Magadh Samrat Shrenik

#मगध_सम्राट_श्रेणिक - 14

अभयकुमार श्रेणिकराजा को सुज्येष्ठा के साथ उनका विवाह करवाने का वचन देकर घर आये। अब वे कुछ युक्ति सोचने लगे।

उन्होंने श्रेणिक का एक सुंदर चित्र आलेखित किया। फिर अपना वेश - रूप परिवर्तन कर वैशाली नगरी में आया। वहां पर अंतःपुर के निकट एक स्थान किरायेसे लेकर एक दुकान लगा ली। उसने श्रेणिकराजाके चित्र को दुकान में अच्छी व दर्शनीय जगह पर लगाया ताकि सबकी नजर उस पर पड़े। दुकान में समान ऐसा रखा कि राजमहल की दासियाँ लेने आये। उसने दासियोके लिए मूल्य भी बहुत कम रखा। युक्ति कारगर हुई। दासियो का आवागमन शुरू हुआ और बढ़ा भी। अभयकुमार बार-बार उनके सामने श्रेणिकराजाके चित्र को नमन करता। दासियाँ उसे देखकर पूछने लगी कि यह चित्र किसका है, तुम क्यों नमन करते हो उन्हें, आदि।
तब अभयकुमार श्रेणिकराजा के गुणगान करता। उन्हें देवतुल्य बताता। उन्हें मगध का सम्राट बताता। उनकी तस्वीर में भी उनका रूप सुंदर आलेखित कीया था।

ये सब बाते दासियाँ जाकर सुज्येष्ठा को बताने लगी। यह सब सुनकर सुज्येष्ठा को जिज्ञासा हुई। उसने एक विश्वस्त दासी द्वारा श्रेणिकराजा का चित्र मंगवाया। अभयकुमार तो यही चाहता था। उसने थोड़ा ना-नुकुर का अभिनय कर के चित्र भेज दिया। 
सुज्येष्ठा चित्र देखकर मोहित हो गई। बार-बार चित्र देखने के बाद वह श्रेणिकराजा से उन्हें बिना देखे हुए ही प्रीत करने लगी। थोड़े ही समय में वह श्रेणिक को प्राणेश मानने लगी। और उन्हें प्राप्त करने के लिए उस सखी जैसी दासी को पुनः दुकानदार के भेष में रहे अभयकुमार के पास भेजा। उसे कहलवाया कि तुम श्रेणिकराजा व सुज्येष्ठा का संबन्ध करवा दो।

दासी के संदेश के प्रत्युत्तर में अभयकुमार ने स्वीकृति दी। उसने कहा : - आपकी राजकुमारी का मनोरथ मैं पूरा करूँगा। पर मुझे कुछ दिन लगेंगे। नगर के बाहर से राजमहल तक एक सुरंग खुदवाऊंगा और उस सुरंग से सम्राट श्रेणिक को लाकर सुज्येष्ठाके साथ करवा दूंगा। सुरंग के बाहर महाराज का रथ खड़ा रहेगा। वे दोनो इस तरह नगर से बाहर जाकर विवाह कर लेंगे।
उसने स्थान, समय आदि निश्चित कर दासी को बता दिया।

दासी ने आकर सुज्येष्ठाको सारा वृतांत सुना दिया। राजकुमारी अब अधीरता से उस समय की राह देखने लगी। ( मोह - एक अत्यधिक भयंकर कषाय, जिसमे फंसा व्यक्ति अपने किन-किन गुणो की घात कर देता है,वह स्वयं नही जानता। अफसोस !)

अभयकुमार का वैशाली का काम पूरा हो गया। उसने दुकान समेट ली। राजगृह आकर श्रेणिकराजा को सारे समाचार देकर तैयार रहने की सूचना दी। श्रेणिक प्रसन्न हुआ। अभयकुमार ने कारीगरों द्वारा सुरंग निर्माण का कार्य शुरू करवा दिया।

निश्चित समय पर श्रेणिकराजा अपने 32 बहादुर सैनिकों के साथ सुरंग से होकर वैशाली के राजमहल तक आ गये। सुज्येष्ठा वहां उपस्थित ही थी। दोनो एकदूसरे को मिलकर प्रसन्न हुए। 

अब आगे क्या होगा? 

सन्दर्भ : - तीर्थंकर चरित्र

कलका जवाब : वीर शासन की प्रथम साध्वी जी यानी चन्दनबाला जी चेटकराजा (की पुत्री पद्मावती के पति) के दामाद दधिवाहन की एक अन्य रानी धारिणी की पुत्री थे।

आज का सवाल : - 32 वीर सैनिक किनके पुत्र थे।

जिनवाणी विपरीत अंशमात्र लिखने में आया हो तो मिच्छामी दुक्कडम।

पिक प्रतीकात्मक है।

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