Mahavir Swami Vandnavali

Mahavir Swami Vandnavali

जे चरम तीर्थंकर महावीर, सिंह सम शोभता,
वडी कर्मशत्रु जितवा, वर्धमान भाव धरावता,
सहू जीव ना कल्याण काजे श्रमण धर्म ने स्थापता
करुणा सागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

नयसार भवे मुनियोने वनमा, भाव थी वहोरावता,
संसार वनमा मार्ग सम, समकित पामी बुझता,
जाणे श्रमण ना गुण सम,जे भव सत्याविश राखता
करुणा सागर प्रभु वीर न चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीर ना भवो

मरीचि भवे उत्तसूत्र थी, संसार बहुलो वधारता,
निज उच्च पदवी जाणीने, कुल मद थी कर्म बांधता,
विविध भव भृमण करी, जे मिथ्या धर्म ने पामता,
करुणा सागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीर ना भवो

त्रिदंडी , ब्राम्हण , वसुदेव ने चक्रवर्ती जे थता,
विश में भवे थई सिंह जे, वडी चौथी नरके पण जता,
बाविशमा भव थी प्रभु, अविरत प्रगति साधता,
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीर नी भावना

नन्दनमुनि बनी मसश्रमने, विश स्थानक साधता,
सवी जीव करू शाशन रसी, एवी भावना सुभ भावता,
वात्सल्य थी विश्व मात थई, जिन नाम कर्म निकचता,
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीर नो च्यवन

च्यवन पामी चौद सुपने, ब्रम्ह कुड मा अवतर्या,
अवधिथी जाणी इन्द्रे तव, क्षयत्रीय कुड़ मा फेरव्या,
निज डब्सरूप ने जे जानी ने, कर्मो ने देवू वाडता,
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीर नो जन्म

माता नी भक्ति थी गर्भ मा, जे मेरु सम निश्चल थता,
थयूं दुःख जाणी मातने, निज अँगने हलावता,
जे चैत्र सूद तेरसने जन्मी, विश्वने हरखावता,
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीरनु बाड़कत्व

जे जन्मता अनुष्ठ थी, मेरुगिरि ने ध्रुजावता,
वडी देवनी परीक्षा मा, “महावीर" नाम धरावता,
त्रण ज्ञान ना सागर समा, जे पाठशालामा पधारता
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीर नो ग्रहवास

निष्काम थई भोगावली ना कर्म ने खपावता,
माताना अति आग्रह थकी, विवाह महोत्सव मांडता,
जे श्रमण सम बनी बे वरस, ग्रहवास मा रही गाड़ता,
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीर नी दीक्षा

लोकांतियासुर वचनथी, वार्षिक दानने आपता,
भविजीवोना जे भव तणा, दरिद्र दुःख ने कापता,
जे सिंह सम निर्भय बनी, एकाकी दीक्षा पाड़ता,
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीर नो विहार काल

करुणा हृदय थी अर्धवस्त्र नु, दान विप्रने आपता,
निडर बनी सिरेन्द्रनी , सेवा ने जे न स्वीकारता,
निर्पेक्षताथी घोर अभीगृह , नित्य विविध जे धारता
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीर नी साधना

भारण्ड पंखी सारिखी , धारे सदा अप्रमत्तता,
जे भीष्म तप दावनलें , महा कर्मवन ने बाड़ता,
जे स्तम्भ नी परे स्थिर रही , सहे कर्ने सूड नी वेदना
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीरने उपसर्गो

कर्मोनी करवा निर्जरा, अनार्य देशे पधारता,
उपसर्गो नई वणझारमा, जे समता रसमा झिलता,
मरणान्त पण कष्टो सही, अद्भुत समाधि धारता,
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीरनी समता

छः मास पीडा भोगवी, पण रोष ना मनमा धरे,
संगम जैवा घोर पापी ने, दान अश्रुनु धरे,
अडदतना बांकुडा लई, उगारता वडी चांदना,
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीर नी कृपाडुता

रे घातकी अर्जुन तरयो, प्रभु तुझ चरण ने सेवता,
जे डंख देता चनकौशिक, ने बनाव्यों देवता,
रागादि शत्रुमा क्रूरता, सवी जीव प्रत्ये कृपाडुता,
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

प्रभु वीरने केवलज्ञान

तडको तपे अति आकारों, वैशेखसुदी दशमी दिने,
ऋजुवालिका नी रेत मा, गोदोहिका आशने,
प्रगटे सूरज केवल्य नो, भावो प्रकाशे विश्व ना
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

निष्फल जाणी निज देशना, पावापुरी ए पधारता,
जे मां गज चढी आवे ते, गौतम ने कीधा गणधरा,
वैशाख सुदी अगियारसे, करे धर्म तीर्थ नी स्थापना,
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

अंतिम समे सोड प्रहर नी अविरत आपे देशना,
कह्या भाविभाव आ भरत ना, फड़ पूण्य पाप तणा घणा
न राग गौतम म करे, न द्वेष गोशाला मा,
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

भस्मक गृहने निवारवा, कहे इंद्र आयु वधवा,
नवी संभवे त्रण मा, कही वीर मोक्षे सिधावता,
प्रगटि दीवाली अमास नी, आ भाव दिपक बुजता
करुणासागर प्रभु वीर ना चरणों मा हो मुझ वंदना

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