Kalpanik Katha काल्पनिक कथा

 एक काल्पनिक कथा - २ 

 युवक अपनी हर प्रगति का समाचार आचार्य भगवंत को देता था। 

आशीर्वाद मिलता रहता था। वैसे जैन संघ में तो अच्छा ख्याति भी प्राप्त की। 

एकबार वह आचार्य भगवंतको वंदन करने आया। उस वक्त संघका मुख्य ट्रस्टी महत्त्व की चर्चा हेतु आचार्य भगवंत के पास आया था। 

इस युवकने गुरु भगवंत को कहा-मैं ग्रेज्युएट हो गया हूँ। अब तक जगह पर नौकरी करुँगा और साथमें ङ.ङ.इ. वगैरह कोर्स करने की भावना है। गुरु भगवंतने पूछा-फिर वक्तृत्व के बारेमें क्या करेगा

उसने कहा-अभी तो मुझे इस शोक पर ब्रैक लगानी होगी। पप्पा अभी थके हैं। मुझे घर भार उठाना आवश्यक है। नौकरी में थका मैं इसका अभ्यास भी कहाँ कर सकुँगा ? और संघ के कार्यक्रम भी कैसे एटेंड कर सकुँगा ?

 सुनकर आचार्य भगवंत के चेहरे पर हकी सी ग्यालनि की लकीर प्रकट हुई। 

ऐसा होनहार लडका घरकी स्थिति की बजह से सारी प्रतिभा को कुचल कर थोडे रुपये की आवक हेतु नौकरी करेगा। 

प्रभो ! पूर्व भव की लोभ-अनीति-धनार्थ कठोरता जैसी छोटी-बडी भूल ऐसे कितने प्रतिभावंतो को घर-परिवार हेतु सामान्य क्लर्क बना देती होगी ? एक ओर प्रतिभा-दूसरी ओर परिवार की चिंता !

 जो ट्रस्टी थे, गुरुभक्त थे। 

गुरुभगवंत के चेहरे पर प्रकटी लकीर को समझ गये। 

उन्होंने गुरुदेव को पूछा-क्या इस युवकके बारे में आपकी कोई अलग अवधारणा की ? जो नौकरि करने पर नष्ट होगी ! 

गुरुदेवने कहा-यह अमीत है, जो अच्छा वक्ता है। मैंने यहाँ पाठशालाके वार्षिक कार्यक्रम में प्रेरक वक्तव्य देने बोलाना सोचा था। 

ट्रस्टीने पूछा-आज काल नाम सुनने मिलता है, वो ही है क्या

गुरुदेवने हामी भरी। ट्रस्टीने अमीत के सामने देखा।

 

 

क्रमश:

 

 धन्यकुमार चरित्र-22 :-

 गुणसारने पत्नी को कहा-मुझे जाना उचित नहीं लगता है। फिर भी तेरे कहने से कल सुबह प्रभात समयपर ही वहाँ जाने के लिए निकलुँगा। पत्नीने भी सोचा-कलका दिन तो उपवास होगा। परसु पारणा कहाँ करेंगे ? पहुँचने में दो दिन तो लगता ही है। पत्नीने एक थेली में भाथा पारणा हेतु दिया। वह दूसरे दिन सुबह ही निकल गया।

 

एक काल्पनिक कथा -

 मुख्य ट्रस्टी-जिनका नाम था शांतिलाल जैन ने अमीत के सामने देखकर कहा-गुरुदेव का तू भक्त-अनुयायी-विद्यार्थी है जानकर मुझे खुशी हुई। एक पुराना प्रसंग है। 

एक अभी अभी न्युझ पैपर में पत्रकार के तौर पर नियुक्त हुआ और इस क्षेत्रमें कुछ कर के दिखाना है, ऐसे उत्साह से भरा नवयुक्त अमेरिका के एक टोच के उद्योगपति को मिलने आया। प्रतिष्ठित न्युझ पेपर की ओर से आ रहा था अत: उद्योगपतिने पांच मिनीट दिया था। 

