Bhaktambar stotra

श्री भक्तामर स्तोत्र के रचयिता श्री मानतुंगसुरीजी की जीवन झरमर:-

मालव देश के उज्जयिनी नगरी मे श्री वृद्ध भोज(कही कही हर्ष राजा का भी उल्लेख मिलता है) राजा के समय ब्राह्मणों का जोर था वे खुद के सामने दुसरो को गौण समजते थे। राजा ने जैन श्रावको से पूछा आप जैनों में कोई विद्यावाला बुद्धिमान है?जैनों के कहने पर राजा ने जैन आचार्य श्री मानतुंगसुरीजी को आदर सहित राजदरबार में बुलाया। प्रवेश महोत्सव के समय ब्राह्मणों ने घी भरा पात्र उनके हाथ में रखा आचार्यजी ने उसमे एक सली डाली और श्रावक के पूछने पर श्रीजी ने बताया की ब्राह्मण यह बताना चाहते है की यह नगर ब्राह्मणों से भरा पड़ा है तब मैंने सली डालकर यह बताया इस प्रकार हम प्रवेश करेगे। राजा ने उनको पूछा की अपनी वक्तव्य कला बताईये।सुरीजी ने ब्राह्मणों को वाद में हराया। फिर राजा ने कहा कोई देवि शक्ति हो तो बताये। श्री जी कहने पर उन्हें 48 बेड़िया पहनकर एक रुम में बंधकर सात ताले मारे और चोकीदार रखे गए। सूरी जी एक एक स्तोत्र का पठन करते गए और 48 बेडिया खुल गई।औरश्री भक्तामर स्तोत्र की रचना हुई। जिसे देखकर राजा आश्चर्यचकित हो गए और सुरीजी का बहुमान किया गया।राजा जैन धर्म के प्रति प्रीती वाला हुआ। जैन शासन की जय जय कार हुई। बृहद गच्छीय श्री मानतुंगसुरीजी वीरप्रभुजी की सुधर्मास्वामीजी की पट्टधर की 20वि पाट पर आये थे। श्री नमिऊण स्तोत्र की रचना भी की थी।
©भक्तामर स्तोत्र अत्यंत ही महिमावंत स्तोत्र है,इस स्तोत्र से युगाधिदेव श्री आदिनाथ भगवान् की स्तुति की गई है।प्रत्येक शब्द में,प्रत्येक गाथा में अनेकोनेक सिद्धियुक्त मंत्र है।
इन शब्दों का श्रवण और पठन करने से सभी प्रकार की आधि-व्याधि-उपाधि दूर होती है।
©भक्तामर स्तोत्र का मूल मंत्र:-
ऊँ ह्रीं नमो अरिहंताणं,सिद्धाणं,सूरीणं उवज्झायणं साहूणं,मम-ऋद्धिं-वॄद्धिं,समीहितं,कुरु कुरु स्वाहा।

आचर्य श्री मागतुंगसुरीजी महाराजा ने जिस जेल के अंदर भक्तामर स्त्रोत की रचना की थी वो जेल आज भी भोजसाला के नाम से धार जिला इन्दौर में हे।।पत्थर पर लिखा भक्तामर साफ नजर आता हे।

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