Saiyam Vandanavali Jain Stavan
संयम वंदनावलि जैन स्तवन
नेत्रो उघाड़ी हृदयना श्रामण्यनुं दर्शन करूँ ,
बहुमानथी भावित थइ मन वचन ने तनथी सदा ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 1
उगरी गया संसारथी जे शिवगतिमां संचर्या ,
ते सह जीवो साधी गया श्रामण्यनी सविधि चर्या ,
आ विश्वमां श्रामण्य एक ज मार्ग छे मोक्षे जवा ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 2
रेलाय ज्यां संगीत करुणानुं क्षमारसथी भर्यु ,
मृदुता तणुं आनंदी वातावरण ज्यां कायम वस्युं ,
ज्यां सरळतानी केडीओ लइ जाय छे शिवनगरमां
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 3
ढगला पड्या संतोष धनना जे मनोरम भूतले ,
निर्लेपताना कल्पवृक्षो पण उगीने ज्यां फळे ,
ज्यां धीरतानी वज्रमय रत्नो तणी छे वेदिका ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 4
अभेद्यने उत्तुंग छे ज्यां कोट संयम नामनो ,
उल्लंघीने ना जइ शके शत्रु प्रमादने कामनो ,
परिणतिर्नु कवच धरीने बोध सुभटो ज्यां उभा ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 5
ज्यां सत्यना खूब मधुर झरणाओ स्फूरे कलरव करी ,
ने शौचना नीर संचयो आपे शीतळता विस्तरी ,
ज्यां ब्रह्मचर्यना मंदिरोनी थाय छे उपासना ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 6
पाँच महाव्रत भारने दृढ़ता धरी सहेजे वहे ,
ना विरह पळभर पण सहे व्रत प्राणथी अधिका चहे .
प्राण कंठे हो भले जळ इच्छवू नहीं रात्रिमा ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 7
भूख तरस तड़का आदि वीश प्रतिकूळ परिषहने सहे ,
सत्कारने स्त्रीना अनुकुळ परिषहोथी ना चळे ,
विहरे उघाड़ा पग थकी जाणे करम चुरता जता ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 8
जे धोमधखता तापमां विचरे धरे धर गोचरी ,
भिक्षा मळे के ना मळे अंतर रहे समता धरी ,
थाके छतां पण शरीर थाके ' हुँ नहीं जे मानता ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमा वंदना . . . 9
केशनुं लुंचन करी जे क्लेशने य उखाडता ,
तप उग्र करता आत्म देहना भेदने अजवाळता ,
देहने दृःख दइ महाफळ पामता जे चित्तमा ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमा वंदना . . . 10
मनमां विचारोना वधु व्यवहारथी जे दूर रहे ,
ने वाणीनो व्यवहारपण निस्तब्ध ज्यां जोवा मळे ,
वळी शरीरने पण स्थिर करी जे जाय योगानंदमा ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 11
खोळे वसुधाना वसी जे जीवदयाने पाळता ,
डगला उपाडे नेत्र ढाळीने भूमि आलोकता ,
सर्वक्रियामां धरे जे सूक्ष्म जयणा सर्वदा ,
श्रामण्यने धरनार साधजन चरणमां वंदना . . . 12
गंगासमी पावन गिरा जेना वदनमाथी सरे ,
हित मित पथ्य ने सत्य ए चारे प्रकारे उच्चरे ,
वळी हस्तकमळे पांखडी सम विलसती मुखवस्त्रिका , श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 13
निर्दोष मिक्षा ग्रहण करवा दूर दूर गवेषता ,
शंका पड़े तो ना ग्रहे पाछा वळे बोल्या विना ,
आचार्य आदि साधुओनी भक्तिमा उल्लसी रह्या ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 14
व्यर्थ वस्तुने य ना फेंकी दइ कचरो करे ,
निरखे भूमिने विधि सहित यतना थकी जे परठवे ,
श्रामण्य आ संसारमा उत्तम जीवननी छे शिखा
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 15
गुरुवचन पर अढळक धरे श्रद्धा घणा बहुमानथी
वात्सल्यने झंखे कृपा अहोनिश वर्ते शाणथी ,
गुरुनी कटु वाणी विषे जे रीस ना धरता कदी ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 16
रजोहरण छे चिह्न आ श्रामण्यधर साधुतणां ,
पासे सतत राखे अने उपयोगी जयणामां थतुं ,
भविलोक पर उपकार करवा धर्मने उपदेशता ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 17
धवल छे परिवेष जेनो शुभध्यान प्रतीक समो ,
ने पात्रपण छे काष्टाना केवी जुदाइ नो चीलो ,
रहस्य छे साधु जीवनना एक एके अंगमां ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 18
शास्त्रने सिद्धांतना अभ्यासमां तत्पर रहे ,
स्वाध्यायना परिघोषथी निजचित्तने वासित करे ,
वळी पापभीरुताना अजब उत्कर्षने पामी रह्या ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 19
धन्य छे ते आतमा जेने मळ्युं आ जाणवा ,
ने धन्य छे जेने गम्युं श्रामण्य आ कळिकाळमां ,
धन्य नही अति धन्य छे श्रामण्य ग्रहवा जे उठ्या ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 20
स्वर्गना देवोय जेने पामवाने तलसता ,
मनुष्यभव शुं नही मळे ओ दहेशते आक्रंदता ,
वंदी रह्या श्रामण्यपालक श्रमणने ते देवता ,
श्रामण्यने धरनार साधुजन चरणमां वंदना . . . 21
Sadhujan charno ma vandana
पु. पं. लब्धिवल्लभ वि. म. सा.
( श्री भुवनभानुसूरिजा समुदाय )
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