वह युवक उद्योगपति के सामने बैठा। 

तब उद्योगपतिको क्या सुझा उसने उस युवकको कहा-अपने देशमें अपनी प्रतिभा-पुरुषार्थ से आर्थिक विशाल साम्राज्य खडे करने वाले बहुत उद्योगपति हैं। तू मेरा अकेला का ही क्यों इंटरव्यु लेता है ? सभी का ले। सभी की ओर से जीवनमें आर्थिक सफलता हेतु कोई न कोई चाबी अवश्य मिलेगी। लेकिन ज्यादातर तो कोई उद्योगपति ऐसी मुलाकात हेतु समय ही नहीं देगा। तुझे बार-बार जाना पडेगा। तभी थोडा-थोडा समय देंगे। तू यह पत्रकार की नौकरी में ऐसा नहीं कर सकेगा। यानी तुझे नौकरी छोडनी पडेगी। जीवन निर्वाह हेतु अन्य कोई स्तोत्र ढुंढना होगा। 

 

मैं मानता हूँ, तू सबके इंटरव्यु प्रकाशित करेगा और उन्होंने दी सफलता की चाबियों को अच्छे शब्दोमें सजायेगा, तो वो किताब हीट साबित होगी। तू अच्छी कमाई भी करेगा और तेरा बडा नाम भी होगा। 

वह पत्रकार :- मगर मैं कोई न्युझ पत्र जैसे के बल बिना जाऊँगा, तो कौन मुझे खडे भी रहने देगा

उद्योगपति :- मैं तुझे दूसरी तो कोई सहायता नहीं कर सकता, मगर मैं उन-उन उद्योगपतिओं को तुझे मुलाकात दे इस हेतु पत्र लिखकर देता हूँ। शायद तुझे इस पत्र के बल पर मुलाकात का अवसर मिल सकता है।

 

क्रमश:

 

  धन्यकुमार चरित्र-23 :- 

गुणसार सुबह ससुराल जाने पथभोजन सामग्री का थेला लेकर नीकला। उस दिन तो उपवास था। 

दूसरे दिन पारणा के समय गुणसार एक तालाब के पास एक वृक्ष के नीचे थेला में से भोजन सामग्री निकालकर भोजन की तैयारी करने लगे। हरबार पारणा के वक्त सुपात्रदान का भाव होता था। मगर आज भावना में तीव्रता आयी। 

जिसको रोज सुपात्रदान का अवसर मिलता है वो धन्य है।

 

 

एक काल्पनिक कथा - 4

 पूज्य आचार्य भगवंत भी ट्रस्टीकी बात ध्यानसे सुन रहे थे। 

अमीत उलझन में था, यह महोदय कोई प्रसंग क्यों सुना रहे हैं। 

ट्रस्टीने बात आगे बढायी :- उस उद्योगपतिने उस पत्रकार युवक को कहा-इतना वापस समझ लेना कि मेरा पत्र है इतने मात्र से फौरन मुलाकात देंगे ऐसा कोई नियम नहीं। तुझे बार बार जाना पडेगा। अब अगर तू तेरी नौकरी छोडकर यह करने तैयार है, तो मैं सभी पर पत्र लिखने तैयार हूँ। मगर तुझे निर्णय करने मैं एक मिनट देता हूँ। 

पत्रकार सोच में पडा। 

नौकरीमें सलामती थी। नौकरी छोडने पर इतनी पुँजी नहीं थी कि बरसों ऐसे ही बीता सके। 

भविष्य की सफलता अंधेरे में थी। मानो कि पूरा भविष्य दाव में लगाना था और वो भी एक मिनट में।

 उस युवकने सोचा, बिना साहस सिद्धि किसको मिली है ? बिना कष्ट झेले प्राप्ति का आनंद कैसे ?

