Prerak Prasang


हे आदिनाथ दादा ! मुझे जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त कीजिए।

पेथडशा मंत्री के बारे में एक ऐसा प्रसंग सुना है-
जब मांडवगढ के मंत्री बने तब उन्होंने राजा को बताया था कि मैं मेरी प्रभु भक्ति में दखल के खिलाफ हूँ। उस वक्त आप मुझे कोई आज्ञा नहीं करेंगे। 
राजाने बात का स्वीकार किया। 
एकबार यह शर्त को भूल जाने से राजाने एक विषय में राय लेने अपने नौकर को भेजा-पेथडशा को बुलाकर लाईए। 
उस वक्त पेथडशा अपने गृह जिनालयमें परमात्म भक्ति में लग गये थे। 
अत: एनके चौकीदारने राजा के उस नौकर को मनाही कर दिया। उसने राजा को समाचार दिया। 
मगर राजा को ज्यादा चटपटी हो रही थी अत: दूसरी बार और महत्त्व के नौकर को भेजा। 
वह भी उसी तरह वापस आया। तब क्रोध भरा राजा खुद गया। तब चौकीदार रोक पाया नहीं। 
राजाने जिनालयमें प्रवेश किया। 
वहाँ देखा-मंत्र प्रभु की आंगी रचनामें मग्न है और पीछे एक नौकर आंगी उचित रंगको फुल देता जा रहा है। राजा का क्रोध शांत हो गया। राजा को भी भक्ति में रुचि हुई। तो पीछे बैठे नौकर को हटाकर खुद वहाँ बैठ गया। मगर राजा को अनुभव नहीं था। 
अत: फुल देने में गरबड होने लगी। तब ऐसा क्यों हो रहा है जानने हेतु पेथडशाने पीछे मुडकर देखा। वहाँ राजा को देखकर अचंभितत हो गये। 
मगर राजाने ही कह दिया-आप पूजामें ही रहीए। बाद में ही आना। 
पेथडशा प्रभुभक्ति के अवसर पर स्थान-पद-समृद्धि सब भूल कर प्रभुके अनन्य भक्ति में मग्न हो जाते थे।

धन्यकुमार चरित्र -17: - शील धर्म की तरह तप धर्म से भी अभयदान की आराधना होती है। भोजन-स्वादिष्ट भोजन पानी-अग्नि-वनस्पति जैसे जीवों की हिंसा से निर्माण होता है। उपवास वगैरह तप करने पर ऐसे भोजन की आवश्यकता नहीं रहती। अत: उन जीवों को अभयदान मिलता है।

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