Bhagvan Ki Pratima Ke Pichhe Bane Parikar

भगवान की प्रतिमा के पीछे बने परिकर का महत्व.

हमने अनेक बार नोटिस किया की कुछ प्रतिमा जी परिकर युक्त होते हैं।  सामान्य रूप से कहें तो कुछ प्रतिमा केवल भगवान की होती हैं और कुछ प्रतिमा के चारो ओर चित्रकारी- नक्काशी सी होती है । यह नक्काशी परिकर है । 
क्या हमने कभी सोचने की कोशिश की कि इस परिकर का क्या महत्व है ? 
शिल्प के हिसाब से तो परिकर का महत्व है ही किन्तु यह परिकर प्रभु का सम्पूर्ण जीवन है । जी ! उनके च्यवन ( माता के गर्भ में आने से लेकर ) सिद्ध अवस्था को प्राप्त करने का सम्पूर्ण जीवन इस परिकर में होता है ।
प्रभु के मस्तक के ऊपर एक पेट जैसी आकृति होती है । यह प्रतीक है प्रभु का उत्पत्ति स्थल , उनके माता के गर्भ का.
हाथी पर बैठे देवतागण एवं अनेकों कलशों की आकृति प्रतीक है प्रभुके इस धरती पर जन्म एवं इंद्रा द्वारा प्रभु के अभिषेक का
माला लेकर खड़े हुए देवता प्रतीक है प्रभु के अपने युवा काल में नगर के राजा बनने का
मूल प्रतिमा के दायें और बाएं प्रभु की खड़ी हुई मुद्रा में आकृति होती है । यह प्रतीक है प्रभु की दीक्षा और साधना का
परिकर में खुदे तीन छत्र ,सबसे ऊपर वृक्ष की आकृति ,देवताओं द्वारा फूल बरसाने की आकृति ,प्रभु के पीछे सूर्य सा भामंडल -ये सब प्रतीक है प्रभु की केवलज्ञान अवस्था का 
काउसगग मुद्रा में बनी परिकर में आकृति अथवा स्वयं पद्मासन में बैठे मूल परमात्मा -ये निर्वाण बताते हैं क्योंकि इन्ही दो मुद्राओं में तीर्थंकरों को निर्वाण हुआ था ।
इस प्रकार परिकर में प्रभु का पूरा जीवन समां जाता है और इसका चिंतन हमें ज़रूर करना चाहिए.

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