Shresth Shravika Shree shree Devi

 जैन धर्म के साथ जुड़े ऐतिहासिक पात्रों की कथा श्रेणी 

श्रीदेवी 

Shree Devi

काकर गाँव में जन्मी हुई श्रीदेवी गुजरात के इतिहास की तेजस्विनी नारी के रुप में विख्यात हैं । उसमें सूझ-बूझ तथा साहस दोनों का विरल संगम था । चाहे जैसी कठिन परिस्थिति में घबड़ाये बिना या भयभीत हुए बिना वह रास्ता बना लेती थी । उस समय कच्छ के रेगिस्तान के किनारे पर आये हुए पंचासर पर राजा भूवड़ ने आक्रमण किया था । पंचासर के राजा जयशिखरी ने विशाल सेना का दृढ़ता से मुकाबला किया , परंतु अंत में राजा जयशिखरी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ । जयशिखरी के पुत्र वनराज ने जैन साधु शीलगुणसूरि से आश्रय प्राप्त किया और उपाश्रय में बड़ा हुआ । उसके मन में लगन थी कि पिता का राज्य वापस प्राप्त करुँ तभी तो मैं सच्चा वनराज । मामा सूरपाल के साथ रहकर वनराज डकैती करने लगा । राज्य वापस लेना हो , तो बड़ी सेना की आवश्यकता रहे । शस्त्र चाहिए । इन सबके लिए वनराज ने जंगल में रहकर वहाँ से जाते-आते राजखजानों को लूट लेना आरंभ किया ।


एक समय वनराज चावड़ा काकर गाँव के सेठ के यहाँ चोरी करने गया । वनराज ने सेठ की कोठरी या भंडारी में जाँच -पड़ताल की । वह मानता था कि भंडारी में से कोई मूल्यवान चीजवस्तु या धनसंपत्ति हाथ लगेगी , पर रात के अँधेरे में भंडारी में चोरी करते हुए वनराज का हाथ दही से भरे हुए बरतन में पड़ा । वनराज रुक गया । इसका कारण यह था कि दही से भरे हुए बरतन में हाथ गिरा यानी वह इस घर का कुटुंबीजन कहलाये । भला अपने घर में लूट कैसे की जाय ? इसलिए उसने खाली हाथों वापस जाना उचित माना ।


मुँह अँधेरे काकर गाँव में सेठ ने देखा तो घर में सब छिन्न-भिन्न पड़ा था । उन्हें ख्याल आ गया कि अवश्य ही घर में कोई चुपचाप चोरी करने आया होना चाहिए । सेठ ने अपनी बहन श्रीदेवी से कहा , " घर में सैंध लगी हो ऐसा लगता है । चोर आकर हमारी माल-मिलकत ले गये हों ऐसा ज्ञात होता है । " भाई-बहन दोनों एक-एक करके वस्तुएँ देखने लगे । देखा तो गहने सलामत थे, घर की नगदी वैसी की वैसी पड़ी थी । वस्त्र इधर-उधर अलग-थलग बिखरे हुए पड़े थे , पर एक भी वस्त्र की चोरी नहीं हुई थी । दोनों ने सोचा कि रात को चोर ने सैंध लगाई होगी । नींद में उन्हें कुछ खबर नहीं हैं । तो फिर बिना कुछ चोरी किये वह वापस क्यों लौट गया होगा ? उन्हें यह बात रहस्यमय ज्ञात हुई ।


तभी श्रीदेवी की दृष्टि दही के बरतन पर पड़ी । उसने देखा तो उसमें किसी के हाथ के पंजे के निशान थे । उसके हाथ की रेखाएँ उसमें पड़ी थी । उन हस्तरेखाओं को देखकर लगता है कि यह पुरुष कैसा भाग्यवान तथा प्रतापी होना चाहिए ! उसकी रेखाएँ उसकी वीरता और तेजस्विता दर्शाति हैं । साथ ही दही में हाथ गिरा उस घर का कुछ भी न लिया जाय ऐसा माननेवाला मानव चोर कैसे हो सकता हैं ? अवश्य , किसी कारणवश ही वह यह कार्य करता होगा । ऐसे व्यक्ति से मुलाकात हो तो कितना अच्छा ?


श्रीदेवी का यह विचार वनराज को ज्ञात हुआ । वनराज रात को गुप्तवेश में श्रीदेवी के घर आया । उसके भाई को प्रणाम किया । श्रीदेवी को देखते ही वनराज के हृदय में भाई का प्रेम उभरने लगा । वन में भटकते हुए राजा और उसके सैनिकों से स्वयं को छिपाते और राज्य वापस प्राप्त करने के लिए दिन-रात कड़ा परिश्रम करते वनराज को यहाँ शांति एवं स्नेह का शीतल , मधुर अनुभव हुआ । श्रीदेवी ने उसे भाई माना और प्रेम से भोजन करवाया । तत्पश्चात् वनराज को सीख दी । ब

भाई ने बहन की सीख मानी । बहन के प्रेम से भावविभोर हुए वनराज ने कहा , " बहन , तू भले ही मेरी सगी बहन न हों , पर मुझ पर प्रेम की वर्षा करनेवाली धर्म की बहन है । मैं राजा बनूँगा , तब तेरे हाथ से ही राजतिलक करवाऊँगा । "


काकर गाँव की श्रीदेवी का विवाह पाटण में हुआ । एक बार श्रीदेवी पाटण से अपने पीहर जा रही थी । फिर जंगल की राह में वनराज मिला और श्रीदेवी ने उस पर स्नेह -अमृत की वर्षा की । आखिर वनराज ने सेना एकत्र करके भूवड़ के अधिकारियों को मार भगाया । पंचासर के स्थान पर सरस्वती नदी के तट पर अणहिलपुर पाटण बसाया । विक्रम संवत् 802 की वैशाख सुदि द्वितीया , सोमवार के दिन यह घटना घटी । वनराज ने राज्याभिषेक के समय धर्म की बहन श्रीदेवी को बुलाकर उसके हाथ से राजतिलक करवाया । राजा वनराज ने अपने ऊपर किए हुए उपकार का उचित बदला चुकाया , तो श्रीदेवी जैसी सद्गुणी गुर्जरी धर्म , समाज और राष्ट्र के उत्थान में सहायक हुई ।


साभार : जिनशासन की कीर्तिगाथा


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