Sayam Abhilasha Dixa ni Abhilasha Sraman Hu Kyare Banu

Sayam Abhilasha । Dixa ni Abhilasha । Sraman Hu Kyare Banu 

संयम अभिलाषा 


( राग : अय मेरे प्यारे वतन . . . ) 

डगले अने पगले सतत , हिंसा मने करवी पडे 
ते धन्य छे जेने अहिंसापूर्ण जीवन सांपड़े 
क्यारे थशे करुणाझरणथी , आर्द्र मारुं आंगणुं 
आ पापमय संसार छोडी , श्रमण हुँ क्यारे बनुं ! . . . 1 

क्यारेक भय क्यारेक लालच , चित्तने एवा नड़े 
व्यवहारमा व्यापारमां , जूलु तरत कहेवू पड़े
छे सत्यमहाव्रतधर श्रमणनुं, जीवनघर रळियामणुं 
आ पापमय संसार . . . 2 

जे मालिके आप्या वगरनु , तणखलुं पण ले नहीं 
वंदन हजारो वार हो ते , श्रमणने पळपळ महीं 
हुं तो अदत्तादान माटे , गाम परगामे भमुं 
आ पापमय संसार . . . 3 

जे इन्द्रियोने जीवननी क्षण , एक पण सोंपाय ना 
मुज आयखुं आखुं वीत्यु ते , इन्द्रियोना साथमां 
लागे हवे श्री स्थूलिभद्रतणुं , स्मरण सोहामणुं 
आ पापमय संसार . . . 4

नवविध परिग्रह जिंदगीभर , हुं जमा करतो रह्यो 
धनलालसामां सर्वभक्षी , मरणने भूली गयो 
मूर्छारहित संतोषमां , सुख छे खरेखर जीवननु 
आ पापमय संसार . . 5 

अबजो वरसनी साधनानो , क्षय करे जे क्षणमहीं 
जे नरकनो अनुभव करावे , स्व परने अहीं ने अहीं 
ते क्रोधथी बनी मुक्त , समतायुक्त हुं क्यारे बनुं 
आ पापमय संसार . . . 6 

जिनधर्मतरुना मूल जेवा , विनयगुणने जे हणे 
जे भलभला ऊंचे चडेलाने , य तरणा सम गणे 
ते दुष्ट मानसुभटनी सामे , बळ बने मुज वामणुं 
आ पापमय संसार . . . 7 

श्रीमल्लिनाथ जिनेन्द्रने , जेणे बनाव्या स्त्री अने 
संक्लेशनी जालिम अगनमां , जे धखावे जगतने 
ते दंभ छोडी सरळताने , पामवा हं थनगनुं 
आ पापमय संसार . . . 8 

जेनुं महासाम्राज्य एकेन्द्रिय , सुधी विलसी रह्युं 
जेने बनी परवश जगत , आ दुःखमां कणसी रह्यु 
जे पापनो छे बाप ते , धनलोभ में पोष्यो घणो 
आ पापमय संसार . . . 9

तन धन स्वजन जीवन उपर , में खूब राख्यो राग 
पण ते रागथी करवू पड्यु , मारे घणा भवमा भ्रमण 
मारे हवे करवू हृदयमां , स्थान शासनरागनुं 
आ पापमय संसार . . . 10 

मैं द्वेष राख्यो दुःख उपर , तो सुख मने छोड़ी गयु 
सुख दुःख पर समभाव राख्यो , तो हृदयने सुख थयु 
समझाय छे मुजने हवे , छे द्वेष कारण दुःखनुं 
आ पापमय संसार . . . 11 

जे स्वजन तन धन उपरनी , ममता तजी समता धरे 
बस , बारमो होय चन्द्रमा , तेने कलह साथे खरे 
जिनवचनथी मघमघ थाजो , मुज आत्मना अणुए अणु 
आ पापमय संसार . . . 12 

जो पूर्वभवमां एक जूठुं , आळ आप्यूं श्रमणने 
सीता समी उत्तमसतीने , रखडपट्टी थइ वने 
ईर्ष्या तजूं , बर्नु विश्ववत्सल , एक वांछित मनतणुं
आ पापमय संसार . . . 13 

मारी करे कोइ चाडीचुगली , ए मने न गमे जरी 
तेथी ज में , आ जीवनमां , नथी कोइ पण खटपट करी 
भवोभव मने नडजो कदी , ना पाप आ पैशुन्यनुं 
आ पापमय संसार . . . 14

क्षणमां रति क्षणमां अरति , आ छे स्वभाव अनादिनो 
दुःखमां रति सुखमां अरति , लावी बनुं समताभीनो 
संपूर्ण रति बस , मोक्षमा हुं स्थापवाने रणझणुं 
आ पापमय संसार . . . 15 

अत्यंत निन्दापात्र जे , आ लोकमां य गणाय छे 
ते पाप निन्दा नामनुं , तजनार बह वखणाय छे 
तनुं काम नक्कामुं हवे , आ पारकी पंचातनुं 
आ पापमय संसार . . . 16 

मायामृषावादे भरेली छे , प्रभु ! मुज जिंदगी 
ते छोड़वानुं बळ मने दे , हुं करूँ तुज बंदगी 
बनुं साचदिल आ एक मारुं स्वप्न छे आ जीवननुं 
आ पापमय संसार . . . 17 

सहु पापरनुं , सहु कर्मनुं , सहु दुःखनुं जे मूल छे 
मिथ्यात्व भुंडुं शूल छे , सम्यक्त्व रुडुं फूल छे 
निष्पाप बनवा हे प्रभुजी ! शरण चाहुं आपनुं 
आ पापमय संसार . . . 18 

ज्यां पाप ज्यारे एक पण तजवूं अति मुश्केल छे 
ते धन्य छे , जेओ अढार पापथी विरमेल छे ! 
क्यां पापमय मुज जिंदगी , क्यां पापशून्य मुनिजीवन ! 
आ पापमय संसार . . . 19

Sraman hu kyare banu 
- हीरेन झवेरी

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