#औपपातिक_सूत्र यह प्रचलित नाम और इसका प्राकृत नाम #उववाइय_सुत्त है।
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| Aupalatik sutra |
प्राचीनकाल में अर्थात् भगवान महावीर की उपस्थिति में आगमों के दो प्रकार के वर्गीकरण थे। एक , पूर्व और अंग। पूर्वो का अध्ययन विशिष्ट बुद्धिसम्पन , विशेष उपधान तप करने वाले श्रमण करते थे।अंगों का अध्ययन सभी श्रमणों के लिए आवश्यक था । दूसरा , अंग प्रविष्ट तथा अंग बाह्य । अंग प्रविष्ट आगमों में दृष्टिवाद सहित १२ अंग सूत्रों की गणना थी , शेष सभी आगम अंग बाह्य #भगवान_महावीर निर्वाण के पश्चात् आगमों का जब संकलन हुआ तो उसका वर्गीकरण एक भिन्न प्रकार से किया गया । अंग आगम तथा उपांग आगम । इसके पश्चात् मूल व छेद के रूप में भी आगमों की सूची बनाई गई ।
अंग सूत्र बारह थे , किन्तु #दृष्टिवाद लुप्त होने के पश्चात् ग्यारह अंग ही विद्यमान रहे । उपांगों की संख्या बारह है । ' उपांग ' शब्द से यह सूचित होता है कि इनका अंगों के साथ सम्बन्ध है , किन्तु वास्तविकता यह है कि अगों व उपांगों की विषय वस्तु में परस्पर कोई सम्बन्ध या पूरकता जैसी बात नहीं है । उपागों का विषय प्रायः स्वतंत्र ही है । फिर इन्हें उपांग क्यों कहा गया ? यह चिन्तन का विषय है ।
आगमों के टीकाकार आचार्यों के मतों का समीक्षण करके व उनके विषय को समग्र रूप में हृदयंगम करके आगमों के गम्भीर ज्ञाता और विशिष्ट व्याख्याता आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने लिखा है, कि " अंगों के साथ उपांगों का प्रत्यक्ष रूप में भले ही कोई तार्किक सम्बन्ध न लगता हो , किन्तु उनकी विषय वस्तु को विशद रूप में व विस्तार पूर्वक प्रस्तुत करने की दृष्टि से अंगों के साथ उपांगों का परोक्ष सम्बन्ध जुड़ा है । इसलिए आचार्यों ने एक - एक अंग का एक - एक उपाग निश्चित किया है ।
" #आचारांग सूत्र प्रथम अंग है और उसका उपांग है #उववाइय सुत्त ( औपपातिक सूत्र ) । प्रत्यक्ष रूप में आचारांग का विषय गहन अध्यात्म , अहिंसा , संयम , सम्यक्त्व आदि से सम्बन्धित है , जबकि औपपातिक में विविध विषयों का विस्तार पूर्ण वर्णन है । आचारांग सूत्रात्मक शैली में है । छोटी - छोटी वाक्य रचना है । जबकि औपपातिक के सूत्र विस्तृत है एवं लम्बे - लम्बे समासान्त पाठ है । किन्तु गहराई से विचारने पर आचारांग सूत्र का उत्थान जिस विषय से हुआ है वह है -
कुछ मनुष्यों को यह ज्ञात नहीं होता , मेरी आत्मा #उपपात ( पुनर्जन्म ) लेने वाली है अघया मेरी आत्मा पुनर्जन्म लेने वाली नहीं है ।
इसी आदि सूत्र वचन का विस्तार सम्पूर्ण #औपपातिक_सूत्र में दृष्टिगोचर होता है । औपपातिक शब्द ही आचारंग के साथ इस उपांग का सम्बन्ध सूचित करता है । आचार्य अभयदेव सूरि अपनी वृत्ति में लिखते है - उपपतनं उपपातः। देव - नारक - जन्म - सिद्धि गमनं च ।
अतः तमधिकृत्य कृतमध्ययनमौपपातिकम् - उपपात का अर्थ है उत्पत्ति या जन्म । देवता , नारक , मानव आदि का जन्म तथा आत्मा का सिद्धिगमन , यह सब विषय उपपात शब्द से ग्रहीत होते हैं । अतः उपपात का विषय जिसमें है , वह औपपातिक सूत्र है ।
इस प्रकार विषय का आन्तरिक विश्लेषण करने पर प्रथम अंग आचारांग के साथ इस उपांग का सीधा सम्बन्ध सिद्ध हो जाता है ।
(अगले भाग में #औपपातिक_सूत्र_में_प्रतिपाद्य_विषय)

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