एक काल्पनिक कथा - 4
पूज्य आचार्य भगवंत भी ट्रस्टीकी बात ध्यानसे सुन रहे थे।
अमीत उलझन में था, यह महोदय कोई प्रसंग क्यों सुना रहे हैं।
ट्रस्टीने बात आगे बढायी :- उस उद्योगपतिने उस पत्रकार युवक को कहा-इतना वापस समझ लेना कि मेरा पत्र है इतने मात्र से फौरन मुलाकात देंगे ऐसा कोई नियम नहीं। तुझे बार बार जाना पडेगा। अब अगर तू तेरी नौकरी छोडकर यह करने तैयार है, तो मैं सभी पर पत्र लिखने तैयार हूँ। मगर तुझे निर्णय करने मैं एक मिनट देता हूँ।
पत्रकार सोच में पडा।
नौकरीमें सलामती थी। नौकरी छोडने पर इतनी पुँजी नहीं थी कि बरसों ऐसे ही बीता सके।
भविष्य की सफलता अंधेरे में थी। मानो कि पूरा भविष्य दाव में लगाना था और वो भी एक मिनट में।
उस युवकने सोचा, बिना साहस सिद्धि किसको मिली है ? बिना कष्ट झेले प्राप्ति का आनंद कैसे ?
युवावय का अर्थ है हिंमत-झिंदादिली।
इतना बडा उद्योगपति जब ओफर कर रहा है तो एक बार नैया तुफानी सागरमें रखने पर भी सफलता के सुवर्ण सुरज का किनारा मिलेगा ही। यहाँ कोई पुँजी लगानी नहीं है। मेहनत करनी है, समय की चुनौती झेलनी है।
उसने 35 सैकंडमें जवाब दिया-मैं तैयार हूँ।
उद्योगपतिने खुशी से हस्तधुनन किया और कहा-तेरी हिंमत काबिलेदाद है। मेरा मन कहता है, तू अवश्य सफल होगा।
यह उद्योगपति था ऐन्डुस कार्नेगी और युवक था शायद डेंल कार्नेगी।
पांच बरस-सात बरस उसने कडी महेनत की।
निष्फलता-अपमान भी बार-बार सहन किये।
कभी कभी चने-ममरे से पैट भरने के दिन भी आये। मगर बाद में जो किताब प्रकाशित हुँई, वो सुपरहीट हुई।
कई भाषाओमें अनुवाद हुआ। उस पत्रकारका लेखक के रुपमें बडा नाम भी हुआ। भरपुर दाम भी कमाया।
धन्यकुमार चरित्र-24 :-
गुणसार पारणा करने से पहले सोचता है-सुपात्रदान का लाभ मिल जाये तो सौभाग्य। बिना सुपात्रदान मुंह में एक कवल भी डालना पाप समान है। भावना तीव्र थी, हृदय से थी। अत: जोग संजोग से मासक्षमण के पारणे पर निर्दोष गाौचरी हेतु नीकले एक साधुका गुणसार को दर्शन हुआ। साधु भगवंत को गाँव से निर्दोष पानी मिला था। गौचरी नहीं मिली थी।
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