Dharnendra Parshwanath धरणेन्द्र पार्श्वनाथ

धरणेन्द्र पार्श्वनाथ

Dharnendra parshwanath
Dharnendra parshwanath

आज के दर्शन औऱ इतिहास 108 धरणेन्द्र पार्श्वनाथ भगवानके 26वे पार्श्वनाथ जी की मूर्ति औऱ मंदिरका।

एक बार इस अति प्राचीन और चमत्कारी ,अललौकि अज्ञात इस तीर्थंकर धरणेन्द्र पार्श्वनाथ जी के दर्शन मात्र हेतु जरूर पधारे।और 108 पार्श्वनाथ की सृंखला बद्ध मंदिरों के दर्शन जरूर करे।🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🌹🌹
धमाशा नी नेल, आरवल्ली पहाड़ी

भरतक्षेत्र के वाराणसी शहर पर राजा अश्वसेन और महारानी वामादेवी का शासन था। महारानी वामादेवी ने 14 शुभ सपनोंके दर्शन हुए।और उसका मतलब तीर्थंकर के रूप में बताया गया।

मगसर वद दशम की आधी रात में, राजकुमार का जन्म होते ही। सारे कैदियों को मुक्त करने के लिए कहा गया था, करों को समाप्त कर दिया गया और पूरे शहर ने राजकुमार के जन्म को उल्हास से मनाया गया।

एक बार राजा और रानी एक बगीचे में गए। रात का समय था। राजा के पास एक काला सांप आया। राजा इससे अनभिज्ञ था। लेकिन रानी ने इस पर ध्यान गयाऔर जल्दी से राजा को दूसरी ओर ले गई।  
और सांप भी बिना कुछ नुकसान किये वहासे चला गाया। ।यह गर्भावस्था का प्रभाव था। इसके कारण, राजकुमार को "पार्श्व नाथ" नाम दिया गया था।

राजकुमार पार्श्वनाथ शादी करने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन, काफी मनावल के बाद वह राजी हो गया, और उसने कुशस्थलपुर के राजा प्रसेनजित की बेटी राजकुमारी प्रभावती से विवाह कर लिया।
 क्योंकि राजकुमारी प्रभावती ने केवल राजकुमार पार्श्वनाथ विवाह करनेकी और किसी अन्य के साथ विवाह न करने की शपथ ली थी। 
शादी के बाद पार्श्वनाथ ने सिंहासन पर चढ़ने से इनकार कर दिया।क्योंकि वे वह दुनियावी कामों से दूर रहना चाहते थे ।

एक बार जब कमठ नाम का एक व्यक्ति की "पंचाग्नि तपस्या"नामक घोर तपस्या चल रही थी।
राजकुमार पार्श्वनाथ वहाँ पहुँचे। आग की लपटें आसमान तक पहुंच गई थीं।
लेकिन, राजकुमार पार्श्वनाथ ने अपनी दिव्यता से ऐसा देखा कि उस हवन के एक लकड़ी में सांपों का एक जोड़ा जल रहा था। राजकुमार पार्श्वनाथ ने हवन में से उस लकड़ी को बाहर निकाला। उस लकडीमे सांप के जोड़े को जलते हुए देखा।