 युवावय का अर्थ है हिंमत-झिंदादिली। 

इतना बडा उद्योगपति जब ओफर कर रहा है तो एक बार नैया तुफानी सागरमें रखने पर भी सफलता के सुवर्ण सुरज का किनारा मिलेगा ही। यहाँ कोई पुँजी लगानी नहीं है। मेहनत करनी है, समय की चुनौती झेलनी है। 

उसने 35 सैकंडमें जवाब दिया-मैं तैयार हूँ। 

उद्योगपतिने खुशी से हस्तधुनन किया और कहा-तेरी हिंमत काबिलेदाद है। मेरा मन कहता है, तू अवश्य सफल होगा। 

यह उद्योगपति था ऐन्डुस कार्नेगी और युवक था शायद डेंल कार्नेगी। 

पांच बरस-सात बरस उसने कडी महेनत की। 

निष्फलता-अपमान भी बार-बार सहन किये। 

कभी कभी चने-ममरे से पैट भरने के दिन भी आये। मगर बाद में जो किताब प्रकाशित हुँई, वो सुपरहीट हुई। 

कई भाषाओमें अनुवाद हुआ। उस पत्रकारका लेखक के रुपमें बडा नाम भी हुआ। भरपुर दाम भी कमाया।

 

 

 

 धन्यकुमार चरित्र-24 :- 

 

  गुणसार पारणा करने से पहले सोचता है-सुपात्रदान का लाभ मिल जाये तो सौभाग्य। बिना सुपात्रदान मुंह में एक कवल भी डालना पाप समान है। भावना तीव्र थी, हृदय से थी। अत: जोग संजोग से मासक्षमण के पारणे पर निर्दोष गाौचरी हेतु नीकले एक साधुका गुणसार को दर्शन हुआ। साधु भगवंत को गाँव से निर्दोष पानी मिला था। गौचरी नहीं मिली थी।

 

एक काल्पनिक कथा - 5

 

 फिर उस ट्रस्टी महोदयने आचार्य भगवंत को नमन कर कहा-आपकी अनुमति होगी तो मैं इस अमीत को भी यही चैलेंग थोडे से फर्क के साथ देना चाहता हूँ। 

आचार्य भगवंतने अनुमति दी। 

तब शांतिभाईने अमीत को कहा-मैं रेडीमेड गार्मेन्ट मर्चन्ट एसोसियेशन का प्रमुख हूँ। अगले सोमवार को ऐसोसियेशन की वार्षिक सभा है। मेम्बरों को प्रोत्साहित करना है। प्रोब्लेम्स के सामने एकजुट होता है। मैं तुझे मुख्य वक्ता के तौर पर आमंत्रण दे सकता हूँ। मैं अन्य कोई जगह पत्र लिखुँगा नहीं, मगर यह ब्रेक तुझे मिलेगा। तेरे वक्तृत्वकी नोंध मीडिया भी लेगी। मैं तुझे एसोसियेशन से दस हजार रुपया पुरस्कार भी दिला सकता हूँ। मगर फिर नौकरी के चक्कर में नहीं जाना। पूज्य गुरुदेव की इच्छा नहीं है। बोल एक मिनट में जवाब दे। 

 

अमीत उलझन में पडा। पूज्य गुरुदेव के सामने देखा। चरण स्पर्श किया। 

फिर कहा-मैं तैयार हूँ। 

शांतिभाईने गले लगाकर कहा-शाबाश! तु अवश्य आगे बढ सकता है। 

पिताके या अन्य के पैसे पर साहस करना मूर्खता है। अपनी प्रतिभा और परिश्रम के बलबूते ऐसा निर्णय करना ही सही साहस है जो अवश्य सार्थक-सफल होता है। 

अमीतने कहा:- तो अब आपको मेरी विनंती है। मैं सही ढंग से तैयारी कर सकुँ इस हेतु से मैं जो माहिती की अपेक्षा रखता हूँ वो कैसे कर भी आप मुझे उपलब्ध करायेंगे। 

शांतिभाईने कहा :- मैं सेक्रेटरी से बात करता हूँ। तुझे जो पूछना है पूछ सकता है। Wish You Best Of Luck ! 

अमीतने आभार व्यक्त किया। गुरुदेव का आशीर्वाद लिया।

क्रमश:

 

 धन्यकुमार चरित्र-25 :- 

 

गुणसार सेठ मुनिराज का दर्शन करते ही रोमांचित हो गये। 

चंद्र को देखकर चकोर जैसा आनंद हुआ। रेगिस्तान में कल्पवृक्ष समान यहाँ साधुभगवंत की भक्ति होगी ऐसा सोचकर वह सामने गया। अहोभाव से नमस्कार किया। आज आपने मुजे दर्शन देकर कृतार्थ किया ऐसा भाव व्यक्त किया।

 

आज (1) विनीतभाई - चेन्नई 

(2) अभिषेकभाई-हुबली 

(3) हर्षकुमार - हुबली तथा 

(4) चेतनकुमार - हुबली 

चार मुमुक्षुओं का दीक्षा मुर्हुर्त घोषित हुआ। 

हुबली में महासुद-10, 22-02-2021 सोमवार को दीक्षा होगी। 

हितशिक्षा में बतराया गया- SMART होना ही साधुजीवन है। 

S = सीन्सीयर होना। कोई भी आराधना-पूरी गंभीरता से-एकाग्रता से करने से आप आराधना में सीन्सीयर माने जाऐंगे। 

M = मार्वेलस... हरएक क्षण अद्भुत सेवा-समर्पण-स्वाध्याय इत्यादिमें से जिस वक्त जो उचित हो उसमें इतनी लगनभरी होनी चाहिए कि ज्ञानी कह सके-मार्वेलस-अद्भुत ! अनूठा ! अनुपम ! 

A = एलर्ट :- हंमेशा सावध रहना है। मन भी जरा असावध रहा, तो पाप में-दुर्भावमें चला जायेगा। अत: साधुता ही एलर्टनेस में हैं-साधुता यानी सावधानी-अप्रमाद। 

R = रीस्पेक्टफुल। मुख्यतया परमात्मा प्रति और गुरु के प्रति अपना हरएक व्यवहार-वाणी-विचार अहोभाव-सन्मानदर्शक ही होना चाहिए। इसीसे सर्वत: कल्याण है। प्रभु-गुरु का विनय कल्याणकंद है। सामान्य तौर से संघ के नौकरके प्रति भी अपना व्यवहार सन्मादर्शक ही होना चाहिए। वो भी भावी में मोक्षगामी संभवित है। अपनी शालीनता इसीमें है कि जिसके प्रति दुनिया कठोर-उपेक्षित व्यवहार करती है, उसके प्रति भी सहज प्रेमभरा-सन्मानसूचक व्यवहार हो। 

T = ट्रस्ट ! बिश्‍वास ! आपको कभी देव-गुरु-धर्मके प्रति बिश्‍वास गंवाना नहीं है। संघ-समुदाय-गुरु-माता-पिता सभीने जो बिश्‍वास से दीक्षाकी अनुमति दी है वो सार्थक करता है। आपको SMART होना है। चेहरे से नहीं, चारित्र से।

 

  धन्यकुमार चरित्र-26 :- गुणसारने मुनिभगवंत को कहा-हे कृपा निधि। आप यहाँ पधारिए। अत्यंत निर्दोष ऐसी भिक्षा ग्रहण कर मेरे जैसे दीन-हीन-अनाथ का उद्धार कीजिए। कहते कहते गुणसार की आँख में आँसु उमड आये। क्या गुरुदेव मेरे जैसे हीनभागी पर करुणा बरसायेंगे

        

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