Prerak Prasang Jainism

 हे आदिनाथ !साधन आर्तध्यान का साधन है। मुझे साधन वैराग्य चाहिए।
 मुंबई में एक श्रीमंत एनक के व्यापारी जैन भाई थे। नाम था अमिलाल वाधर ! 
पूज्यपाद गुरुदेव श्री वि. भुवनभानु सूरीश्‍वरजी महाराज के भक्त थे। 
धोती-कफनी-टोपी मानो कि कायमी ड्रेस ! तीनों चांदनी झैसे श्‍वेत और व्यवस्थित इस्त्री ! 
शायद ही किसीने उनको अलग लेबाशमें देखा होगा। जब उनकी उम्र 75 बरस तभी भी ऐसा ही ड्रेस। 
मिलना हुआ तब मैंने मजाक में पूछा-आपके वस्त्र धोनेवाला बरसों से एक ही लगता है। बरसों से एक ही तरीके से धोता है-इस्त्री करता है ! 
तब उन्होंने कहा-सही बात है। मेरा वस्त्र धोने-इस्त्री करनेवाला बरसो से एक ही है। 
मैंने तो मजाक में पूछा था और बात सही नीकली तो मैंने पूछ लिया-अब तो वह भी बूढा हो गया होगा। 
उन्होंने कहा-हाँ 75 साल का। 
मैंने पूछा-इतना ! फिर भी... मैं आगे कुछ कहुँ उसके पहले उन्होंने ही स्पष्टीकरण किया-वो धोनेवाला मैं ही हूँ। 
मैंने आश्‍चर्य से पूछा-अरे ! आप तो श्रीमंत हैं। फिर भी नौकर नहीं हैं ? 
उन्होंने कहा-हैं ना ! मगर बरसो पहले मेरी माताने मुझे एक पाठ सिखलाया है-कम से कम खुद के पहने तीन कपडे तो खुद ही धोना ! इतना परिश्रम तो प्रतिदिन अवश्य करना ही। इतना तो स्वावलंबन होना ही चाहिए। श्रीमंत होने पर भी इतने परिश्रम से वंचित नहीं रहना। बस, तबसे मैं मेरे रोज के पहनने के सारे कपडे आज भी मैं ही धोता हूँ और इस्त्री भी मैं ही करता हूँ। शेष कार्यो के लिए नौकर हैं मगर इतना तो खुद ही ! 
सही है, स्वपरिश्रम का स्वाद मिलना चाहिए। अन्यों के परिश्रम का मूल्य भी तब ही समझ पायेंगे। पूर्णतया पराधीन हो जाना सेहत के लिए और भविष्य की परिस्थिति के लिए अच्छा नहीं है।

धन्यकुमार चरित्र -18
 भाव धर्म तो अहिंसा-अभयदान से ही सार्थक होता है। परम करुणा भाव से जीव हो या अजीव सभी को अभय-अहिंसा ही भाव धर्म हैं। अजीव यानी पुद्गल। अजीव यानी उपयुक्त-अनुपयुक्त साधन-सामग्री। उनको भी बिना कारण फाडना-तोडना-फेंकना-कुचलना-लात लगानी उचित नहीं है। कठोरता है। अभयदान और कठोरभव विरोधी है।

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