जिनपूजा में सात प्रकार की शुद्धी --
1). अंग सुधि:- मानवीय काया मलमूत्र, पसीना, थूक, बलगम, और धुल आदि से सदा मलिन होती रहती हे। अत: पूर्वोक्त स्नान विधि से इसे शुद्ध करने के बाद ही परमात्मा का स्पर्श करना यही अंग शुद्धी कहलाता हे।।।।।
जब शरीर में घाव आदि हो और उनमे सतत मवाद प्रवाहित हो रहा हो तो जिन पुजा नहीं करनी चाहिए बहुत बड़ा दोष लगता हे ड्रेसिंग करने के बाद यदि शुद्धी रहती हे तो पूजा करने में कोई हर्ज नहीं हे ।।।
2). वस्त्र शुद्धी:- वस्त्र और विचारो का प्रगाढ़ सम्बन्ध हे, इस लिए कहा जाता हे ' जैसा वेश वैसी वृति ' विकारी वेश विकारो के जनक होते हे, मलिन वेश मन में मलिनता उत्पन करते हे। ।।
उसी प्रकार मन की शुद्धी में निर्विकार वेश ही कारण बनते हे अत: पूजा के वस्त्र शास्त्रों में बताये अनुसार उज्जवल और शुद्ध प्रयोग में लाने चाहिए उपयोंगोपरात प्रती दिन इसकी सफाई करनी चाहिए ।।।
श्रवाको के पूजा के कपड़ो में कही भी सिलाई नहीं की होनी चाहिए और कही से फटा हुवा भी नहीं होना चाहिये ।।।।।
3). मन शुद्धी:- परमात्मा की पूजा करते वक्त मन को तो सबसे पहले शुद्ध रखना चाहिए इसके लिए मन को मलिन करने वाले दुर्विचारो को सदंतर त्यागना चाहिए । सभी सामग्रिया शुद्ध रहे लेकिन मन में शुद्धता का भाव ना हो तो सब कुच्छ व्यर्थ हो जायेगा ।।।।।
इस लिए मन अपने बस में हे तो सब कुच्छ अपने बस में ही हे वरना कुच्छ भी नहीं।।।
4). भूमि शुद्धी:- भूमि के जिस भाग में जिनालय का निर्माण होना हो , भूमि को पाताल तक शुद्ध करके उसके भीतर हुए, कोयले हडडीय़ा, आदि दूषित तत्वों को दूर करने के बाद ही मंदिर का निर्माण करना चाहिए ।
चेत्यवंदन आदि विधि करते समय जिन मंदिर में रहे हुए काजे आदि को दूर करना भी भूमि शुद्धी का अंग हे।।।
5). उपकरण शुद्धी:- परमात्मा की पूजा में प्रयुक्त किए जाने वाले तमाम उपकरणों का निर्माण उच्च श्रेणी की धातुओ से कराना । जैसे स्वर्ण, रजत, तांबा,आदि उसी प्रकार इन्हें उपयोग में लेने के पूर्व अच्छी तरह से साफ़ कर लेना चाहिए ।
प्रभु के अंग लूछने मोटे मोटे मादरपाट के कपडे नहीं, परन्तु कोमल उत्तम वस्त्रो से बने होने चाहिए।।।
6). द्रव्य शुद्धी:- परमात्मा की पूजा में उपयोग करने योग्य सामग्री के क्रम में तथा अभिषेक आदि उत्सव में न्नायोपर्जित धन का उपयोग करना ।
ऐसा होने से भावो उल्लास अधिक जाग्रत होता हे, और ऐसे शुद्ध द्रव के प्रयोग से अगणित लाभ प्राप्त होते हे।।।।
7). विधि शुद्धी:- परमात्मा की पूजा तथा चेत्यवंदन आदि की विधि शुद्ध रीति से करनी चाहिए ।
प्रमाद, अविधि, आशातना आदि दोषों को कही भी प्रवेश न करने देना चाहिए l
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