एक काल्पनिक कथा - 3
मुख्य ट्रस्टी-जिनका नाम था शांतिलाल जैन ने अमीत के सामने देखकर कहा-गुरुदेव का तू भक्त-अनुयायी-विद्यार्थी है जानकर मुझे खुशी हुई। एक पुराना प्रसंग है।
एक अभी अभी न्युझ पैपर में पत्रकार के तौर पर नियुक्त हुआ और इस क्षेत्रमें कुछ कर के दिखाना है, ऐसे उत्साह से भरा नवयुक्त अमेरिका के एक टोच के उद्योगपति को मिलने आया। प्रतिष्ठित न्युझ पेपर की ओर से आ रहा था अत: उद्योगपतिने पांच मिनीट दिया था।
वह युवक उद्योगपति के सामने बैठा।
तब उद्योगपतिको क्या सुझा उसने उस युवकको कहा-अपने देशमें अपनी प्रतिभा-पुरुषार्थ से आर्थिक विशाल साम्राज्य खडे करने वाले बहुत उद्योगपति हैं। तू मेरा अकेला का ही क्यों इंटरव्यु लेता है ? सभी का ले। सभी की ओर से जीवनमें आर्थिक सफलता हेतु कोई न कोई चाबी अवश्य मिलेगी। लेकिन ज्यादातर तो कोई उद्योगपति ऐसी मुलाकात हेतु समय ही नहीं देगा। तुझे बार-बार जाना पडेगा। तभी थोडा-थोडा समय देंगे। तू यह पत्रकार की नौकरी में ऐसा नहीं कर सकेगा। यानी तुझे नौकरी छोडनी पडेगी। जीवन निर्वाह हेतु अन्य कोई स्तोत्र ढुंढना होगा।
मैं मानता हूँ, तू सबके इंटरव्यु प्रकाशित करेगा और उन्होंने दी सफलता की चाबियों को अच्छे शब्दोमें सजायेगा, तो वो किताब हीट साबित होगी। तू अच्छी कमाई भी करेगा और तेरा बडा नाम भी होगा।
वह पत्रकार :- मगर मैं कोई न्युझ पत्र जैसे के बल बिना जाऊँगा, तो कौन मुझे खडे भी रहने देगा ?
उद्योगपति :- मैं तुझे दूसरी तो कोई सहायता नहीं कर सकता, मगर मैं उन-उन उद्योगपतिओं को तुझे मुलाकात दे इस हेतु पत्र लिखकर देता हूँ। शायद तुझे इस पत्र के बल पर मुलाकात का अवसर मिल सकता है।
क्रमश:
धन्यकुमार चरित्र-23 :-
गुणसार सुबह ससुराल जाने पथभोजन सामग्री का थेला लेकर नीकला। उस दिन तो उपवास था।
दूसरे दिन पारणा के समय गुणसार एक तालाब के पास एक वृक्ष के नीचे थेला में से भोजन सामग्री निकालकर भोजन की तैयारी करने लगे। हरबार पारणा के वक्त सुपात्रदान का भाव होता था। मगर आज भावना में तीव्रता आयी।
जिसको रोज सुपात्रदान का अवसर मिलता है वो धन्य है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें