Shravika shree sonal

 

Shravika shree sonal
Shravika shree sonal


जैन धर्म में केवल साधुजीवन के लिए ही नहीं , अपितु गृहस्थजीवन के लिए भी शील की आवश्यकता स्वीकृत की गई हैं । सती सोनल का शीलप्रभाव देखकर अपराजित शहनशाह अकबर का मस्तक भी झुक गया था ।


एक समय मुगल सम्राट अकबर के राज दरबार में नारीजीवन की महिमा का गुणगान हो रहा था । सती स्त्रियों के उच्च आदर्शो की घटनाएँ कहीं जा रही थीं । शहनशाह अकबर ने कहा , " समय कैसा बदल गया हैं ! आज सती स्त्रियों के दर्शन दुर्लभ हो गये हैं । कोई बता सकेगा ऐसी सती स्त्री ? "


शहनशाह अकबर के शब्द सुनकर उनके दरबार का वीर पुरुष चांपराज हाँड़ा खड़ा हुआ । उन्होंने कहा कि , " जहाँपनाह मेरी पत्नी सोनल सचमुच ही शीलवती है । शील के सुवर्ण रंग से वह शोभित हैं । "


यह सुनकर शहनशाह के सिपाही शेरखान ने नारी के सतीत्व का मजाक उड़ाया । यह सुनकर चांपराज हाँड़ा का चेहरा तमतमा गया । उन्होंने गर्जना की , " मेरी पत्नी सोनल सचमुच ही सती हैं । वह शीलवती नहीं हैं , ऐसा यदि कोई सिद्ध कर सके तो अपना मस्तक काट कर उसके हाथ में रख देने को तैयार हूँ । "


रंगराग में डूबे हुए मनमौजी शेरखान को भला नारी के शीलधर्म की जानकारी कहाँ से हो ? इसलिए उसने बीड़ा उठा लिया कि सोनल चाहे जैसी हो , परंतु वह शीलवती नहीं हैं , इतना तो मैं साबित कर दूँगा । वीर चांपराज हाँड़ा ने उसकी चुनौती को स्वीकार किया ।


सोनल को प्रलोभन देने के लिए शेरखान ने कई युक्ति-प्रयुक्तियाँ आजमायी । अपार सौंदर्य भी सोनल को लेशमात्र भी विचलित कर सके ऐसा नहीं था । वैभव के मोहक प्रलोभनों के बीच वह अडिग रही । सिपाही शेरखान ने देखा कि सोनल किसी अलग ही मिट्टी की नारी हैं । उसे लालच से वश में नहीं किया जा सकता , अतः उसने प्रपंच का पैतरा रचा ।


सिपाही शेरखान ने एक गणिका को यह काम सौपा । उसे कहा कि वह सोनल की बूआ के वेश में सोनल के घर जाकर उसके शीलभंग के प्रमाण स्वरुप कुछ प्रस्तुत किया जा सके ऐसा कोई काम कर दिखाये तो उसके आगे धन का ढेर लगा देगा । गणिका सोनल के पास गई और दूर-दूर के नाते-रिश्तें बताकर कहा कि वह वर्षों से बिछुड़ी हुई उसकी बुआ हैं ।


गणिका की मधुर वाणी ने सोनल का मन जीत लिया । धीरे-धीरे वह सिपाही शेरखान की मुराद पूरी हो ऐसा उपाय खोजने लगी । सोनल स्नान करती थीं , तब उसकी जाँघ पर एक तिल देखा । तत्पश्चात् थोड़े दिन रहने के बाद गणिका ने बहुत ही प्रेम-भाव जताकर सोनल के घर से आँसूभरी आँखों से दुःखदायी बिदाई ली । साथ-ही-साथ चांपराज के घर में से एक रुमाल तथा कटार भी ली ।


गणिका ने शेरखान को सारी बात बताई और साथ-ही-साथ रुमाल और कटार भी दे दी । अकबर बादशाह के दरबार में शेरखान ने सगर्व कहा , " जहाँपनाह , मेरी बात सच साबित हुई है । चांपराज जिसके सतीत्व की तारीफ करते हुए थकता नहीं था , उस सोनल की शीलभ्रष्टता का सबूत आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ । " इतना कहकर उसने सोनल की जाँघ पर के तिल की बात कहीं और साथ ही उसके घर का रुमाल और कटार भी बताई ।


वीर चांपराज हाँड़ा ने अपना मस्तक काट देने की तैयारी की । मरने के पहले वह सोनल से मिलने गये और कहा , " सोनल , तुम्हारा शील गया और मेरा सिर जायेगा । "


इस प्रकार कहकर क्रोध में व्याकुल हुए चांपराज हांड़ा राजदरबार की ओर चले । पति के शब्दों से एकाएक चमक उठी सोनल पूरी परिस्थिति समझ गई । सोनल नर्तकी का रुप लेकर राजदरबार में पहुँच गई । उसका कलामय नृत्य देखकर शहनशाह प्रसन्न हुए और उसे वरदान माँगनें को कहा । वरदान में सोनल ने शहनशाह से अपनी बात सुनने को कहा । उसने शेरखान ने किये हुए प्रपंच का भेद खोल दिया । चांपराज हांड़ा के आनंद की कोई सीमा न रहीं । शहनशाह ने शेरखान को राज्य में से चले जाने का फरमान किया । सोनल के सतीत्व की महिमा सर्वत्र गूँज उठी ।

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