 राजकुमार पार्श्वनाथ ने "नमस्कार महामंत्र" का जाप किया और उस नाग जोड़े को आझाद किया।
और उनसे तपस्वि से नाराज़ न होने का अनुरोध किया। उसी क्षण, दोनों सांप वहासे गुजर गए। 
बाद में, वे साँपों के देवता बन गए -और देव धर्नेन्द्र और देवी पद्मावती के नामसे पहेचान में आये ।
कमठ को पिछले जन्म का ज्ञात हुआ तो वो भगवान पार्श्वनाथ से अपने पिछले जन्म का बदला लेना चाहते थे। पार्श्व प्रभु को नुकसान पहुंचाने के लिए, उन्होंने एक शेर, बाघ, तेंदुए आदि का रूप धारण किया।
लेकिन कोई नुकसान नहीं कर सकता था, क्योंकि भगवान पार्श्वनाथ गहन ध्यान में थे और स्तंभ की तरह बहुत मजबूत थे।
कामथ विचलित हुआ और फिर आसमान में काले बादल इकट्ठे करवाते हुए भारी बारिश की सुरवात की थी, जिससे पानी का स्तर तेजी से बढ़ रहा था। धीरे-धीरे यह उसकी छाती के स्तर तक आ गया। उस क्षण धरणेन्द्र का आसन हिलने लगा। उसने पानी में खड़े पार्श्वप्रभु को देखा। वह मदद के लिए दौड़ा। उन्होंने पार्श्वनाथ भगवान के चरणों के नीचे एक बड़ा कमल बनाया और धरणेन्द्र ने स्वयं अपनी सात फनों को उठाया, उन्हें फैलाया और पार्श्वप्रभु के सिर पर छत्र चढ़ाया और इस प्रकार उन्होंने प्रभु की रक्षा की। बाद में, कमठ ने पश्चाताप किया और चले गए। जब हर बात साफ हो गई तो धनेन्द्र भी चला गया, लेकिन पार्श्व प्रभु इस सब से अनजान थे।
कालांतर में राजकुमार पार्श्वनाथ ने दीक्षा ली और पंच मुष्टि लोच किया।

अरावली पर्वत पर मंदिर का इतिहास काफ़ी प्राचीन है।
उससे जुड़ी एक चमत्कारी घटना ।जिससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर की मूर्ती काफी चमत्कारी है।
अरावली पहाड़ पर एक बार महाराण प्रताप ओर अकबर के बीचमे घमासान युद्ध हुआ,अकबरकी विशाल सेनाके सामने महाराणा प्रताप की सेना का ओर धनबल का काफी नुकसान हो रहा था।उपरसे ज़ोरदार बारिश हो रहीं थी।

महाराण प्रताप काफी चिंतित हो गया।तभी वहासे आचार्य भगवंत पूज्य लक्ष्मीसागर सुरिस्वरजी महाराज विहर कर रहे थे।

महाराण प्रतापकी ये दशा देखकर आचार्य भगवंत ये उन्हें प्रेरणा दायक उपदेश दिया कि आप धमशा नी लेन आरावली के तीर्थंकर भगवान धरणेन्द्र पार्श्वनाथ की आराधना करो वो जरूर आपकी सहायता करेंगें।

आप ऐसें मुरझाकर मत बैठिये,आप आज से ही तीन दिन तक धरणेन्द्र पार्श्वनाथ प्रभु की आराधना करो वो सब अच्छा करेंगे।

महाराणा प्रताप ने तीन दिनोंतक अंतर्मन से सच्ची प्रभु की भावविभोर होकर आराधना की। उस आराधना करते वक्त 8से 10 बार आँखे भर आई थी।

चौथे दिन जब महाराणा प्रताप की आँखे खुली तो सामने दानवीर भामाशा शेठ को देखा।
दानवीर भामाशा शेठने अपनी सारिसम्पति महाराणा प्रताप को दान में देकर बोले देश की रक्षाके लिये कुछ भी करने की प्रेरणा देते हों।
इतने बड़े दानसे महाराण प्रताप फिरसे अपनी सेना को सज्ज करता है।ओर अकबर के सामने पराक्रम करने के लिए सज्ज हो जाते है।
यह भी सुनने में आया है कि भामाशा सेठ नेभी धरणेन्द्र पार्श्वनाथ प्रभु कि आरधान की थी।
इनसे ये साबित होजाता है कि महाराणा प्रताप की सच्चे हृदय से कीगई आराधना से उन्हें दान मिला और दानवीर भामाशा सेठ ने दान किया।
इस अति प्राचीन आरावली पहाड़ियों में स्तिथ प्रभु धरणेन्द्र पार्श्वनाथ की अलौकिक मूर्ती के दर्शन जरूर करने चाहिए।और सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जायेंगी।
इस मूर्ती के निचे से पाणी बहता है,ओर जितने श्रावक यहां आते है उतनाही कुंड भरता है।
पहाड़ियों में होने की वजहों से काफी कम श्रद्धालु यहाँ आते है। आज भी ये तीर्थ श्रावकों को जानकारी के अभाव से अज्ञात है।

सौजन्य jain karm and dharm 
108 parshvnath

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