Savi Jiv Karu Sashan Rashi Jain Diksha Song
सवि जीव करूं शासनारसी जैन दीक्षा गीत
( राग : मंदिर छो मुक्ति तणां )
इच्छा मने छे एक के , तुज शासने रमतो रहुं ,
इच्छा मने छे एक के , तुज भावने वरतो रहुं ;
तव दर्श पामी निर्मळु , एक भावना मुज मन वसी ,
सवि जीव करूं शासनरसी , सविजीव करूँ शासनरसी .
जो होवे मुज शक्ति इसी , सवि जीव करूँ शासनरसी . . . 1
अणिशुद्ध हो चारित्र मुज , ग्रहूँ भावथी तारुं शरण ,
पापो पखाळी तेहथी , पामे जीवो निर्मळ चरण ;
अहोभावथी मस्तक झुके , अनुराग वधे शासन प्रति . . . सवि जीव . . . 2
शासन मळ्युं छे तो कर्मनो , करूँ अंत हं उल्लासथी ,
पामी कृपा जिनवर तणी , शुद्ध रुपना अभिलाषथी
महाव्रतना महाभारने , शिर पर वही उत्साहथी . . . सवि जीव . . . 3
सिद्धिगति ए स्थान छे , ज्यां दोषनो लवलेश नहीं ,
विज्ञानधन ए आतमाने , कर्मनी पीडा नही ;
पामे सह ए स्थानने , शुद्ध हेमवत् निर्मळ बनी . . . सवि जीव . . . 4
विराग भावे हं करुं , अरिहंतनी आराधना ,
विदेह भाव थकी करूँ हुँ , सिद्धपदनी साधना ;
शासनतणां गुणगण महीं सम्यक्त्वने स्पर्श करी . . . सवि जीव . . . 5
पु. सा. श्री शासनप्रभाश्रीजी म. सा.
(श्री केशरसुरीजी समुदाय)
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