Manadu Hath Na Aave Ho Padmaprabhu Lyrics Jain Stavan
मनडुं हाथ न आवे हो, पद्म प्रभु ! मनडुं हाथन आवे;
यत्न करी निज घरमां राखुं, पल पल पर-घर जावे (१)
हो पद्म प्रभु…
ए मनडुं कदी सातमी नरके, कदी स्वर्गमां वसावे;
कदी मानव कदी तिर्यंच भावे, भव अटवी भटकावे (२)
विना खाधे पीधे तन्दुलने, मनडे मुश्केली कीधी;
अन्तरमुहूर्त-मांही नरकनी, असह्य वेदना दीधी (३)
प्रसन्नचंद्रने क्षणमां नारक, क्षणमां स्वर्ग बताव्यो;
क्षणमां केवल-दुंदुभी बाजी, ए मने केर मचाव्यो (४)
क्षण ब्रह्मचारी, क्षण व्यभिचारी, विरताविरत क्षणमांही;
मदारीना मरकटनी पेरे, भटकावे आंही तांही (५)
ए मनडुं प्रभु तमे वश कीधुं, ए आगमथी जाण्युं;
तारा शरणथी हुं पण जीतीश, एम में मनमां आण्युं (६)
आत्म कमलमां तेथी व्हाला, में प्रभु तमने वसाव्या;
लब्धिसूरि जिन सेव्या तेणे, मिथ्या भाव नसाव्या (७)
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