण से वंचित रहते हैं।
*7. कृपणता* कुछ व्यक्ति अत्यंत कृपण होते हैं।वे सोचते हैं कि धर्मगुरुओं के पास जाएंगे तो अर्थ का निश्चय ही नुकसान होगा। उनके वहाँ जाने से व्यर्थ पैसा खर्च हो जाएगा।इसलिए इनसे दूर रहना ही अच्छा समझने लगते है।
*8. भय* व्यक्ति जब धर्म प्रवचन में बार-बार नारकीय जीवों की वेदना के बारे में सुनता है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं और मन भय से व्याप्त हो जाता है।
*यह भय भी धर्म-श्रवण में बाधक बनता है।*
*9. शोक* शोक(परिजन-वियोग) या चिंता (बिमारी, आर्थिक नुकसान आदि) और उनकी स्मृति में निरंतर खोए रहना भी धर्म-श्रवण में बाधा उपस्थित करता है।
*10. अज्ञान* जब व्यक्ति का ज्ञान मोहावृत हो जाता है, तब वह मिथ्या धारणाओं में फंस कर धर्म की श्रुति से वंचित रह जाता है।
*11व्याक्षेप :--* गृहवास में व्यक्ति निरन्तर आकुल-व्याकुल रहता है।वह सोचता है--अभी यह करना है, अभी वह करना है।इससे उसका मन व्याक्षिप्त हो जाता है, और उसके लिए *धर्मश्रुति दुर्लभ हो जाती है।*
*12.कुतुहल* नाटक देखना, संगीत सुनने या अन्य मनोरंजन क्रीड़ाओं में रत रहने से भी व्यक्ति धर्म के प्रति आकृष्ट नहीं हो पाता।
*13. क्रीड़ाप्रियता* कुछ व्यक्ति सांडों को लड़ाने, जूआ खेलने आदि में रत रहते हैं, *वे धर्म-श्रुति का लाभ नहीं ले पाते।*
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
*(3) श्रद्धा :- -*
*1.* व्यक्ति को मनुष्य भव मिल जाता है,
*2.* धर्मश्रुति भी प्राप्त हो जाती है ।
*👉फिर भी उसमें श्रद्धा होना दुर्लभ है।बहुत से लोग मोक्ष की ओर ले जाने वाले मार्ग को सुनकर भी उससे भ्रष्ट हो जाते हैं।*
*☝️यहाँ पर चूर्णिकार जमाली आदि निह्नवों का उल्लेख करते हैं। ये निह्नव कुछ एक शंकाओं को लेकर नैर्यातृकमार्ग--निर्गृन्थ प्रवचन से भ्रष्ट हो गऐ थे,दूर हो गए थे।*
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
*(4) तप--संयम में पराक्रम–*
मनुष्य भव, श्रुति और श्रद्धा प्राप्त होने पर भी संयम में पुरूषार्थ होना अत्यंत दुर्लभ है।बहुत से लोग संयम में रुचि रखते हुए भी उसे स्वीकार नहीं करते।
*🙏मनुष्यत्व को प्राप्त कर जो धर्म को सुनता है, उसमें श्रद्धा करता है–– वह तपस्वी संयम में पुरूषार्थ कर संवृत हो कर्मरजों को धुन डालता है और शाश्वत सिद्ध हो जाता है।*
🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें