Meghkumar

#मगधसम्राटश्रेणिक -  24

सेनक तापस का जीव श्रेणिकराजा का शत्रु बनकर उसके ही पुत्र रूप चेलना के गर्भ में उत्पन्न हुआ। चेलना इस पुत्र के लक्षण गर्भ में ही समझ गई थी। पिता के लिए घातक सिद्ध होने वाले पुत्र का अंदेशा चेलना को हो गया था। उसने एक कड़ा निर्णय कर लिया।

समय बीतते उसने एक सुंदर स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। उसके जन्म के तुरन्त बाद एक विश्वासु दासी द्वारा इस पुत्र को उकरडे (कचरे के ढेर ) में फिंकवा दिया।

पर जीव का आयुष्य प्रबल था। श्रेणिकराजा ने उस दासी को देख लिया। और कचरे के ढेर से अपने पुत्र को वापस लेकर आये।

आकर चेलना को उलाहना देकर पुत्र के पालन करने का आदेश दिया। उकरडे पर रहे बालक की उंगली किसी कुक्कुट (मुर्गा) द्वारा थोड़ा अंश में घाव कर दी गई थी। उस उंगली में घाव पक जाने से परु ( पस या पित्त ) हो गया था। श्रेणिक ने स्वयं उसका ध्यान रखा। कोमल बालक की उंगली से सारा परु श्रेणिक ने मुंह से चूस कर निकाल दिया ताकि उस बच्चे को दर्द न हो। श्रेणिक के मन में कोई वैर नही था, न जाग्रत मन में ना ही कोई सुषुप्त वैर। श्रेणिक हमेशा उस बालक को स्नेह करता। चेलना के मन से इस बालक के लक्षण नही गये। वह मन से उसे अपना न सकी। 

उस बालक का नाम कोणिक रखा गया। उसका एक अपरनाम अशोक भी पढ़ने में आया है।

कोणिक बड़ा होने लगा। उसके जन्म के बाद चेलना ने  विह्लल तथा विहास नामक 2 पुत्रो को जन्म दिया।

समय के साथ राजकुमार बड़े होने लगे। 

श्रेणिकराजा की अन्य रानियां भी थी। उसमे एक श्रेणिक की अतिप्रिय धारिणी नाम की रानी भी थी। 

 एकबार उसने एक विशाल व प्रभावशाली गजराज को आकाश से उतरकर अपने मुख में प्रवेश करते हुए देखा।रानी को प्रसन्नता का अनुभव हुआ। उसने श्रेणिक के शयनकक्ष  में जाकर उन्हें यह स्वप्न बताया। 

स्वप्न जानकर श्रेणिकराजा भी प्रसन्न हुए। उन्होंने धारिणी को बताया कि तुमने एक उच्च  स्वप्न देखा है। उसके फलस्वरूप तुम्हे एक उत्तम पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।  धारिणी ने गर्भ धारण किया।गर्भधारण से हीं तो स्वप्न देखा ना ।नियमपूर्वक वह गर्भ का पालन करने लगी।

तीसरा माह चल रहा था, कि धारिणी को भी एक दोहद उत्पन्न हुआ। 

बसंत ऋतु में मेघ छाए, बिजलियाँ चमक रही हो, बादलों की गर्जना हो रही हो। छोटे-छोटे बूंदों की बारिश हो रही हो। हरियाली व चारो तरफ पुष्पा से सजी पृथ्वी का सारा वातावरण प्रफुल्लित हो , उस समय राज्य के मुख्य हाथी पर राजा के साथ बैठकर  मैं  धूम-धाम से नगर विहार , वन विहार करू।

ऐसी इच्छा होने पर धारिणी चिंतित हुई।  इस विपरीत-मौसम में बरसात कैसे हो सकती है? मेरा यह दोहद कैसे पूर्ण होगा? वास्तविकता समझकर धारिणी ने दोहद की बात राजा को नही बतलाई। पर उसका असर उसके स्वास्थ पर होने लगा। उसकी सुंदर काया मुरझाने लगी। श्रेणिकराजा ने जब आग्रह से पूछा तब राजा भी यह जानकर सोच में पड़ गये।

अब अभयकुमार को यह बात पता चली।  उसने किसी भी तरह छोटीमाता  का यह दोहद की पूर्ति वह करवाएगा ऐसे वचनों से राजा को आश्वस्त किया।

अब आगे?....

कल का जवाब : - कोणिक के बाद चेलना ने अन्य 2 पुत्रो को जन्म दिया  । विह्लल - विहास ( हम ज्यादातर इन्हें हल-विह्लल के नाम से जानते है।)

आज का सवाल : - कोणिक की पत्नी का नाम क्या था? 🤔


#मगधसम्राटश्रेणिक -  25

मेघकुमार

राजा श्रेणिक के चरित्र में आने वाले अन्य किरदार जैसे  कि मेघकुमार आदि की कथा शुरू कर के हम रसभंग न हो इसलिए अंत तक देख लेंगे। जैसेमेघकुमार के जन्म से दीक्षा के बीच में भी श्रेणिकराजा के साथ अन्य घटनाक्रम हुए पर वह मेघकुमार का पूरा कथानक हो जाने के बाद करेंगे। ताकि मेघकुमार की कथा बिना रसभंग पूरी हो ।

छोटीमाता धारिणी के दोहद के लिए पिता को आश्वस्त कर अभयकुमार अपने महल में आये। उन्हें लगा कि अकाल समय में मेघवर्षा करना सामान्य मानव का काम नही है। उन्होंने सोचा यह काम मात्र कोई देव ही कर सकेगा। उन्होंने अट्ठम तप करके एक देव का आराधन किया। देव आया। अभयकुमार ने माता धारिणी के दोहद के विषय में मदद मांगी। देव ने अभयकुमार को मदद के लिए निश्चिन्त किया।

उन्होंने अपनी वेक्रिय शक्ति से बड़े-बड़े मेघ की रचना की। पूरा आकाश बादलों से घिर गया। गर्जना हुई, बिजलियां चमकी,  मंद वायु के साथ हल्की हल्की बारिश होने लगी। धारिणी रानी अपने दोहद की पूर्ति होते देख प्रसन्न होकर सिंचानक हाथी ( यह हाथी भी एक महान आत्मा थी, हम इसकी कथा आगे देखेंगे। ) पर बिराजकर नगरभ्रमण करने लगी। उसके पीछे राजा भी गजारूढ होकर निकले। सवारी नगर में घूमते हुए उपवन में पहुंची । रानी धारिणी का दोहद पूरा हुआ। संतुष्टि के साथ सब वापस राजमहल आये।   धारिणी अब प्रसन्न होकर नियमपूर्वक गर्भपालन करने लगी।

गर्भकाल पूरा होने के बाद रानी ने एक सुंदर स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। दोहद के अनुसार  उनका नाम मेघकुमार रखा गया। राज्यपरिवार में उत्सव मनाया गया। कई  धायमाताओं द्वारा उनका पालन होने लगा। दिन-महीने-बरसों बीतने लगे। राजकुमार मेघ युवान हुए। पुरुषोचित  सभी कलाओ में प्रवीण हुए। 

श्रेणिकराजा ने 8 सुंदर राजकन्याओ के साथ उनका पाणिग्रहण करवाया। संसार के सुख भोगते हुए दिन बीत रहे थे।

उस काल उस समय में तीर्थंकर भगवान महावीर समस्त लोक में अपने केवलज्ञान के माध्यम से ज्ञान का प्रकाश फैलाते हुए विचरण कर रहे थे।

प्रभु एकबार विहार करते हुए राजगृही नगरी पधारे। राज्यपरिवार तथा नगरजन हर्षित होकर दर्शन वन्दन को उमड़ने लगे । मेघकुमार भी आये। प्रभुकी अदभुत देशना सुनकर भाव विभोर हो गये।  संसार से विरक्ति पाकर संयमग्रहण के लिए तत्पर हो गये। राजमहल आकर माता-पिता से संयम लेने की आज्ञा मांगी। माता-पिता को अनुमत कर भव्य दीक्षा महोत्सव के बाद  उन्होंने वीरप्रभु से 5 महाव्रत अंगीकार किये।

दीक्षा के दिन के बाद संयमग्रहण की प्रथम रात्री का प्रसंग था।  संतो ने रात्री में संतोके सोने के लिए संथारे ( यहां संथारा मतलब बिस्तर) बिछवाये। संयम पर्याय में मेघकुमार सबसे छोटे थे। तो उनका संथारा दरवाजे के पास आये। दीक्षा की प्रथम रात्री थी। मेघकुमार से मेघमुनि बने संत जहाँ सोए थे ,  वहां रात्री में संतो का परठने हेतु ज्यादा आवागमन हुआ। संतो के चलने से रज उड़कर मेघमुनि को परेशान करती रही। मुनियों के ज्यादा आवागमन से भी थोड़े विचलित हुये। पूरी रात सो न सके।

अब वे क्या करेंगे?

कल का जवाब : - कोणिक की पत्नी का नाम पद्मावतीजी

आज का सवाल : - मेघकुमार के पूर्वभव का नाम ? 


#मगधसम्राटश्रेणिक -  26

मेघकुमार

दीक्षा की प्रथम रात्री सन्तो के आवागमन तथा उनके पांव से उड़ती रज से मेघ मुनि विचलित हो गये। उन्होंने सोचा : - जब तक मैं राजकुमार था, - सभी संत  मेरी बहुत इज्जत करते थे, सब स्नेह से - आदर से बुलाते थे। जैसे ही मैंने दीक्षा ले ली , सब उपेक्षा करने लगे। मुझे सब से अंत में सुलाया। जहाँ सबकी पांवों की धुली से मैं ठीक से सो भी न सका। अब सुबह ही मैं प्रभुको बोलकर यह वेश त्याग कर राजमहल वापस चला जाऊंगा।

प्रातः हुई। मेघमुनि प्रभुके पास आये। सर्वज्ञ प्रभु तो उनके मनोभावों को जान गये थे। उन्होंने मेघमुनि से पूछा : - मेघ,  रात को हुए परिषह से घबराकर तुम श्रमणवेश छोड़ने के उद्देश्य से मेरे पास आये हो?

मेघ मुनि ने कहा : - हा, भंते।

वीरप्रभु ने फिर कहा : - मेघ, तुम इस जरा से परिषह से इतना घबरा गये। तुमने पिछले 2 भवो में कितने भयंकर उपसर्ग सहन किये है।  मैं तुम्हे तुम्हारे पिछले दो भवों  की कथा सुनाता हूँ।

वेताढ़य पर्वत की तलहटी के वन में तुम सुमेरुप्रभ नामक विशालकाय, बलशाली, सुडौल, रूपवान हाथी थे। एक हजार हाथी हथिनियों के तुम नायक थे। वन में अपने समूह के साथ तुम आनंद से अपने दिन गुज़ार रहे थे। 

एकबार ग्रीष्म ऋतु में सूखे लकड़ियों के टकराने से वन में भयानक आग लग गई। सब पशु पंखी इधर-उधर भागने लगे। भयानक लपटों में जंगल घिर गया था। वृक्ष के ऊपर-नीचे सूखे पत्ते, झाड़ियां सब जलकर भष्म होने लगे। कई प्राणी  भी   आग में जल गये। तुम भी भागते-भागते एक सरोवर के समीप पंहुचे। पानी की प्यास बुझाने तुम सरोवर के अंदर जाने लगे। पर प्रारंभ के दलदल में ही तुम फंस गये। जल्दी में बाहर निकलने के प्रयासों से तुम उसमे ज्यादा  धँसते गये।

उसी समय तुमने तुम्हारे समूह से किसी समय निकाले हुए तुम्हारे वैरी गजराज वहां आया। उसने शत्रुतावश अपने दांत से तुम्हें बहुत चोट दी। उस दलदल में फंसे होने से तुम प्रतिकार भी नही कर पाये। आखिर वह तो चला गया। तुम 7 दिन-रात तक अपार वेदना भोगकर अंत में मृत्यु को प्राप्त हुए। वहां से काल कर दक्षिण भरत में गंगा के दक्षिण किनारे एक हथिनी के गर्भ में उत्पन्न हुए। इस बार तुम्हारा नाम मेरुप्रभ था। चार दांत वाले तुम इस बार भी एक विशाल जोरावर हाथी थे।

युवा होने पर अनेक हथिनियों के साथ तुम अपने यूथ में सुखपूर्वक रह रहे थे। एकबार फिर तुमने दावानल का प्रकोप देखा। तब तुम्हे जातिस्मरण ज्ञान हुआ

उस ज्ञान में मेरुप्रभने क्या देखा ?

कल का जवाब : -- मेघकुमार के पूर्वभव का मेरु प्रभ तथा उससे पहले सुमेरूप्रभ

दोनो हाथी के भव

आज का सवाल :  मेघमुनि की संयम पर्याय कितनी थी?


#मगधसम्राटश्रेणिक -  27

मेघकुमार

उस जातिस्मरण  ज्ञान में मेरुप्रभने अपना पूर्वभव देखा । उस आग को महसूस किया जिसने सबकुछ जलाकर भस्म कर दिया था।

उस आग को देखकर तुम्हें तुम्हारा पिछला भव याद आ गया। 

बार-बार जंगल में लगती आग से अपने यूथ  को बचाने के लिए तुमने एक मंडल बनाया। उस मंडल से सारे पेड़ पौधे घास सब उखाड़ कर उसे साफ मिट्टी का मैदान बना दिया। जहां आग के समय तुम शरण ले सको।

एक बार जब आग लगी तब सारे पशुपक्षी उस मंडल में आ गये। आग से बचने के लिए एक मंडल में सारे पशु आने से वह मंडल में एक तुस-भर जितनी जगह न बची। सब एक दूसरे से सटकर खड़े थे। बाहर आग जलती रही पर उस मंडल में जलने लायक कुछ नही था , इसलिए सब छोटी सी जगह में बचे हुए थे। तुम भी अपनी हथिनियों के साथ उसी मंडल में थे। एकबार तुमने शरीर खुजाने के लिए पांव उठाया। जब वापिस पांव रखने लगे तब देखा कि एक खरगोश तुम्हारे पांव उठाने से  हुए रिक्त स्थान में आकर बैठ गया। अब यदि तुम पांव नीचे रखते तो वह खरगोश दबकर मृत्यु को प्राप्त करता। पांव रखने की दूसरी जगह थी नही। पर तुमने अनुकंपा दिखाई। अपना पांव अद्धर ही (हवा में झूलते हुए)  रखा। पल, प्रहर, दिन बीते। वह आग करीब अढाई दिन चली। तुमने एक अद्धर पांव के साथ अढाई दिन-रात गुजारे। उस समय तुम्हारे मन में अनुकंपा के शुभ भाव से मनुष्यायु कर्म बन्ध किया। अढाई दिन-रात बाद आग शांत हुई। सब प्राणी मंडल से निकलकर स्वस्थान जाने लगे। खरगोश भी गया तब तुमने पांव नीचे रखा। पर अढाई दिन-रात पांव अद्धर रखने से वह पांव अकड़ गया था। भूख प्यास से अशक्त बने हुए तुम उस समय गिर गये। वहां तुम्हे दाहज्वर हुआ। 3 दिन तक अत्यंत वेदना सहकर सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर तुम मृत्यु को प्राप्त हुए, और श्रेणिकराजा के यहां राजकुमार हुए।

जन्म से ही सुख वैभव को प्राप्त किया। यह था तुम्हारे शुभ भावोंका परिणाम।

तिर्यंच के भव में तुमने पहले कभी न पाया हुआ सम्यक्त्त्वरत्न तुमने प्राप्त किया। उसी के परिणाम स्वरूप तुमने संयम स्वीकार किया। अब जरा से परिषह से डरकर अनमोल संयम छोड़ना चाहते हो???

मेघमुनि को उसी समय जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने दोनो भव देखे। उनका संवेग दुगुना बन गया। 

कुछ समय बाद वे बोले : - अहो भगवन ! मैं भटक गया था। आपने मेरे भव बताकर, सही समझ देकर स्थिर किया। आप मुझे पुनः दीक्षित करे। अब मैं ईर्यासमिति के पालन हेतु यह 2 नेत्र रखकर अपना सारा देह, सारा जीवन संतोकी वैयावच्च के लिए समर्पित करता हूं।

पुनः संयम अंगीकार कर मेघमुनि उत्कृष्ट भाव से वैयावच्च, 12 प्रतिमा, ज्ञानाराधना आदि से संयम पालनकरने लगे।बारह वर्ष की संयम पर्याय बाद अंत में आयुष्य पूर्ण होता देख एक मास की अनशन संलेखना के साथ काल को प्राप्त कर विजय अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए।

वहाँ से आयु पूरा कर महाविदेह में मनुष्यभव में जन्म लेकर संयम आराधना कर मुक्त बन जाएंगे।

कल का जवाब : -- मेघमुनि की संयम पर्याय 12 वर्ष थी

आज का सवाल : मेरुप्रभ हाथी की आयु कितनी थी?

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