Sambhav Sahib Maro Hu Tahro Lyrics Jain Stavan
संभव साहिब मारो हुं ताहरो, सेवक सिरदार कि
महेर करी मुज-उपरे उतारो, भव सायर पार कि
संभव… (१)
आनन अद्दभुत चंदले, तें मोह्यों, मुज नयण चकोर कि
मनडुं मिलवा तुमहैं प्रभुजीस्युं, जिम मेहां मोर कि
संभव… (२)
हुं नि गुणो पण तारीए, गुण अवगुण मत आणो चित्त कि
बांह्य गह्यां निरवाहीए सु सनेही, सयणांनी रीत कि
संभव… (३)
सार संसारे ताहरी, प्रभु सेवा, सुखदायक देव कि
दिल धरी दरसण दीजीए तुम ओलग, कीजीयें नित्यमेव कि
संभव… (४)
चोतीस अतिशय सुंदरु, पुरंदर, सेवे चित लाय कि
रूचिर प्रभुजी पय सेवता सुख संपत्ति, अति आणंद थाय कि
संभव… (५)
रुचिर विमलजी महाराज
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