SHALIBHADRA KATHA शालिभद्र

शालिभद्र भाग -9


प्रभु ने उनकी योग्यता जानकर सहर्ष अनुमति प्रदान कर दी और वे दोनों मुनिवर क्रमशः वैभारगिरि पर चढ़ गए और दोनों ने पादपोपगमन अनशन व्रत स्वीकार लिया ।


इधर थोड़ी देर बाद भद्रा माता प्रभु के पास आई और प्रभु से बोली, शालिभद्र मुनि और धन्य मुनि कहाँ हैं ? वे भिक्षा के लिए हमारे घर पर नहीं पधारे ।


प्रभु ने कहा, "वे दोनों तुम्हारे घर भिक्षा के लिए आए थे...परंतु यहाँ आने की व्यग्रता में तुम उन्हें पहिचान नहीं पाई । उसके पूर्वभव की माता ने उन्हें दही से पारणा करा दिया है और अब उन दोनों महासत्त्वशाली चरम मुनियों ने भव के निस्तार को पाने के लिए वैभारगिरि पर जाकर अनशन-व्रत स्वीकार किया है ।"


श्रेणिक राजा के साथ भद्रा माता भी वैभारगिरि पर्वत पर पहुँची । अपने पुत्र के भयंकर कष्ट को देख वह जोर से क्रंदन करने लगी और विलाप करती हुई बोली, "वत्स तू ! मेरे घर पर आया और दुर्भाग्य से मैं तुझे पहिचान भी नहीं पाई । मेरे प्रमाद को धिक्कार हो ।"


"यद्यपि तूने संसार का त्याग कर दिया था, फिर भी मुझे आशा थी कि तुम अपने दर्शन से मुझे पुनः आनंद प्रदान करोगे...परंतु देहत्याग के लिए प्रारंभ किए अनशन व्रत के द्वारा तो मेरी वह आशा भी निष्फल हो गई । तुम्हारे प्रारंभ किए व्रत में मैं विघ्न डालना नहीं चाहती हूँ, परंतु उस कठोर शय्या के कष्ठ को तू कैसे सहन कर पाएगा ?"


उसी समय श्रेणिक ने कहा- "माताजी ! हर्ष के स्थान पर यह शोक क्यों ? ऐसे पुत्ररत्न को जन्म देनेवाली तो तू महाभाग्यशाली एक ही है ।"


"यह तो महान् तत्त्वज्ञानी है । इसने तृण की भाँति सारी लक्ष्मी का त्याग कर दिया और साक्षात् मुक्ति की प्राप्ति के समान प्रभु के चरण-कमलों को स्वीकार कर लिया है ।"


"ये तो जगत् के स्वामी वीर प्रभु के शिष्य के अनुरूप ही तप कर रहे हैं, अतः तुम व्यर्थ ही स्त्री स्वभाव के वशीभूत होकर इस प्रकार का दुर्ध्यान क्यों कर रही हो ?"


राजा के वचनों को सुनकर भद्रा ने प्रतिबोध प्राप्त किया और फिर दोनों मुनिवर्यों को भावपूर्वक नमस्कार कर वह अपने घर चली आई ।


शालिभद्र व धन्य मुनि भी अनशन व्रत को पूर्ण कर अत्यंत ही समाधिपूर्वक कालधर्म को प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध विमान में तैंतीस सागरोपम की स्थिति वाले देव बने वहाँ से च्यवकर मानवभव प्राप्त कर मोक्ष में जाएंगे ।

टिप्पणियाँ